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Wednesday, January 22, 2025

इस जातिगत समीकरण से मिली BJP को जीत



नई दिल्ली।बीजेपी ने तीन जाति बनाम सब जाति की सोशल इंजीनियरिंग के साथ यूपी में अभूतपूर्व जीत हासिल की। बीजेपी ने यादव-दलित और मुस्लिम वोट के अलावा बिखरे तमाम जाति के वोटों को एकजुट करने का बड़ा प्लान बनाया था, जो पूरी तरह सफल साबित हुआ। गैर यादव ओबीसी और अपर कास्ट के अलावा दलितों के एक हिस्से के वोट के साथ बीजेपी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा जो उसे अभूतपूर्व जीत तक पहुंचा गई।

विकास और जाति चक्रव्यूह
विकास और जाति के चक्रव्यूह के साथ पीएम नरेंद्र मोदी ने ऐसी अगुवाई की कि बीजेपी 2014 से भी बड़ी लहर बनाने में सफल रही। तब 80 लोकसभा सीटों में एनडीए 73 सीटें जीतने में कामयाब रहा, जिसमें अकेले बीजेपी के खाते में 71 सीटें आईं। यह यूपी के इतिहास में किसी भी दल को विधानसभा चुनाव में मिले सबसे बड़े जनादेश में से एक है। हालांकि पार्टी के अंदर टिकट बंटवारे को लेकर अंसतोष से कुछ चिंता जरूर सामने आई थी, लेकिन अमित शाह का दूसरे दलों के कद्दावर नेताओं को टिकट देने का दांव फिर चल गया। यूपी की इस जीत के बाद इसका असर पूरे राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ने की संभावना है।

गठबंधन की बिखरी रणनीति


अखिलेश यादव और राहुल गांधी भले ही बाद में आक्रामक तरीके से चुनाव प्रचार में उतरे, लेकिन न सिर्फ इसमें दोनों ने देरी की बल्कि अंत तक दोनों में समन्वय की साफ कमी नजर आई। मोदी को घेरने में दोनों पूरी तरह से विफल रहे। बिहार में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जो केमेस्ट्री थी वह दोनों के बीच गायब रही। अजीत सिंह और नीतीश कुमार को भी गठबंधन से अलग रखा गया जो अति आत्मविश्चास का कारण बना। साथ ही चुनाव के बीच आरक्षण पर संघ के नेताओं के आए बयान के बाद भी उसे गठबंधन बिहार की तरह मुद्दा बनाने में असफल रहा। कुल मिलकार अखिलेश अपने काम के दम पर वोट लेने के अति आत्मविश्वास में मात खा गए। तो राहुल अपने ही बुने जाल में उलझे रहे।

मायावती की सीमित राजनीति का अंत
बदले हालात के बावजूद मायावती अपनी पुरानी परंपरागत राजनीति की बदौलत इस बार भी मैदान में थीं। सिर्फ मुस्लिम और दलित वोट की बदौलत सत्ता पाने उतरीं मायावती बाकी वोट तो दूर दोनों से अपने बेस वोट को गंवा बैठीं। उनका चुनाव प्रचार भी बिखरा रहा। 2012, 2014 और फिर 2017 में मिली बड़ी हार के बाद अब मायावती के लिए यहां से अपनी पार्टी को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है। अब उनकी पार्टी के कई नेता उनका साथ भी छोड़ सकते हैं, साथ ही दलित वोट बैंक भी दरकने का अंदेशा है जिसपर बीजेपी की नजर है।

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