उर्दू अदब के मसीहा और मशहूर शायर व नाजिम-ए-मुशायरा जनाब अनवर जलालपुरी का हुआ देहान्त,लोगों में आई मायूसी……..
बहराइच :(अब्दुल अजीज) NOI :- “हम काशी काबा के राही, हम क्या जाने झगडा बाबा,
अपने दिल में सबकी उल्फत, अपना सबसे रिश्ता बाबा
हर इन्सां में नूरे खुदा है, सारी किताबो में लिखा है
वेद हो या इन्जीले मोक़द्दस, हो कुरान कि गीता बाबा”
जी ये इबारत और किसी की नही हमारे और आप सबके चहेते उर्दू अदब के पुरोहित न मशहूर शायर जनाब अनवर जलालपुरी के लबों से निकली हुई इबारत है,जो आज हम सभी से जुदा हो कर अपने मालिक-ए-हकीकी से जा मिले।मरहूम अनवर जलालपुरी एक मशहूर शायर ही नही एक मशहूर नाजिम-ए-मुशायरा भी थे जिन्होंने पूरी दुनिया मे अपनी एक अलग पहचान रखते हुए उर्दू अदब के चाहने व मानने वालों के दिलों पर राज करते थे।मरहूम बीते कई दिनों से शदीद तौर से बीमार चल रहे थे जिनको इलाज के लिये लखनऊ में भर्ती कराया गया था जिन्होंने आज अपनी जिंदगी की आखिरी साँस ली।
अनवर जलालपुरी का जन्म उत्तर प्रदेश के जलालपुर कस्बे के दलाल टोला मोहल्ले में 6 मई 1946 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।इनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा मकतब करामतिया दारुल फैज में हुई थी, इंटर तक की शिक्षा नरेंद्र देव इंटर कॉलेज जलालपुर ग्रहण करने के बाद स्नातक शिबली डिग्री कॉलेज आजमगढ़ से किया,अंग्रेजी विषय से परास्नातक की डिग्री अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लेने के साथ ही उर्दू से परास्नातक लखनऊ विश्वविद्यालय से किया. पीएचडी की डिग्री भी हासिल करने वाले अनवर 19 जुलाई सन 1973 को नरेंद्र इंटर कॉलेज में अंग्रेजी प्रवक्ता के रूप में नियुक्त हुए.अध्यापन कार्य के साथ-साथ लेखन व शेरो शायरी व मंच संचालन में अधिक रुचि होने के कारण देश में ही नहीं विदेशों में भी खूब वाह वाही बटोरी.लंबे समय से लखनऊ में ही रह रहे थे
अनवर जलालपुरी को प्रदेश का सबसे बड़ा सम्मान यश भारती दिया गया था. अवध के बड़े सम्मान में से एक माटी रत्न समेत कई अन्य प्रमुख पुरस्कार भी उन्हें मिले थे प्रसिद्द धार्मिक ग्रंथ गीता का उर्दू में काव्यात्मक अनुवाद उर्दू शायरी में गीता प्रस्तुत कर काफी सराहना पाई थी।अनवर जलालपुरी के निधन से उर्दू अदब का एक किला ढह गया है जिसकी पुनः तामीर नामुमकिन है।