नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पांचवें चरण का मतदान 27 फरवरी को है। अगर देखा जाए तो इस चरण में एक तरफ जहां अमेठी में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की विरासत दांव पर होगी तो वहीं अयोध्या से भाजपा का इम्तिहान होगा। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जिस गठबंधन के भरोसे उप्र में 300 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं, उसमें सबसे चर्चित सीट अमेठी और अयोध्या भी हैं। अमेठी से उप्र सरकार के विवादित और दुष्कर्म के आरोपी मंत्री गायत्री प्रजापति चुनाव मैदान में हैं।
खनन घोटाले को लेकर विपक्ष के लगातार निशाने पर रहे गायत्री पर अंतिम दौर में सर्वोच्च न्यायालय का डंडा भी चला और पुलिस को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करनी पड़ी। यही वजह है कि गायत्री प्रजापति के प्रचार में पहुंचने के बाद भी मुख्यमंत्री ने अपने मुंह से उनका नाम नहीं लिया।
दूसरी ओर, कांग्रेस के नेता संजय सिंह की दोनों पत्नियां गायत्री का रास्ता रोकने के लिए खड़ी हैं। संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह जहां भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं, वहीं दूसरी पत्नी अमिता सिंह गठबंधन को दरकिनार करते हुये कांग्रेस से चुनाव लड़ रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में अमेठी की पांच विधानसभा सीटों पर सपा का कब्जा था। इसके चलते राहुल गांधी पर भी अमेठी में गठबंधन को जीत दिलाने का दबाव बढ़ गया है।
इधर, अमेठी के अलावा दूसरी सबसे चर्चित सीट अयोध्या की है। यहां पर समाजवादी पार्टी के नेता व मंत्री पवन पांडेय का कब्जा है। पवन इस सीट को भाजपा से 21 साल बाद छीनने में सफल रहे थे। अखिलेश ने एक बार फिर उन्हीं पर दांव लगाया है।
यहां का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि पहली बार 1980 के बाद किसी पार्टी ने यहां से मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। बसपा ने यहां से बज्मी सिद्दीकी को टिकट दिया है। अयोध्या की सीट से जीत मिलने पर पूरे देश में एक संदेश जाता है। पिछले विधानसभा चुनाव में पवन पांडेय ने लल्लू सिंह को हराकर अपनी ताकत का एहसास कराया था। उसकी गूंज नागपुर तक सुनाई दी थी। लल्लू सिंह हालांकि बाद में हुए लोकसभा चुनाव में जीत गए थे। इस बार भाजपा ने यहां से वेद प्रकाश गुप्ता को मैदान में उतारा है।
बसपा प्रदेश अध्यक्ष रामअचल राजभर की राजनीतिक शुरुआत अंबेडकरनगर से ही हुई। रामअचल राजभर साल 1991 में बसपा की टिकट पर पहली बार विधायक बने और साल 2007 तक लगातार इस सीट से जीतते रहे। इसका इनाम भी उनको मिला और राज्य सरकार में परिवहन मंत्री बना दिए गए। साल 2007 में बनी मायावती की सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे इसमें रामअचल राजभर का नाम भी सामने आया था। इसका नतीजा ये हुआ कि साल 2012 के चुनाव में उनको टिकट नहीं मिली पर उन्होंने अपने बेटे संजय राजभर को मैदान में उतारा लेकिन साल 2012 में चली सपा की आंधी में संजय अपनी सीट संभाल नहीं सके और सपा के राममूर्ति वर्मा चुनाव जीत गए।
सपा प्रत्याशी राममूर्ति वर्मा अकबरपुर-टाण्डा सड़क मार्ग पर स्थित अरिया बाजार के निकट स्थित गांव दोहरीपुर के निवासी हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में 281 अकबरपुर विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी ने पहली बार राममूर्ति वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा था। इतना ही नहीं चुनाव जीतने के बाद ही उन्हें अखिलेश सरकार के मंत्रिमण्डल में जगह देकर राज्यमंत्री बना दिया गया था। इस जिले में कुर्मी बिरादरी की राजनीति काफी मजबूत मानी जाती है इसलिए बसपा के बड़े नेता लालजी वर्मा के स्थान पर सपा इस सीट से किसी कुर्मी नेता को चुनाव मैदान में उतार कर कुर्मी बिरादरी को साधने की जुगत लगा रही थी।
इसीलिए 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ही अखिलेश सरकार ने राममूर्ति वर्मा का कद बढ़ाते हुए पहले तो उन्हें राज्यमंत्री से कैबिनेट मंत्री का दर्जा दे दिया फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में अम्बेडकरनगर से चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी के आगे कोई नहीं टिक सका, अन्ततः राममूर्ति वर्मा चुनाव हार गए। इस बार के चुनाव में पांच साल तक विधायक/कबीना मंत्री रह चुके सपा प्रत्याशी राम मूर्ति वर्मा के सामने अपनी सीट को बचाए रखने की बड़ी चुनौती है।