रवीश ने कहा, ”मैंने इस लाल माइक को बहुत शिद्दत से चाहा है। इसे देखते ही आंखें चमक जाती हैं।”
टेलीविजन (NDTV) के मालिकाना हक में बदलाव की खबरों के बीच NDTV इंडिया के पत्रकार रवीश कुमार ने भावुक होते हुए एक पोस्ट लिखी है। ‘रवीश की रिपोर्ट’ के दिनों को याद करते हुए ‘मैं और मेरा ये लाल माइक’ शीर्षक से पत्रकार ने लिखा है कि उन्हें अपने इस माइक से बेहद प्यार है। हालांकि उन्होंने अपने उस डर को भी जाहिर किया है कि कहीं उनसे कोई ये ‘माइक’ छीन न ले। रवीश ने लिखा, ”पिछले दिनों जब ख़बर आई, सोशल मीडिया पर अफ़वाहें उड़ने लगीं तो सबसे पहले लाल माइक का ख़्याल आया। कोई छीन तो नहीं लेगा। मैं तो अकेला हो जाऊंगा।” रवीश का पूरा पोस्ट आप नीचे पढ़ सकते हैं।
“ज़िंदगी का अच्छा ख़ासा हिस्सा कैमरे के सामने और साथ गुज़रा है। अनगिनत लोगों के साथ मेरी तस्वीर होगी पर अपनी बहुत कम है। मुझे ये तस्वीर बहुत पसंद है। इसलिए नहीं कि इस तस्वीर में मैं हूं या मैं मुस्कुरा रहा हूं। बल्कि इसलिए कि मेरी आगोश में वो लाल माइक महबूब की तरह लिपटी है, जिसे लेकर कोई सोलह सत्रह साल उत्तर भारत के चंद राज्यों में भटकता रहा। कितने लोगों से मिला, कितने लोगों को सुना, कितने लोगों ने इसे देखते ही राहत की सास लेते हुए कहा कि एनडीटीवी वाला आ गया। रवीश कुमार आ गया। कितने लोगों के पसीने छूटे कि ये तो एनडीटीवी का माइक है। रवीश की रिपोर्ट में आपने देखा होगा कि एक लाल माइक चलता है। मैं अपने हाथ में उसे थामे हुए बढ़ता जा रहा हूं। मुझे पता ही नहीं चला कि कहां जा रहा हूं, कहां पहुंच रहा हूं।
मैं इस लाल माइक से प्यार करता हूं। जब कभी कोई इस लाल माइक को अपनी तरफ खींच कर कुछ कहने लगता तो मैं थोड़ा और झुक जाता था। मैं इस लाल माइक की तरह हो जाना चाहता था। मुझे माइक होना अच्छा लगता है ताकि लोग अपनी बात कह सकें। लोग मुझे अपना माइक समझें। मुझे देखते ही अपनी बात कहने लगे। लोगों ने मुझे निराश नहीं किया। एम्स अस्पताल में जब कई लोग आकर अपनी बात कहने लगे, डाक्टरों की तारीफ करने लगे, समस्याएं बताने लगे तो याद आ गया कि मैं यही तो होना चाहता था। लोग जब भी मुझे देखें मैं उन्हें लाल माइक की तरह दिखूं। किसी की तरह हो जाना ही प्यार होता है।
लाल माइक ने मुझे झुकना सिखाया। सुनना सिखाया। मैंने इसे अनगिनत दास्तानों को चुपचाप सुनते देखा है। सुनने का अभ्यास ही आपको सहना सीखाता है। आपको पता चलता है कि जो आपसे कह रहा है, उसका दुख कहीं ज़्यादा बड़ा है। आप उसके पास पहुंच कर उसके दुख के अकेलेपन को दूर करते हैं। उसकी आवाज़ के लिए आवाज़ बनते हैं।
पिछले दिनों जब ख़बर आई, सोशल मीडिया पर अफ़वाहें उड़ने लगीं तो सबसे पहले लाल माइक का ख़्याल आया। कोई छीन तो नहीं लेगा। मैं तो अकेला हो जाऊंगा। बहुत लोगों ने मुझे बेशुमार मोहब्बत दी है, उसकी कभी शिकायत नहीं कर पाऊंगा मगर जिसे मैं चाहता हूं, उसके बग़ैर कैसे रह पाऊंगा, पता नहीं।
मुझे ये पता था कि सत्ता के लोग हंस रहे थे। व्हाट्स अप पर मेसेज आ रहे थे कि अब तो सड़क पर आ गए। मेरे पेशे के लोग भी फोन कर हंस रहे थे। मैं सब सह रहा था क्योंकि मैं उस वक्त सिर्फ लाल माइक के बारे में सोच रहा था।
