नई दिल्ली। जेल नहीं, वह पूरा यातना गृह है। वो नरक किसी को न नसीब हो। भारतीय कैदियों से वहां ऐसा अमानवीय व्यवहार किया जाता है, जिसे सोचकर भी रूह कांप जाती है। यह दर्द है पाकिस्तान की विभिन्न जेलों से हाल फिलहाल छूट कर अपने देश आए भारतीय कैदियों का। जेल में बिताए दिनों को याद कर ये कैदी आज भी सिहर उठते हैं।
करीब दो महीने पहले ही लाहौर के कोट लखपत जेल से करीब 16 साल की सजा काटकर वापस आए गुरदासपुर जिले के गांव अहमदबाद निवासी अशोक कुमार का कहना है कि वहां भारतीय कैदियों को जेलकर्मी बेरहमी से पीटते हैं। उन्होंने इस जेल में कई साल काटे हैं और पाकिस्तानी सुरक्षा कर्मियों की दरिंदगी को कई बार झेला है। गुरदासपुर के ही कस्बा भैणी मियां खां के गोपाल दास का दर्द भी कुछ ऐसा ही है। गोपाल दास पाकिस्तान की जेलों में 27 साल कैद काटकर मार्च, 2011 में रिहा होकर भारत लौटे हैं।
उनके मुताबिक, पाकिस्तान की जेलों में भारतीय कैदियों की सुरक्षा व भविष्य जेल अधिकारियों के रवैये पर निर्भर करता है। भारतीय कैदियों पर अमानवीय अत्याचार किया जाता है। गोपाल दास करीब तीन साल तक सरबजीत के साथ जेल में रहे हैं। जेल में उनसे मुलाकात में सरबजीत कहता था कि वह बेगुनाह है, लेकिन भारत सरकार ने मेरे केस की कोई पैरवी नहीं की। गोपाल दास ने बताया कि भारत के कई और कैदी भी पाकिस्तान की जेलों में गुमनाम जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, जिनके लिए भारत सरकार कुछ नहीं कर रही।
करीब पांच साल पहले कोट लखपत जेल से ही छूटकर आए होशियारपुर जिले के गांव नंगल खिडारियां के कश्मीर सिंह सरबजीत सिंह के दर्द से व्यथित हैं। उन्होंने कहा है कि सरबजीत सिंह के दर्द को भारत सरकार को समझना चाहिए। दूसरी तरफ, पाकिस्तान की कई जेलों में करीब बीस सालों तक बंद रहे भारतीय जासूस महबूब इलाही कहते हैं कि उन्हें पूरा यकीन है कि सरबजीत पर हमला अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ है।
कोलकाता निवासी 65 साल के इलाही यह भी बताते हैं कि जेल में रहने के दौरान उन्हें पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो की हत्या के लिए ब्लैंक चेक आफर किया गया था, लेकिन यह चेक किसने आफर किया था, यह खुलासा वह नहीं करना चाहते।