सीतापुर-अनूप पाण्डेय,देव दत्त त्रिपाठी/NOI-अब खाकी वर्दी में सजा डाकिया नजर नहीं आता और अगर भूले भटके दिख भी जाए तो पहले जैसी खुशी नहीं होती क्योंकि सूचना क्रांति के इस दौर में कागज की चिट्ठी पत्री को फोन, एसएमएस और ई-मेल संदेशों ने कोसों पीछे छोड़ दिया है।
लेकिन जिस तेजी से अत्याधुनिक संचार सेवा का प्रसार हो रहा है उससे लगता है कि बहुत जल्द ही डाक और डाकिया केवल कागजों में सिमटे रह जाएंगे।
सामाजिक चिंतन देवेन्द्र कश्यप कहते हैं।की एक समय था जब हर घर को डाकिया कहलाने वाले मेहमान का बेसब्री से इंतजार होता था और दरवाजे पर उसके कदमों की आहट घर के लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट ला देती थी। लेकिन आज सूचना क्रांति के इस दौर में यह डाकिया लुप्त होता जा रहा है। अब तो डाकिया नजर ही नहीं आता जबकि पहले उसकी आहट से लोग काम छोड़ कर दौड़ पड़ते थे।
डाकखानों में गुम हो गईं दादा-दादी की चिट्ठीयां, अब नहीं दिखते पोते के टेंढे मेढ़े लिखे अल्फाज
गुजरे जमाने की बात हुईं चिट्ठीयां
अब डाकखानों में दादा-दादी के नाम वो चिट्ठीयां जैसे गुम सी हो गई हैं। जिनके ऊपर लिखा होता था ”मेरे प्रिय, दादा-दादी जी…“। जिसे देखते ही दादा को एहसास हो जाता था कि चिट्ठी पर लिखे टेढ़े मेढ़े शब्द उसके पोते ने कांपते हाथों से पहली बार मेरे नाम लिखा है। चेहरा खिल उठता था। दादा को अपनी खुशी का इजहार चिट्ठी से पहुंचाने में हफ्ते लग जाया करते थे।
वहीं अगर अब के दौर की बात करें तो गुलजार की लिखी ”जबां पर जायका आता था जो साफा पलटने का, अब उंगली क्लिक करने से बस एक झपकी गुजरती है …“ पंक्तियां याद आ जाती हैं। जी हां, अब डाक विभाग भी यह मानता है कि अब वो दादा-दादी, नाना-नानी या हालचाल पूछने वाली चिट्ठियों का दौर खत्म हो गया। अब डाक विभाग में भी नजर नहीं आतीं। क्योंकि उन चिट्ठीयों की जगह अब कम्प्यूटर और मोबाइल ने ले लिया है। जिस संदेश को पहुंचने में कई बार सप्ताह से महीने तक लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता था। दरवाजे के सामने डाकिया को देखते ही चेहरा खिल उठता था। अब ना तो वो चिट्ठीयां दिखती हैं और ना ही इंतजार। पलक झपकते ही लोग फोन पर एक दूसरे का हालचाल ले रहे हैं। संदना पोस्ट मास्टर कल्लू गुप्ता ने बताया कि अब दादा-दादी, नाना-नानी या चिट्ठीयां लिख कर हालचाल लेने का चलन गायब सा हो गया है। मोबाइल, कम्प्यूटर का जमाना है। लोग फोन पर हालचाल लेने के साथ ही वाट्सएप, फेसबुक, ई-मेल, ट्वीटर सहित अन्य माध्यम का पूरा उपयोग कर रहे हैं।
डाक विभाग सेवा कोरियर कंपनियों पर भारी
उन्होंने कहा कि यह कहना गलत होगा कि वो चिट्ठीयां बंद हो गईं तो डाकखाने भी बंद होने की कगार पर हैं। बल्कि पहले की अपेक्षा कोरियर, स्पीड पोस्ट में बढ़ोत्तरी ही हुई है। निजी कोरियर कंपनियां आज भी डाक सुविधा से काफी पीछे हैं। डाक विभाग लगातार कोरियर, स्पीड पोस्ट करने वाले निजी संस्थानों को पीछे करता आ रहा है। सीएजी की रिपोर्ट में भी यह सामने आया है। डाक विभाग की तेजी का ही असर है कि आज भी लोग विभिन्न जगहों के दस्तावेज, नौकरी संबंधित लेटर, विभिन्न जगहों के लिए किए जाने वाले आवेदन, रोजगार के लिए आवेदन सहित अन्य चीजें डाक विभाग के माध्यम से ही भेज रहे हैं।