आज दिल्ली के एक हिस्से में शूट करने गया था। मनु नायर ने जब माइक निकाला तो उस पर लाल कवर नहीं था। उस दिन का धड़का भीतर तक बैठा था, बग़ैर लाल कवर देखकर सहम गया। मैंने टोक दिया कि इसका कवर कहां हैं? क्या आप ले कर आ सकते हैं? मनु नायर चुपचाप लाल कवर लाने चले गए और मैं उनके आने का इंतज़ार करता रहा। जैसे कोई दूर किसी रास्ते पर महबूब के आते हुए दिख जाने को बेताब होता है।
कई लोगों ने मेसेज किया कि बीएचयू के वीसी की उदंडता के बाद भी आप इतने सहनशील कैसे थे? मैं भी झुंझलाता हूं, कभी कभी गुस्सा भी आता है लेकिन इस लाल माइक ने ही मुझे सहना सिखाया है। मैं सिर्फ एक माध्यम हूं। बातों की आवाजाही का माध्यम।
मुझे कई रिपोर्टर के साथ काम करने का अनुभव हुआ है। कुछ बड़े रिपोर्टर जिनके पीछे पीछे मैं चल रहा था और कुछ मेरे हमसफर जो मेरे साथ और कुछ नए दोस्त जो पीछे पीछे चलते आ रहे थे। इनमें से जब भी किसी को हल्के से माइक पकड़ते देखा, अच्छा नहीं लगा। कई बार टोक दिया कि क्या रिपोर्टिंग करोगे, माइक तो ठीक से पकड़ो। माइक कैसे ढीला पकड़ सकते हो। क्या आप कलम को बिना ठीक से पकड़े आप लिख सकते हैं, नहीं न, तो उसी तरह आप बग़ैर ठीक से माइक पकड़े टीवी के पत्रकार नहीं हो सकते हैं। जिस किसी को ढीले ढाले तरीके से माइक पकड़ते देखा ,उनमें से कइयों ने पत्रकारिता करते हुए अपना रास्ता बदला या फिर पत्रकारिता को ही बदल दिया। उनके भीतर माध्यम को लेकर श्रद्धा कम नज़र आई क्योंकि वे माइक ठीक से नहीं पकड़ते थे। ये मेरा नज़रिया है। हो सकता है कोई सहमत न हो।
मैंने इस लाल माइक को बहुत शिद्दत से चाहा है। इसे देखते ही आंखें चमक जाती हैं। मुझे पता है आज के दौर में ऐसी भावुकता की कोई जगह नहीं है। मेरे ही कई दोस्त आराम से कंपनी छोड़ गए और दूसरे रंग का माइक थाम लिया। फिर कई रंग के माइक थामते चले गए। जीवन को आप कितना भी सहेज कर रखिए एक दिन छूट जाता है। कोई ताकतवर छिन लेता है, कोई सितमगर हड़प लेता है। याद रखूँगा।
मैं लाल माइक के बग़ैर ख़ुद को नहीं देख पाया। ये साथ रहा तो फिर कुछ नहीं चाहा। दफ़्तरी झुंझलाहटों से कौन बचा है, मैं भी नहीं बचा लेकिन जैसे ही बैग से इस माइक को निकलते देखता, मैं उन आवाज़ों को सुनने लगता था जो इसका इंतज़ार कर रही होती थीं। जो इसका दामन थामकर अनजान जगह से सत्ता प्रतिष्ठानों तक पहुंच जाने के लिए दौड़ पड़ती थीं।
मेरे अब तक के जीवन में यह माइक ही साथ रहा। जिसने मुझे थकने नहीं दिया। निराश नहीं होने दिया और डरने नहीं दिया। मैं भी इसी के लिए इसके साथ रहा। कभी ये साथ नहीं होगा, इस ख़्याल से ही बिजली कौंध जाती है। आज कश्मीरी गेट से निकलते वक्त ख़ुश था क्योंकि लाल माइक साथ था। एक सपने की तरह हाथ में आया था।
मुझे याद है, जब पहली बार किसी से पूछने के लिए लाल माइक बढ़ाया था, मेरे अंदर बेइंतहा ख़ुशी दौड़ गई थी। मेरा डर निकल गया था। पूछने के बदले इस माइक ने मुझे बोलना सीखा दिया। मैं रिपोर्टर बन गया । इस माइक से मोहब्बत इतनी थी कि एंकर बनने का प्रस्ताव कभी मन से स्वीकार नहीं किया। हमेशा लगता था कि ये छूट जाएगा और इसके बग़ैर दुनिया नहीं देख सकूंगा। लोगों के जीवन तक नहीं पहुंच सकूंगा।