नई दिल्ली – 13 अप्रैल, उन्नीस सौ उन्नीस को बैसाखी के दिन जलियावाला बाग में लगभग 10 हजार लोग इकट्ठा थे। आने वाले वक्त से बेखबर आजादी के ये मतवाले बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से ‘रॉलेट एक्ट’ के प्रावधानों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। एक घंटे बाद ही ब्रिगेडियर जनरल डायर अपने सैनिकों के साथ वहां घुस आया और बिना चेतावनी के हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। अंग्रेजों की 1650 राउंड गोलियों से एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए। इस दर्दनाक और क्रूर हादसे का प्रत्यक्ष गवाह था 20 साल का एक युवक उधम सिंह।
इस हत्याकांड में घायल होने के बाद भी जीवित बच गए इस युवक को मानों जीने का एक मकसद मिल गया। उन्होंने अपने भाई-बहनों की हत्या का बदला लेने के लिए बाग में गोली चलाने का आदेश देने वाले जनरल डायर को मौत की सजा देने की प्रतिज्ञा ले ली। लेकिन 1927 में खराब स्वास्थ के कारण डायर की मौत हो गई। उधम सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए घटनाक्रम के योजनाकर्ता और समर्थन करने वाले तत्कालीन पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर को अपने निशाने पर ले लिया। लेकिन इस बीच ब्रिटिश हुकूमत ने उसे वापस बुला लिया। अपने मिशन को अंजाम देने के लिए उधम सिंह वर्ष 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार व रिवॉल्वर खरीदी और माइकल डायर को ठिकाने लगाने के लिए उचित वक्त का इंतजार करने लगे। उन्हें 13 मार्च 1940 को अपने मकसद में कामयाबी मिली।
जलियावाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हॉल में चल रही बैठक में वक्ता रहे माइकल ओ डायर को उधम सिंह ने गोलियों का निशाना बनाया। डायर को दो गोलियां लगी और वह वहीं मारा गया। उधम सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया जिसके बाद उन पर मुकदमा चला। अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के साथ-साथ और लोगों को भी मार सकते थे, तो उन्होंने कहा कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।
4 जून, 1940 को माइकल डायर की हत्या के जुर्म में उधम सिंह को दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटिश सरकार ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए।
उधम सिंह ने अपनी फांसी की सजा पर कहा था, ‘मैंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि मेरी आत्मा में माइकल ओ डायर के लिए आग थी। वह इसी के काबिल था। वह मेरे लोगों की आवाज को मारना चाहता था, इसलिए मैंने उसे मार दिया। मैं पिछले 21 सालों से उसे, उसके किए की सजा देने की कोशिश कर रहा था। मैं खुश हूं कि मैंने अपना काम किया। मुझे मौत का खौफ नहीं है। मैं अपने देश के लिए मर रहा हूं। मैंने हिंदुस्तान की धरती पर पैदा होने का कर्ज चुका दिया है। मैंने देखा है अंग्रेजों के राज में मेरे देश के लोग भूख से मर रहे हैं। मैं इसके खिलाफ खड़ा हुआ हूं, ये मेरा कर्तव्य है। मेरी मातृ-भूमि के लिए मेरी मृत्यु से ज्यादा और बड़ा पुरस्कार क्या होगा।
इस घटना ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन को महत्वपूर्ण मोड़ दिया और भारत के नेताओं ने पूर्ण स्वराज की मांग की।
जलियावाला बाग की इस दर्दनाक घटना ने देश के हर जवान को झकझोर कर रख दिया था। यही वह घटना थी जिसने भगत सिंह को 9वीं के बाद पढ़ाई छोड़कर आजादी के आंदोलन में कूदने को मजबूर कर दिया था।