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Wednesday, September 18, 2024

कर्नाटक सरकार गठन के राजनैतिक ड्रामे का अंत और राजनीति में बढ़ती जोड़तोड़ खरीद फरोख्त की परम्परा पर विशेष ।

सीतापुर-अनूप पाण्डेय,अमरेंद्र पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश ,राजनीति एक ऐसा पेशा है जिसमें इज्जत बेइज्जती मान मर्यादा वसूल सिद्धांत कुछ भी मायने नहीं रखता है।जिस तरह अखाड़े में पहलवान चारों खाने चित्त होने से पहले हार नहीं मानता और हौसला बुलंद रखता है उसी तरह राजनीति में नेता भी कभी अपनी हार नहीं मानता है और मतगणना होने तक अपनी मूंछें ऐंठता रहता है। राजनैतिक बेहाई का आलम यह होता है कि वह मतगणना के बाद भी वह अपने को पराजित नहीं मानता है और बेइमानी करने का आरोप लगाने लगता है।लोकतान्त्रिक व्यवस्था में स्पष्ट बहुमत और मजबूत विपक्ष से लोकतंत्र लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूती मिलती है किन्तु अस्पष्ट खंडित जनादेश से लोकतांत्रिक मर्यादाओं की हत्या होने लगती है और सारे वसूल सिद्धांत टूटकर बिखरने लगते हैं।लोकतंत्र में जब स्पष्ट बहुमत न मिलने की दशा में सभी मुख्य दल सत्ता मे आने के लिए कूटनीतिक जोड़तोड़ खरीद फरोख्त और वक्ती गठबंधन करने की कोशिश करते हैं और जो सफल हो जाता है उसे राजसिंहासन मिल जाता है और जो चूक जाता है वह विपक्ष की शोभा बन जाता है।इधर पिछले दिनों हुये विधानसभा चुनावों के परिणाम किसी भी दल के लिये स्पष्ट बहुमत नही मिले जिसके फलस्वरूप सत्ता हासिल करने के लिए जोड़तोड़ खरीद फरोख्त और कूटनीति को बढ़ावा मिला। गोवा मिजोरम मणिपुर में भाजपा द्वारा कूटनीतिक जोड़तोड़ गठबंधन के बल पर बनाई गई सरकारों का बदला कर्नाटक चुनावों के बाद सरकार गठन के समय विपक्ष ने अदालत के सहारे संगठित सुरक्षित संख्या बल की बदौलत ले लिया है।सबसे बड़े दल के नेता होने के नाते मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले भाजपा के यदुरप्पा को आखिरकार कल सदन में भावपूर्ण भाषण के साथ साथ इस्तीफा देना पड़ गया।महामहिम राज्यपाल द्वारा बहुमत सिद्ध करने की एक पखवाड़े की दी गई समय सीमा को सुप्रीम कोर्ट ने अड़तालिस घंटे में बदल दिया था। कम समय सीमा के कारण सभी राजनैतिक दलों ने अपने विधायकों घेराबंदी एवं चौकसी कर ली और जोड़तोड़ खरीद फरोख्त की बाजार नहीं लग पायी। इस समय भाजपा खेमें में खमोशी तो विपक्षी खेमे में जश्न मनाया जा रहा हैं। विपक्ष को लग रहा है कि उसने गोवा मणिपुर बिहार मिजोरम का बदला ले लिया है और आने वाले दिनों में उन्हें भी बड़ा दल होने के नाते छीन लेगें। भाजपा का विजय अभियान आखिरकार कर्नाटक में आकर मात्र दो एक विधायक की व्यवस्था न हो पाने से रूक गया है। कर्नाटक चुनाव को आने वाले लोकसभा चुनावों की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा रहा है इसीलिये इस पर फतह पाने के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों ने जान लगा दी थी। भाजपा को यहाँ पर शायद पहली बार इतनी जबरदस्त सफलता मिली है। मात्र आठ विधायकों की कमी ने उसेे स्पष्ट बहुमत से दूर करके भाजपा के विजय रथ रोक दिया है और कांग्रेस एवं जेडीयू की गलबहियाँ की अगुवाई में सरकार बन गयी है। वैसे राजनीति में एक दो संख्या बल की कमी को कभी भी पूरा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट महामहिम के आदेश के अन्य आरोपी पहुलओं की सुनवाई कर रहा है। एक देश एक नीति के अभाव में एक बार फिर महामहिमों के गरिमापूर्ण पद को गहरा आघात पहुंचा है और लोकतांत्रिक व्यवस्था प्रभावित हुयी है।

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