समय के साथ डाक विभाग हुआ अपग्रेड
आधुनिकता के दौर में डाक विभाग ने भी खुद को तेजी से अपग्रेड किया है। ताकि निजी कंपनियों को कड़ी टक्कर दे सकें। वर्तमान में ना केवल डाकविभाग कंप्यूटरीकृत हुआ है। बल्कि आधुनिक प्रणाली का भरपूर उपयोग हो रहा है। जो लोग कोरियर कर रहे हैं। उन्हें कोरियर रास्ते में कहां तक पहुंचा इसकी पल-पल जानकारी मिल रही है। डाक विभाग की अच्छी सेवा के कारण ही लोगो का इस पर विश्वास बना हुआ है। इसके अलावा डाक विभाग विभिन्न लाभकारी व सरकारी योजनाओें लोगों को लाभान्वित भी कर रहा है। पोस्ट मास्टर कल्लू गुप्ता ने बताया कि आज भी देश में जितने राष्ट्रीयकृत बैंक हैं। उन सभी के खाताधारकों को मिला लिया जाए तब भी डाक विभाग के खाताधारकों तक नहीं पहुंचते। उन्होंने बताया कि डाक विभाग अपनी विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से लगातार लोगों को लाभ पहुंचा रहा है।
राष्ट्र को जोड़ने का मजबूत साधन
डाकघर ने राष्ट्र को परस्पर जोड़ने, वाणिज्य के विकास में सहयोग करने और विचार व सूचना के अबाध प्रवाह में मदद की है । डाक वितरण में पैदल से घोड़ा गाड़ी द्वारा, फिर रेल मार्ग से, वाहनों से लेकर हवाई जहाज तक विकास हुआ है । पिछले कई सालों में डाक लाने ले जाने के तरीकों और परिमाण में बदलाव आया है । आज डाक यंत्रीकरण और स्वचालन पर जोर दिया जा रहा है, जिन्हें उत्पादकता और गुणवत्ता सुधारने तथा उत्तम डाक सेवा प्रदान करने के लिए अपना लिया गया है ।
डाक सेवाओं के सामाजिक और आर्थिक कर्तव्य हैं जो कारोबारी नजरिए से बिलकुल अलग हैं । विशेषतः विकासशील देशों में ऐसा ही है । भरोसेमंद डाक व्यवस्था आधुनिक सूचना व वितरण ढांचे का अहम अंग है । इसके अलावा वह आर्थिक विकास और गरीबी कम करने में एक महत्वपूर्ण साधन है ।
स्थापना:-
1766 : लार्ड क्लाइव द्वारा प्रथम डाक व्यवस्था भारत में स्थापित
1854 : भारत में पोस्ट ऑफिस को प्रथम बार 1 अक्टूबर 1854 को राष्ट्रीय महत्व के प्रथक रूप से डायरेक्टर जनरल के संयुक्त नियंत्रण के अर्न्तगत मान्यता मिली। 1 अक्टूबर 2004 तक के सफ़र को 150 वर्ष के रूप में मनाया गया। डाक विभाग की स्थापना इसी समय से मानी जाती है।
1863 : रेल डाक सेवा आरम्भ की गयी
1879 : पोस्टकार्ड आरम्भ किया गया
1880 : मनीआर्डर सेवा प्रारंभ की गई
1911 : प्रथम एयरमेल सेवा इलाहाबाद से नैनी डाक से भेजी गई
1935 : इंडियन पोस्टल आर्डर प्रारंभ
1972 : पिन कोड प्रारंभ किया गया
1984 : डाक जीवन बीमा का प्रारंभ
1986 : स्पीड पोस्ट (EME) सेवा शुरू
1995 : ग्रामीण डाक जीवन बीमा की शुरुआत
2000 : ग्रीटिंग पोस्ट सेवा प्रारंभ
2001 : इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रान्सफर सेवा (EFT) प्रारंभ
3 जनवरी 2002 : इन्टरनेट आधारित ट्रैक एवं टेक्स सेवा की शुरुआत