· हृदयरोग से था पीड़ित, 25 फ़ीसदीसे भी कम काम कर रहा था दिल
· एलवीएडी (लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस) ही था एकमात्र समाधान, सेहत में आया आश्चर्यजनक सुधार
21 जून, 2019, गुरुग्राम- यह कहानी है इराक से आये 42 वर्षीय ऐसे व्यक्ति की, जिनका तीन साल पहले दिल का दौरा पड़ने की वजह से कार्डियक स्टेंटिंग प्रोसीजर किया गया था, उनकी हृदय सम्बन्धी मांसपेशियाँ कमज़ोर पड़ गयीं थीं, और हृदय की गति केवल 25 फ़ीसदी से भी कम रह गयी थी। डॉक्टरों के अनुसार उनको 10 साल पहले डायबटीज़ भी हुई थी। हालाँकि इन सब वजहों से उनकी सामान्य जिंदगी पर बहुत बुरा असर पड़ा जिसमे सामान्य तरह से चलने में दिक्कत और सांस लेने में बहुत तकलीफ तो थी ही,इतना ही नहीं उनके लिए शौचालय जाना तक दुर्लभ था लेकिन बीते एक महीने में उनकी स्थिति और भी बदतर हो गयी थी। वे रात के समय न तो सो ही पा रहे थे बल्कि उनको सामान्य तरीके से लेटने तक में दिक्कत आ रही थी। इतनी गंभीर जटिलताओं में नारायणा अस्पताल में वीएडी इम्प्लांट लगने के बाद उनकी स्थिति में आश्चर्य जनक रूप से सुधार हुआ।
वीएडी दरअसल बैटरी ओपेरेटेड हृदय में लगने वाला एक प्रकार का इम्प्लांट है जो कि बीमार हृदय के साथ पम्पिंग की गति में सहायक होता है। इसके ज़रिये हृदय पर पम्पिंग का जोर कम पड़ता है और शरीर की गति सामान्य हो जाती है, ताकि हार्ट ट्रांसप्लांट होने तक रोगी की हृदयगति जीवन योग्य रखी जाये।
डॉक्टर जुलियस पुन्नेन, कार्डियक सर्जरी,हार्ट एंड लंग ट्रांसप्लांटेशन एंड मैकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट, नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल, गुरुग्राम,कहते हैं कि, “डीकंपंसेटेड हार्ट फेलियर की स्थिति में रोगी के बचने की सम्भावना बहुत कम रहती है क्योंकि अचानक कम समय में हार्ट ट्रांसप्लांट होना संभव नहीं हो पाता साथ ही हृदय ट्रांसप्लांट से जुड़ी जटिलताओं की वजह से इतने कम समय में डोनर का भी मिल पाना नामुमकिन होता है। ऐसे में वीएडी यानी वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस लगाना ही एकमात्र संभव उपचार बचता है ताकि ट्रांसप्लांट होने तक रोगी की हृदयगति जीवन योग्य रखी जाये। हालाँकि एलवीएडी लगाने की प्रक्रिया जटिल है औसर जोखिम भरी भी है, फिर भी यह कई मरीज़ों के लिए उम्मीद की किरण बन सकती है।”
दरअसल मकेनिकल सर्कुलेटरी सपोर्ट डिवाइस दो तरह की गंभीर स्थितियों में महत्त्वपूर्ण हो गए हैं, पहला गंभीर हार्ट फेलियर और दूसरा डोनर का अवेलेबल न होना।
डॉक्टर संदीप सिंह, कार्डियक सर्जन,नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल, गुरुग्राम,कहते हैं, “मरीज़ को तकरीबन हार्ट फेल के आखिरी चरण में लाया गया था। ऐसे में मरीज़ को सभी फायदेएवंनुक्सानसे अवगत करवा कर एलवीएडी का विकल्प दिया गया, ताकि ट्रांसप्लांट होने तक हृदय गति सामान्य रहे। सहमति मिलते ही मरीज़ को तुरंत इंटेंसिव कार्डियक केयर में भर्ती किया गया। तीन हफ़्तों की सावधानी पूर्वक इलाज प्रक्रिया से उनके लंग प्रेशर और द्रव को सामान्य किया गया और स्थिति बेहतर होने पर सर्जरी व एलवीएडी के लिए तैयार किया गया।”
