दीपक ठाकुर
राजस्थान में जब जब विधान सभा के चुनाव हुए तब किसी को ये एहसास नही था कि यहां कांग्रेस का राज स्थापित होगा लेकिन आंकड़ों में बहुमत पाने वाली कांग्रेस ने अबकी बार भाजपा को परास्त कर राजस्थान में पंजा स्थापित कर दिया।लेकिन इस बार फिर बहुमत के करीब रह कर भी कांग्रेस को कुछ संकट का सामना करना पड़ा कारण कोई और नही बल्कि उसके अपने ही थे।
1 साल 6 महीने और 25 दिन बाद रणस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने पार्टी में विरोध के स्वर बुलंद किये उनकी नाराज़गी इस बात को लेकर थी कि पार्टी ने उन्हें सिवाय डिप्टी सीएम के पद के कुछ नही दिया सारी मलाई सीएम को दे दी वो इसी बात को लेकर अपनी नाराजगी जताने लगे उन्होंने इस मामले को कई बार कांग्रेस आलाकमान के सामने रखने की कोशिश की लेकिन हासिल कुछ नही हुआ और हार के सचिन पायलट ने पार्टी से बगावत कर ली।
सचिन की बगावत का भाजपा ने भरपूर फायदा लेना चाहा भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों की बोली लगाना शुरू कर दी मामला जब तूल पकड़ने लगा तो सभी अपने अपने मे उलझे नज़र आये सचिन और गहलोत एक दूसरे से विमुख दिखाई दिए और बाकी विधायक मौके की नजाकत को समझते हुए अपना पत्ता दबाये हुए नज़र आये।
मंगलवार को वही हुआ जिसके कयास लागये जा रहे थे बागी सचिन पायलट ने कांग्रेस से किनारा करने में ही अपनी बेहतरी समझी और चुपचाप कांग्रेस से बगावत कर के कन्नी काट ली।लेकिन उन्होंने अपना पत्ता फिर भी नही खोला की आगे की उनकी रणनीति क्या है सूत्र बता रहे हैं कि सत्ता पे काबिज़ होने वाली भाजपा सपना देख रही है के सचिन को डिप्टी सीएम का पद दे कर सत्ता अपने हाथ मे ले ली जाए वही सचिन पायलग इस बार ऐसी गलती करने के मूड में नही है उनका कहना है कि सीएम पद दो तो सत्ता लो लेकिन भाजपा पूरी मलाई खुद खाने के मूड में नज़र आ रही है वही सचिन पायलट दोबारा ऐसी गलती करने को कतई राज़ी नही दिख रहे हैं तो फिलहाल की स्थिति ये हैं कि अब राजस्थान में कांग्रेस साफ होने की कगार पर है और गेंद सचिन और भाजपा के बीच इधर से उधर हो रही है नतीजा जो भी हो पर एक बात तय है वो ये के एमपी की तर्ज़ पे राजस्थान में भी कांग्रेस का तंबू उखड़ चुका है।