नई दिल्ली,एजेंसी । अयोध्या विवाद पर अब हाईकोर्ट के एक पूर्व जज ने नया प्रस्ताव दिया है. उनके प्रस्ताव में अयोध्या में मंदिर-मस्जिद साथ साथ बनाने की बात की गई है, बता दें कि जस्टिस पलोक बसु का प्रस्ताव पहली नजर में आकर्षक दिख रहा है लेकिन इसमें कई व्यावहारिक दिक्कतें भी हैं।
विवाद से जुड़े सभी पक्ष मिलकर अगर उन दिक्कतों को दूर कर लें तो फिर बात बन सकती है. जस्टिस पलोक बसु के इस प्रस्ताव की आधार शिला में इलाहाबाद हाईकोर्ट का 6 साल पहले का फैसला है। उस वक्त के अपने फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. कोर्ट के फैसले के मुताबिक राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को, राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट का ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की फाइलों में दबा हुआ है और इसी बीच जस्टिस पलोक बसु ने अयोध्या विवाद से जुड़े कुछ पक्षों से बातचीत करके अपना फॉर्मूला पेश किया है।
उनके फॉर्मूले के मुताबिक, “‘हाईकोर्ट ने जो जमीन निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी है, वो जमीन दोनों पक्षों को दे दी जाए. तीसरा हिस्सा जो राम लला विराजमान को दिया गया है, केवल उस हिस्से में राम मंदिर बनाया जाए.”
जस्टिस बसु ने ये प्रस्ताव देते समय साफ कर दिया है कि मुस्लिमों को विवादित भूमि का जो हिस्सा मिलेगा, उसपर कोई पक्ष किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं करेगा और उस जमीन को चारों तरफ से दीवार से घेरकर सदा सदा के लिए खाली छोड़ दिया जाएगा।
जस्टिस बसु ने अपने प्रस्ताव में मंदिर और मस्जिद साथ साथ बनाने की भी बात कही है. उनके प्रस्ताव के मुताबिक, ”मुस्लिम पक्ष इस विवादित जमीन से करीब 200 मीटर दूर अपनी मस्जिद का निर्माण करेंगे. जिस जमीन पर मस्जिद के निर्माण का प्रस्ताव है वो युसूफ की आरा मशीन के नाम से अयोध्या में मशहूर है.”
जस्टिस बसु के प्रस्ताव में सबसे बड़ा पेंच ये है कि ज्यादातर हिंदू संगठन विवादित भूमि के आसपास मस्जिद के पक्ष में नहीं हैं. दूसरी तरफ बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने साफ कर दिया है कि उसे अयोध्या विवाद में केवल सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा है।