रोगी की जान बचाने के लिए नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल, गुरुग्राम के कार्डियाक सर्जरी के डॉक्टरों की टीम ने वीएडी इम्प्लांट लगाने का फैसला लिया। लेकिन इस इम्प्लांट को लगाने की शर्त यह है कि रोगी की शारीरिक क्षमता इतनी हो कि वह इस इम्प्लांट को लगाने की प्रक्रिया को सहन कर सके। रोगी को आईसीयु में भर्ती करके हृदय सबंधी मेडिकेशन पर रखा गया था। इसके अलावा फिज़ियोथेरेपी भी दी गयी। पूरे 2 हफ्ते की मशक्कद के बाद रोगी को इम्प्लांट लायक बनाया गया। फिर रोगी के हृदय के बांयें हिस्से में वीएडी इम्प्लांट लगाया जो कि कमज़ोर था। उम्मीद के मुताबिक सर्जरी कामयाब रही और 24 घंटे के अन्दर रोगी को मेकेनिकल वेंटीलेटर से बहार भी ले आया गया। अगले 48 घंटों में रोगी बिस्तर से भी उठ कर चल फिर सकता था। इसके साथ ही अगले चार पांच दिनों में उसमें इतना सुधार था कि वह 100 मीटर तक बिना किसी मदद चल सकता था। इलाज की अगली कड़ी में उनके परिवार वालों को डिवाइस से सम्बंधित तरीकों के लिए ट्रेन किया गया। उनकी हालत में इतनी तेज़ी से आया सुधार बहुत सुखद अनुभूति थी।
डॉक्टर रचित सक्सेना, कार्डियक सर्जन एवंडॉ. जतिन नरूला , कार्डियक एनेस्थीसिया नारायणा सुपरस्पेशेलिटी अस्पताल, गुरुग्राम कहते हैं कि, “जब मरीज़ को हमारे अस्पताल में लाया गया वे बहुत गंभीर हालत में थे जिसमे उनके लिवर, किडनी ने तकरीबन काम करना बंद कर दिया था और पूरे शरीर में सूजन भी थी। जांच करने पर हमने पाया कि वे डीकंपंसेटेड हार्ट फेलियर से पीड़ित हैं, जिसमे बचने के लिए हार्ट ट्रांसप्लांट ही एकमात्र समाधान होता है।
दुनिया भर में हृदय रोगों के साथ जी रहे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसमें गंभीर हार्ट फेल तक शामिल हैं। कई स्थितियों में लेफ्ट वेंट्रिकल इस हद तक कमज़ोर हो सकता है कि वह अपने दम पर ब्लड पंप करने लायक भी नहीं बचता। ऐसे में मरीज़ को बचाने के लिए एलवीएडी का सहारा लेते हैं। समय और तकनीक बदलने के साथ साथ मरीजों की सहूलियत के नज़रिए से एलवीएडी में भी नए नए एडवांस बदलाव आये हैं। जबकि पिछले ही दशक में ये डिवाइस बिना चार्जिंग के मात्र 4 घंटे तक ही काम कर पाती थी लेकिन अब ये 11 घंटे की बैटरी लाइफ के साथ आती हैं। अब नए नए एडवांस तकनीकी बदलाव ऐसे मरीजों की ज़िन्दगी में सुखद बदलाव और सुधार ला रहे हैं और खुशहाल ज़िन्दगी की ओर अग्रसर कर रहे हैं।
प्रतीक जैन, फैसिलिटी डायरेक्टर,नारायणा सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, गुरुग्रामकहते हैं, “हम बतौर संस्थान किसी भी गंभीर कार्डियक प्रक्रिया के लिए सक्षम हैं। हमारी हमेशा से लगातार यही कोशिश रही है गुरुग्राम या कहीं के भी मरीज़ को उच्चस्तरीय इलाज वाजिबहो।”