लखनऊ,न्यूज़ वन इंडिया-दीपक ठाकुर। गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी की सीधी लड़ाई देखी जा रही है कोई भी दल अपनी बात जनता तक ले जाने में ज़रा भी कोताही नही बरत रहा है फिर चाहे माध्यम जन सम्पर्क का हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़रिए वो चाहता है कि उसकी बात जनता के बीच जाए और सकारात्मक असर दिखाए।ऐसा ही कुछ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी किया जिसके तहत उन्होंने एक निजी चैनल को एक घण्टे का इंटरव्यू दिया और अपनी बात रखी।
इसी इंटरव्यू के प्रसारण पर चुनाव आयोग ने भाजपा से शिकायक मिलने के बाद रोक लगा दी हालांकि इसके कुछ अंश लोगों ने ज़रूर देखे पर पूरा इंटरव्यू चुनाव आयोग के चाबुक की भेंट चढ़ गया।इस पर कांग्रेस पार्टी ने एतराज़ जताया और भाजपा पर भी चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज की पर भाजपा को लेकर चुनाव आयोग फिलहाल उतना सख्त नही दिखा अब कारण शायद यही हो सकता है कि उसके द्वारा भाजपा पर की गई शिकायत की जांच नही हो पाई होगी।
पर सवाल यही उठता है कि जब कांग्रेस या कोई अन्य विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल की शिकायत वहां करता है तो कार्यवाही में इतना समय क्यों लगता है जबकि भाजपा द्वारा की गई शिकायत पर त्वरित कार्रवाई कर दी जाती है।ऐसा नही है कि आचार संहिता का अनुपालन करना विपक्ष की ही जिम्मेवारी है सत्ता पक्ष के लिए भी सभी नियम बराबर माने जाते है पर इस चुनाव में जिस तरह भाजपा के हर प्रोजेक्ट को प्रस्तुत किया गया उससे तो यही लगा कि मीडिया भी भाजपा प्रचारक की भूमिका में आ गई है वही विपक्ष को हल्के में ले रही है।तो यहां जानना सिर्फ यही है कि क्या चुनाव आयोग पर भी सत्ता का कोई दबाव हॉबी होता है क्या?
उम्मीद है कि नही होता होगा क्योंकि लोकतंत्र को मजबूती देने में इसकी अहम भूमिका मानी जाती है पर अगर ऐसा वास्तव में होता है कि कहीं ना कहीं सत्ता पक्ष के लिए साफ्ट कार्नर रखना उनकी मजबूरी है तो ये बात लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती है।लेकिन यहां एक बात आज भी स्पष्ट नही हो रही कि चुनाव आयोग पर विपक्ष ही सवाल क्यों खड़े करता है जब सत्ता में होता है तो उसके साथ ही नज़र आता है।