नई दिल्ली। सरकार ने वर्ष 2030 तक देश में सिर्फ इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री ही करने की योजना सामने तो रख दी है लेकिन इस योजना को अमल में लाने के लिए बहुत बड़ी कोशिश करनी होगी। यह योजना मौजूदा पेट्रोल व डीजल कार बनाने वाली कंपनियों को तो प्रभावित करेंगी ही साथ ही तेल मार्केटिंग कंपनियों के कारोबार पर भी बहुत बड़ा असर डालने वाला है। यही नहीं जिस तरह से अभी हर जगह पेट्रोल व डीजल की बिक्री करने की व्यवस्था है उसी तरह से इलेक्टि्रक कारों को चार्जिग करने की व्यवस्था करनी होगी।
वैसे दुनिया की तेल कंपनियां भी मानने लगी हैं कि उनके उत्पादों का बाजार बहुत दिनों तक नहीं रहेगा। हाल ही में दुनिया की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी टोटाल ने कहा है कि वर्ष 2030 के बाद पेट्रोल व डीजल की मांग घटने लगेगी। इसके लिए उसने इलेक्ट्रिक कारों को सबसे बड़ी वजह बताई है। एक आकंलन के मुताबिक अभी दुनिया के कारों में सिर्फ एक फीसद कारें ही बिजली से चलने वाली हैं लेकिन वर्ष 2025 तक यह 20 फीसद और वर्ष 2030 तक 30 फीसद तक हो सकती हैं।
होंडा, टोयाटा, फॉक्सवैगन, निशान, प्यूजो, महिंद्रा, ऑडी जैसी दर्जनों कंपनियों ने वर्ष 2020 तक दुनिया भर में इलेक्टि्रक कारों के 120 नए मॉडल उतारने की घोषणा की है। इसके अलावा टेसला जैसी नई आईटी कंपनियों की योजना तो कुछ और ही हैं। वे तो हर बड़े शहर में इलेक्टि्रक कारों की पूरी की पूरी फ्लीट ही उतारने की तैयारी में जुटी हुई हैं। सरकार की तरफ से घोषणा के बाद अब इन कंपनियों के राडार पर भारत भी होगा।
क्या बंद होंगे पेट्रोल पंप
इलेक्ट्रिक कारों के आने से सबसे पहला असर पेट्रोल पंपों पर ही पड़ेगा। देश में इस समय 53 हजार पेट्रोल पंप है। सरकारी तेल कंपनियां आइओसी, एचपीसीएल, बीपीसीएल और निजी कंपनी रिलायंस अरबों डॉलर का निवेश इसमें कर चुकी हैं। यही नहीं देश में अभी तक की सबसे बड़ी रिफाइनरी महाराष्ट्र में लगाने की योजना अंतिम चरण में है। सवाल यह है कि 53 हजार पेट्रोल पंपों के साथ इन रिफाइनरियों का क्या भविष्य होगा। क्या पेट्रोल पंपों को इलेक्टि्रक कारों को चार्जिग करने वाले डिपो के तौर पर तब्दील कर दिया जाएगा?