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Tuesday, September 17, 2024

एक राष्ट्र एक चुनाव पर पंचायती राज निदेशालय में हुई संघोष्ठी, वक्तों ने रखें अपने विचार

लखनऊ, रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी सेवा संस्थान और गंगा सेवा संस्थान के संयुक्त तत्वाधान में आज एक राष्ट्र एक चुनाव विषय पर एक संघोष्ठी का आयोजन राजधानी के पंचायतीराज निदेशालय के ऑडिटोरियम में किया गया। कार्यक्रम की मुख्य वक्ता भाजपा की सांसद मीनाक्षी लेखी, विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय अध्य्क्ष जस्टिस बी.एस कोकजे, रामभाऊ म्हालगी प्रबोधिनी संस्थान के निदेशक रविन्द्र साठे रहे।

कार्यक्रम की शुरुवात दीप प्रज्वलन से हुई तत्पश्चात अथितियों को बुके और स्मृति चिन्ह देकर समानित किया गया।

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए गंगा सेवा संस्थान के संयोजक अवधेश द्विवेदी ने आये हुए अथितियों का स्वागत करते हुए एक राष्ट्र एक चुनाव की रूपरेखा का विस्तृत वर्णन रखा।

कार्यक्रम में बोलते हुए रविन्द्र साठे ने अपनी संस्था के विषय मे बताते हुए कहा कि रामभाऊ म्हालगी एक आदर्श जनप्रतिनिधि थे। उनकी इच्छा थी कि जो राजनीती में है उनको प्रशिक्षित किया जाये। 1982 में इस संस्थान की स्थापना हुई जिसका उद्देश्य है राजनीतिक, और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वालो को प्रशिक्षित करना। इसके अतिरिक्त हमारी संस्था प्रबोधन यानी रिसर्च का काम भी करती है। प्रधानमंत्री ने तीन कामो को बढ़ावा दिया जिसमे एक देश एक राष्ट्र की अवधारणा सबसे प्रमुख है। इसी अवधारणा से प्रेरित होकर हमने मुम्बई एक संघोष्ठी की थी जिसमे पूरे देश से करीब 250 से लोग आये थे। जिसके बाद ये तय किया गया था कि इस विषय को लेकर हम पूरे देश मे जायेंगे।

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष बी.एस कोकजे ने कहा कि ये कोई नई बात नही है कि इस देश मे एक साथ चुनाव हो । इससे पहले 1967 तक एक साथ चुनाव हुए है। आज ये बात इस देश का दुर्भाग्य है कि पूरे साल देश मे कहीं न कही चुनाव होते ही रहते है। जिसके चलते हर राजनीतिक दल को पूरे साल चुनाव के मूड में रहना पड़ता है लिहाजा सरकारें वो सख्त निर्णय नही ले पाती है जो इसे देश के विकास के लिए जरूरी है क्योंकि सख्त निर्णयों के परिणाम आने में समय लगता है। इसलिए ये जरूरी है कि एक स्थायी सरकार के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव की अवधारणा को स्वीकार किया जाये।

यदि हम ये चाहते है कि एक राष्ट्र एक चुनाव हो तो सबसे पहले हमें लोकसभा और विधानसभा को भंग करने का प्राविधान हटाना होगा और इसमें में कोई ज्यादा दिक्कत नही है। बस इसमे इतना करना होगा कि हमें सभी विधानसभा और लोकसभा के चुनावों का समय एक साथ करना होगा साथ ही जिस तरह लोकसभा और विधानसभा के अध्यक्षों का निर्वाचन होता है ठीक उसी तरह सदन के अंदर प्रधानमंत्री का चयन हो और यदि प्रधानमंत्री के खिलाफ अविस्वाश है तो अविश्वास लाने वाले को अगले नेता का नाम देना होगा। इसके अतितिक्त हमें दलबदल कानून को भी बदलना होगा। उन्होंने कहा कि सदन भंग करने के नियम को बदलने से संविधान का मौलिक ढांचा नही बदलता है। इसलिए ये जरूरी है कि एक स्थाई सरकार के लिए एक राष्ट्र एक चुनाव की पद्यति लागू हो। क्योकि अभी लगतार हो रहे चुनाव के चलते सरकार दबाव में रहती है वो स्वछंद निर्णय नही ले पाती है।

नई दिल्ली से बीजेपी की सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि हमे व्यवस्था परिवर्तन के लिए 2014 में चुना गया था और राजनीति व्यवस्था की सबसे बड़ीकमी है कि कोई न कोई नेता कहीँ न कही चुनाव में फंसा ही रहता है। हर साल करीब 4 महीने किसी न किसी चुनाव में बर्बाद होते है। बार-बार चुनाव होने से जनता हर चुनाव में सहभागिता नही करती जिसके चलते हम अपने कर्तव्य से विमुख होते है। लोकतंत्र का पहला उसूल है कि हर भारतीय चुनाव में सहभागी बने। पर जब-जब लोकसभा के पहले विधानसभा के चुनाव हुए वोट प्रतिशत लगातार गिरा इसके तुलना जब जब चुनाव एक साथ हुए वोट का प्रतिशत बढ़ा पाया गया।2014 में सबसे ज्यादा वोट पढ़ें पर इससे ज्यादा वोट 1967 में पड़े थे।

उन्होंने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव की मांग सबसे पहले आडवाणी जी ने की थी अटल जी की सरकार में और ये हमारी 2014 के चुनावी घोषणा भी है।

लेखी ने कहा कि पूरे देश मे एक साथ चुनाव कराने पर लगभग 45 बिलियन खर्चा आएगा। 2014 के लोकसभा चुनाव में खर्चा 35 विलयन आया था ।जबकि एक अकेले गुजरात के चुनाव में 3 बिलयन का खर्चा आया था।

आज सबसे ज्यादा इसका विरोध कांग्रेस कर रही है। जबकि कांग्रेस नेता और 2010 में संसदीय समिति के सदस्य नाचीयप्पा ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि अब देश में एक राष्ट्र एक चुनाव की जरूरत है।

कुछ राजनैतिक दल ये कह रहे है कि एक राष्ट्र एक चुनाव में जनता के बीच से क्षत्रिय मुद्दे पीछे हो जायेंगे जबकि अभी हाल ही में हुए दो चुनाव में ये स्पष्ट हो गया है राष्ट्रीय मुद्दे कभी भी क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी नही हो सकते है। पहला राज्य दिल्ली है और दूसरा बिहार। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दिल्ली हुए विधानसभा चुनाव हम हारे यही चीज बिहार में लागू हुई। इसलिए ये कहना कि एक राष्ट्र चुनाव से क्षेत्रीय मुद्दें गायब हो जाएंगे पूरी तरह गलत है।

इस मौके पर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में काम करने वाली विभूतियों को सम्मानित भी किया गया। इस मौके पर भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ल व भाजपा प्रवक्ता शलभ मणि त्रिपाठी कार्यक्रम के संयोजक मनोज त्रिपाठी मौजूद रहे।

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