लखनऊ, गायत्री। गरीबी, अशिक्षा, और जागरूकता में कमी के चलते समाज में बहुत सी चीजो के प्रति गलत धारणाएं फैली हुई हैं। यही कारण है कि एचआईवी पीड़ीतों को कभी अपनों से तो कभी पड़ोसियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है, तो कभी समुदाय या शिक्षण संस्था में भी अपमान झेलना पड़ता है। जिस समय उन्हें अपनों के अपनेपन की खास जरूरत होती है उस समय लोग उन्हें अकेला और तनहा छोड़ देते हैं। लोगो के ऐसे व्यवहार से उनका हौसला बढ़ने के बजाये घटता जाता है और वे मानसिक तौर से भी काफी टूट जाते हैं। महिलाओ को तो पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर पुरषो की अपेक्षा ज्यादा परेशानी उठानी पड़ती है।
एचआईवी पॉजिटिव या एड्स से लोगो के डरने की एक वजह यह भी है की आम लोगो में ये धारणा फैली हुई है कि यह बीमारी चारित्रिक पतन के कारण होती है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है किसी भी कारण से शरीर में पहुँचने वाले संक्रमित खून से भी ये बीमारी हो सकती है। इसको लेकर विज्ञापनों के माध्यम से लगातार लोगो को जागरूक भी किया जा रहा है, और साथ ही साथ यह भी बताया जाता है की यह कोई छुवा-छूत की बीमारी भी नहीं है। लेकिन फिर भी आम आदमी इस बात को समझने के लिए तैयार नहीं हैं।
हमारे वातावरण में लगातार परिवर्तन होते जा रहें जिसकी वजह से नई नई बिमारीयां आती रहती हैं। और इन नई नई बिमारीयों के सामने आते ही वैज्ञानिको के सामने चुनौतियाँ खड़ी हो जाती हैं। की वे इसका निदान ढूंढे, इसीलिए इन बिमारीयों को नियंत्रित करने के लिए या फिर इन बिमारीयों से निजाज पाने के लिए दुनियां भर के वैज्ञानिकों की फौज इस दिशा में जुट जाती हैं, और कुछ ही दिनों में निदान भी ढूंढ लेती है। इसी प्रकार अब एड्स के इलाज के मामले में भी अब वैज्ञानिकों ने काफी उन्नति कर ली है।
आपको बता दे की एचआईवी अपने आप में कोई रोग नहीं है।,यह एक ऐसी स्तिथि है जिसमें हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक छमता काम हो जाती है। यदि खान -पान जीवन शैली में बदलाव लाए ,और साहस व समझदारी से काम ले तो इस बिमारी से लड़ा जा सकता है।
एड्स से डरे नहीं, बल्कि डट कर लड़े
एड्स से इतना हताश होने की बिल्कुल भी जरुरत नहीं है, आप इलाज करते हुए भी सामान्य जीवन जी सकते हैं। दुनियां में लगभग चार करोड़ एड्स पीड़ित ऐसा कर भी रहें। इनमें से तमाम तो बिल्कुल ही सामान्य जीवन जी भी रहें हैं।