नई दिल्ली।
यूनाइटेड नेशन कार्यालय स्थित ह्यूमन राइट्स हाई कमिश्नर (ओएचसीएचसीआर) द्वारा नियुक्त चार विशेष व्यक्तियों ने संयुक्त रूप से असम में बंगाली मुस्लिम अल्पसंख्यकों के भेदभाव पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को पत्र लिखा है।
यूनाइटेड नेशन के चार विशेष नियोक्ताओं द्वारा 11 जून को लिखे गए आठ पन्नों के इस पत्र में अल्पसंख्यक मुद्दों पर फर्नांड डी वारेनेस, नस्लवाद, नस्लीय भेदभाव, विदेशियों के प्रति घृणा और इससे संबंधित असहिष्णुता के समकालीन मामलों पर ई टेंडेयी अचियुम, विचार व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रचार एवं संरक्षण परडेड केय और धर्म या विश्वास की आजादी पर ओएचसीएचआर के जिनेवा मुख्यालय के विशेष संबंधक अहमद शकील ने असम राज्य में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर अद्यतन करने की चल रही प्रक्रिया पर स्पष्ट रूप से अपनी चिंता व्यक्त की है। असम देश का एकमात्र ऐसा राज्य है, जिसका एनआरसी है। इसे पहली बार 1951 में तैयार किया गया था। उस वक्त असम राज्य के नागरिकों की संख्या 80 लाख थी।
1985 में केंद्र और असम में सबसे ज्यादा प्रभाव रखने वाले छात्र संगठन आसू के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है। बाद में सालों में 2005 में एनआरसी को अपडेट करने का फैसला किया गया और तभी से राज्य में एनआरसी की प्रकिया शुरु हुई। यूनाइटेड नेशन के इस पत्र में एनआरसी अद्यतन के संबंध में गलत नोटिस के आठ अलग-अलग आरोपों पर 60 दिनों के भीतर भारत सरकार से प्रतिक्रिया देने के लिए कहा गया है। इस पत्र में कहा गया है कि युनाइटेड नेशन के ह्यूमन राइट्स काउंसिल को इस रिपोर्ट पर विचार करने के लिए भेजा जाएगा।
यूनाइटेड नेशन स्थित ह्यूमन राइट्स हाई कमिश्नर द्वारा नियुक्त चार विशेष व्यक्तियों द्वारा विदेश मंत्रालय को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया ने असम में उन बंगाली मुस्लिम अल्पसंख्यकों के बीच चिंता और भय को जन्म दे दिया है जो अपनी नागरिकता साबित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज रखने के बावजूद एक विदेशी के रूप में कथित स्थिति के कारण लंबे समय से भेदभाव के शिकार होते रहे हैं। पत्र में आगे लिखा गया है कि जिन लोगों को अंतिम एनआरसी से बाहर रखा जाएगा, उन लोगों के निहितार्थों की रूपरेखा तैयार करने वाली कोई आधिकारिक नीति नहीं है। यह बताया गया है कि उन्हें विदेशी माना जाएगा और पूर्व जांच के अभाव में उनके नागरिकत अधिकारों को रद्द कर दिया जा सकता है। बाद में विदेशियों को ट्रिब्यूनल में उन्हें अपनी नागरिकता साबित करने के लिए कहा जा सकता है।