दीपक ठाकुर-NOI।
एक ओर जहां कांग्रेस पार्टी ये कहते नही थकती के देश की जनता का मन मोदी से हट चुका है और वो बदलाव के मूड में है वही दूसरी तरफ वो इतनी भी हिम्मत नही जुटा पा रही कि चुनाव में अपने दम पर जनता के बीच जाए।जैसा कि सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है उसे देख कर यही लगता है कि कांग्रेस पार्टी खुद को शून्य समझने लगी है।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि उत्तर प्रदेश में बसपा सपा गठबंधन बन चुका है और इस गठबंधन ने कांग्रेस को ठेंगा भी दिखा दिया है उसके बावजूद कांग्रेस विकल्प की तलाश में भटकती हुई पहुंची है सपा से अलग हुई प्रसपा की ओर और आखिरकार उसे चुनावी सहारा मिल ही गया जिसका एलान सम्भवता एक दो दिन में होने की बात भी सामने आ रही है।
अब यहां सवाल ये उठता है कि जो राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका गांधी तक को सक्रीय राजनीती में ले आये है आखिर उन्हें किस बात का खतरा नज़र आ रहा है जो नई पार्टी के साथ गठबंधन को तैयार हो गए हैं।एक तरफ तो राहुल मोदी के खिलाफ लंबी लंबी स्पीच देते है हर मुद्दे पर उन पर निशाना साधते है और ये भी कहते हैं कि जनता जुमले की सरकार से ऊब गई है तो उनको चुनावी मैदान में आने के लिए किसी सहारे की आवश्यकता क्यों पड़ रही है?क्यों राहुल गांधी राष्ट्रीय पार्टी को मजबूर कर रहे हैं कि वो किसी का भी हाथ थाम ले और चुनावी राण में उनका सहायक बने आखिर क्यों क्या राहुल की सारी वो बातें हवाहवाई हैं
जो वो मोदी सरकार के खिलाफ बोलते हैं या उनको इस बात का इल्म है कि अभी भी मोदी में बहुत मैजिक शेष बचा है।