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Friday, September 13, 2024

आप और भाजपा की ‘दोस्ती’ बनी कांग्रेस की मुसीबत

आम आदमी पार्टी (आप) ने गुजरात के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। आप का यह फैसला कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है, लेकिन भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।

आम आदमी पार्टी (आप) ने गुजरात के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। आप का यह फैसला कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है, लेकिन भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन कई बार कह चुके हैं कि कांग्रेस को सत्ता में न आने देने के लिए भाजपा और आप में अघोषित समझौता हुआ है। इसी के चलते तमाम सबूत होने के बावजूद केंद्र ने दिल्ली सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। माकन के आरोपों में इसलिए भी दम लग रहा है क्योंकि आप ने उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों में चुनाव नहीं लड़ा, जहां तीसरा दल मौजूद है और जिनके सहारे भाजपा कांग्रेस को सत्ता से लगातार दूर रखने में सफल हुई है।

आम आदमी पार्टी अगर पिछले महीने बवाना विधानसभा उपचुनाव न जीतती तो उसके नेताओं के चेहरे लोग भूल ही जाते। यह अलग बात है कि बवाना में भी दो साल में उसके वोट आधे ही रह गए थे। 2015 के विधानसभा चुनाव में बहुमत पाकर दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने वाले केजरीवाल और उनकी टीम ने देश को एक साफ-सुथरा राजनीतिक विकल्प देने के दावे किए थे। इसके अलावा केजरीवाल पहले दिन से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते आ रहे हैं। इस मामले में उन्होंने उपराज्यपाल, अधिकारियों व मीडिया से लेकर किसी वर्ग को नहीं छोड़ा। पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग से भी केजरीवाल सरकार की कभी नहीं बनी। हालांकि उनके बाद आए अनिल बैजल का रुख आप सरकार के प्रति नरम रहा।

हालांकि बीच-बीच में अपनी हैसियत जताने के लिए वे सरकार के फैसले पर रोक लगा देते हैं या उसे बदल देते हैं। वैसे तो आप में बगावत का सिलसिला तो पार्टी बनने के साथ ही चल रहा है, लेकिन केजरीवाल के पूर्व सहयोगी कपिल मिश्र की बगावत और उनकी ओर से लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप ने उन्हें सबसे ज्यादा परेशान किया। हालिया घटनाक्रम से साफ है कि भाजपा चाहती है कि दिल्ली में केजरीवाल सरकार बनी रहे। वैसे भी आप को उन्हीं मतदाताओं का समर्थन मिलता है जो कांग्रेस के परंपरागत मतदाता हैं। यानी अगर आप कमजोर होगी तो कांग्रेस मजबूत होगी। 2016 में नगर निगम की 13 सीटों के उपचुनाव में यह भी दिखा। गैर-भाजपा मतों का बंटवारा होने से भाजपा की जीत सुनिश्चित होती दिखी। यह दिल्ली के नगर निगम चुनावों में भी दिखा, जब भाजपा के वोट औसत में पिछले चुनाव के मुकाबले करीब एक फीसद की कमी हुई, लेकिन आप को 26 फीसद और कांग्रेस को 22 फीसद वोट मिलने से वह 36 फीसद वोट लेकर चुनाव जीत गई।

माना जा रहा है कि भाजपा रणनीति के तहत उन राज्यों में आप को चुनाव लड़वाने के लिए उत्साहित है जहां तीसरा मजबूत दल नहीं है। आने वाले दिनों में जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें गुजरात, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में तीसरा दल मजबूत नहीं है। कहा जा रहा है कि इनमें सबसे कठिन चुनाव प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात का है। आप ने गुजरात चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है। पार्टी के नेता राजस्थान, मध्य प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन वे उन राज्यों में नहीं जा रहे हैं जहां तीसरा दल पहले से मजबूत है। इसी के चलते आरोप लग रहे हैं कि भाजपा और आप में कोई अघोषित समझौता हुआ है। कहा जा रहा है कि इसी के कारण सीबीआइ दिल्ली सरकार के खिलाफ ठीक से जांच नहीं कर रही है और 21 आप विधायकों की सदस्यता का फैसला भी चुनाव आयोग में लंबित पड़ा है। बताया जा रहा है कि इस मामले की आखिरी सुनवाई 12 अक्तूबर को होगी, लेकिन इससे पहले यह तारीख इतनी बार टल चुकी है कि इस पर भी यकीन करना मुश्किल है।

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