देश में राष्ट्रपति चुनाव का बिगुल बज चुका है आगामी 20 तारीख को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का नया उत्तराधिकारी देश के सामने होगा। चुनाव आयोग की घोषणा के बाद पक्ष विपक्ष ने चुनाव के लिए कमर कस ली है। हालांकि अभी तक भी दोनों पक्ष पत्ते खोलने को तैयार नहीं हैं, हालांकि इतना साफ है कि सत्तारूढ़ एनडीए के रणनीतिकारों ने अपनी ओर से इस पद के लिए उम्मीदवार का नाम तय कर लिया है उसे इंतजार है तो बस विपक्ष के पत्ते खोलने का। ताकि विपक्ष की रणनीति सामने आने के बाद ही अपना दांव चला जाए और वो भी ऐसा जिसका तोड़ विपक्ष न निकाल सके।
इसके पीछे एक बड़ा कारण ये भी है कि राष्ट्रपति चुनाव के बहाने एकजुट होने का प्रयास कर रहे विपक्ष को आमने सामने के पहले मुकाबले में ही सीधे चित कर दिया जाए जिससे आने वाले समय में कोई बड़ी चुनौती न मिल सके। यही कारण है कि राष्ट्रपति चुनाव इतने नजदीक आने के बाद भी भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए अभी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं है।
हालांकि सबकी निगाह इसी बात पर टिकी है कि हमेशा की तरह प्रधानमंत्री कोई नया चेहरा लाकर एक बार फिर सबको चौंकाते हैं या किसी पुराने चेहरे को आगे कर जीत का बंदोबस्त करते हैं। हालांकि यूं तो अभी पार्टी की तरफ से खुलकर कोई ऐसा संकेत नहीं दिया गया है जिससे अंदाजा लगाया जा सके कि पीएम मोदी किसे राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाते हैं लेकिन फिर भी कुछ चेहरे ऐसे हैं जिन पर सबसे ज्यादा उम्मीद की जा रही है। तो चलिए आइए डालते हैं ऐसे ही कुछ संभावित चेहरों पर एक निगाह।
थावरचंद गहलौत
इस लिस्ट में सबसे आगे जिस नाम की चर्चा है वह है मोदी सरकार में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलौत की। 69 साल के गहलौत राज्यसभा के सदस्य हैं और संसद के सौम्य और सरल चेहरे माने जाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह दोनों का नजदीकी माना जाता है।
दलित समुदाय से आने वाले थावरचंद गहलौत कुछ दिन के लिए मीसाबंदी विवाद में भी फंसते नजर आए थे लेकिन जल्द ही प्रदेश और केंद्र सरकार की सफाई के बाद यह मामला ठंडा पड़ गया। माना जा रहा है कि थावरचंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर भाजपा दलितों को अपने पाले में करने के लिए बड़ा दांव खेल सकती है।
द्रौपदी मुर्मू
झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मु का नाम पिछले कुछ दिनों से लगातार चर्चाओं में बना हुआ है। उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की पहली पसंद बताया जा रहा है। उसकी बड़ी वजह ये भी है कि अभी तक देश में दलित भी राष्ट्रपति बन चुके हैं और अल्पसंख्यक भी, लेकिन कोई आदिवासी आज तक इस पद पर नहीं पहुंचा है।
ऐसे में सामाजिक समरसता का बड़ा उदाहरण पेश करते हुए भाजपा मुर्मु को आगे कर सकती है। उत्कल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट मुर्मु भाजपा के उस अभियान में भी फिट बैठती हैं जिसके सहारे पार्टी उड़ीसा जैसे बड़े राज्य में खुद को सत्ता तक पहुंचाने की कवायद कर रही है। दो बार उड़ीसा की विधायक रही मुर्मु का नाम राज्यपाल के लिए भी इसी तरह चौंकाते हुए सामने आया था।
वैंकेया नायडू
केंद्रीय मंत्री वैंकेया नायडू का नाम भी राष्ट्रपति के लिए एनडीए के प्रमुख चेहरे के तौर पर सामने आ रहा है। उसकी एक बड़ी वजह ये भी है कि वैंकेया उस दक्षिण से आते हैं जहां भाजपा लाख प्रयास के बाद भी अभी तक अपना मजबूत वजूद खड़ा नहीं कर पाई है। पूर्व में पार्टी के अध्यक्ष रह चुके वैंकेया नायडू प्रधानमंत्री मोदी के सिपहसलार माने जाते हैं और हर मौके पर वह मोदी के साथ खड़े दिखाई देते हैं ऐसे में इसका ईनाम भी उन्हें मिल सकता है। वैंकेया मोदी-शाह की जोड़ी के अलावा संघ के भी नजदीकी माने जाते हैं।
सुषमा स्वराज
इस पद के लिए चौथा बड़ा नाम है केंद्रीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का। मोदी कैबिनेट की सबसे योग्य और सक्रिय मंत्री के रूप में सुषमा ने अपनी पहचान बनाई है। हर मोर्चे पर वह सबसे आगे खड़ी दिखाई देती हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से उन्हें लगातार स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों से जूझना पड़ रहा है। चर्चाएं ये भी हैं कि इसके चलते वह भी काफी समय से सक्रिय राजनीति से विराम लेना चाहती हैं। अगर इन खबरों पर यकीन किया जाए तो तय है कि पार्टी सुषमा का नाम राष्ट्रपति पद के लिए आगे बढ़ा सकती है। सुषमा के नाम पर न ही पार्टी में किसी को आपत्ति होगी न ही संघ को, दूसरे दलों में भी उन्हें काफी लोकप्रिय माना जाता है।
लालकृष्ण आड़वाणी
कभी पार्टी के शिखर पुरुष रहे लालकृष्ण आडवाणी आज मार्गदर्शक मंडल में रहकर अघोषित वनवास काट रहे हैं। तमाम योग्यताओं के बाद भी हालातों के चलते प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में असफल