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Saturday, December 7, 2024

आदि गंगा गोमती के तट पर सुरम्य वातावरण में विराजमान देवदेवेश्वर महादेव की महिमा है निराली ।

सीतापुर-अनूप पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश जनपद के नैमिषारण में स्वयं वायु देवता ने की थी इस शिवलिंग की स्थापना इस सिद्ध शिवलिंग के आदि और अन्त का नहीं है किसी को पता । श्रावण मांस में देश विदेश के कोने-कोने से उड़ता है शिव भक्तों का जनसैलाब । प्रशासनिक व्यवस्थाऐं नगष्य से होने पर भी शिव भक्त स्वयं करते हैं अपनी सुरक्षा । मिश्रित सीतापुर / रौद्ररूप धारी देवाधिदेव महादेव भस्माच्छादित देंह वाले भूत भावन भगवान शिव जो अल्प पूजा आदि से ही प्रसन्न होकर भस्मासुर जैसे असुर को मनोवांछित वरदान दे सकते थे जो उन्ही के लिए प्राण घातक बन गया था तो वह किसी को क्या नहीं दे सकते श्रावण मांस तो भगवान शिव और पार्वती की विशेष पूजा का प्रतीक माना जाता है जिसका उल्लेख वायु पुराण में विस्तार से मिलता है भगवान सूर्य महेश्वर शिव की मूर्ति हैं उनका सुंदर मंडल दीप्ति मान है निर्गुण होते हुए भी कल्याण मय गुणों से युक्त पॉच स्वरूपों में विभक्त है श्रावण मांह में तेजवान शिव और शिवा के संगम का अनुसरण करना विशेष मंगलकारी माना जाता है जिससे शिव भक्त उनकी पूजा अर्चना व रुद्राभिषेक आदि करके मनवांछित फल प्राप्त करते हैं तेजवान शिव और शिवा के समांगम वाले श्रावण मांस में अल्प पूजा ही अमोघ पूर्ण्य प्रदान करने वाली मानी जाती है अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की पौराणिक तपोस्थली जहां हिंदू धर्म के समस्त चार वेद एवं 18 पुराणों की रचना हेतु विश्व विख्यात है वही यहां पर स्वयं वायु देवता द्वारा स्थापित प्राचीनतम देवदेवेश्वर धाम अपनी अनगिनत महिमाओं के लिए वर्णित है नैमिष की आदि गंगा गोमती के तट पर सुरम्य वातावरण में विराजमान प्राचीन देवदेवेश्वर शिव मंदिर की पुराणों में अनंत महिमा वर्णित की गई है श्रावण मांस में देश के कोने कोने से शिव भक्तों और कांवरियों का जन सैलाब यहां पर उमड़ता रहता है इस प्राचीन शिव मंदिर के सम्बंध में वायु पुराण में विस्तार से उल्लेख मिलता है कि अट्ठासी हजार ऋषि मुनियों की तपस्या से प्रसन्न होकर वायु देवता ने स्वयं इस शिवलिंग की स्थापना करके ऋषि मुनियों को शिव की मर्यादा और पाशुपात स्त्वन को बताया था वामन पुराण की माने तो इस प्राचीन देव देवेश्वर मंदिर में भक्त प्रहलाद द्वारा पूजा अर्चना का उल्लेख मिलता है लोक प्रिय महाभारत ग्रन्थ में उल्लेख मिलता है कि शिव देवदेवेश्वर की महिमा से एक मृत बालक जीवित हो उठा था तभी से इस सिद्ध शिवलिंग का प्रताप विश्वविख्यात चल रहा है देवदेवेश्वर की सच्ची महिमा एवं उनके प्रताप की एक मध्ययुगीन ऐतिहासिक गाथा भी प्रचलित है एक बार मुगल शासक औरंगजेब ने विभिन्न हिंदू मंदिरों को तोड़ने का अभियान चलाया था इस अभियान के तहत उसके सैनिक जब नैमिष धाम में विराजमान देवदेवेश्वर मंदिर के शिवलिंग को खंडित करने पहुंचे तभी इस मंदिर से लाखों की संख्या में बर्रे (मधुमक्खियां ) उड़ने लगी और सेना पर प्रहार कर दिया जिससे उनकी सेना में भगदड़ मच गई सभी सैनिक अपनी जान बचा कर भाग निकले शिव महापुराण में वर्णित शिव पार्वती संबाद की माने तो भगवान शिव के 42 अवतारों में एक अवतार नैमिष की पावन धरती पर हुआ है उन्हीं को देवदेवेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है जिससे सम्पूर्ण नैमिष धाम के रक्षक भी माने जाते है धर्माचार्यो की माने तो आज भी इस शिव मंदिर में मध्य रात्रि के दौरान देव संसद चलती बताई जाती है जिससे मंदिर के पुजारी व्दारा मध्य रात्रि के पहले ही मंदिर के कपाट बन्द कर दिये जाते है अन्यथा मध्य रात्रि को मंदिर के कपाट अपने आप स्वतः बन्द हो जाते है यहां पर श्रावण मांस में पूरे महीने मेला चलता रहता है शिव भक्त रामचरितमानस पाठ व भजन कीर्तन आदि करते रहते हैं वहीं शिव की विशेष अनुकम्पा प्राप्त करने हेतु नित्य प्रति शिव भक्तों और कांवरियों का जनसैलाब उमड़ा रहता है देश विदेश और सुदूर आंचलो से शिव भक्त एवं कांवरिया आकर भगवान देवदेवेश्वर की अनुकंपा पाने के लिए बेलपत्र ,रुद्राभिषेक, जलाभिषेक ,दुग्धाभिषेक ,आदि बिभिन्न प्रकार से पूजन अर्चन कर शिव दर्शन के साथ ही मंदिर परिषर में रामचरितमानस का पाठ पर कराकर भगवान शिव की अनुकंपा से मनवांछित फल प्राप्त करते हैं इस प्राचीन मंदिर पर सुरक्षा ब्यवस्था के साथ ही सभी प्रशासनिक ब्यवस्थाऐं नगष्य होने के कारण सिव भक्त अपनी सुरक्षा स्वयं करते देखे जा सकते है ।

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