नई दिल्ली – अगले लोकसभा चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा आगे करने पर भाजपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसके बावजूद कांग्रेस के चुनावी अभियान में तुरुप का पत्ता मोदी ही होंगे। कांग्रेस अब मान चुकी है कि अगले चुनाव में उसका बेड़ा विकास पर केंद्रित चुनाव से पार नहीं हो सकता। लिहाजा, वह सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता की बहस को तेज कर मोदी के विकास मॉडल की भी धज्जियां उड़ाएगी। मोदी के दावों को झूठा साबित करने के साथ-साथ धर्मनिरपेक्षता के कार्ड से राजग के जदयू जैसे सहयोगियों पर भी साथ छोड़ने का दबाव कांग्रेस ने बढ़ाना शुरू ही कर दिया है।
जमीन से लेकर साइबर की दुनिया तकमें कांग्रेस के प्रबंधकों ने अपनी रणनीति पर अमल भी शुरू कर दिया है। संसद का बजट सत्र निपटने के बाद कांग्रेस मोदी कार्ड को और तेजी से चलाने से पहले राजग की एकता पर सांप्रदायिकता के मुद्दे से वार करेगी। साथ ही गुजरात दंगों के साथ-साथ वहां पर अल्पसंख्यकों और दलितों के साथ विकास में भेदभाव की तस्वीरों का भी ज्यादा आक्रामक तरीके से पूरे देश में प्रचार होगा। पूरे देश में भेजे गए कांग्रेस के पर्यवेक्षकों की आ रही रिपोर्ट का कांग्रेस के रकाबगंज स्थित वार रूम में थिंकटैंक लगातार अध्ययन कर रहा है। कांग्रेस की प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष बनाए गए पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह मौजूदा हालात का आकलन कर अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विमर्श कर रणनीति बना रहे हैं।
दरअसल, भाजपा के चुप रहने के बावजूद कांग्रेस का थिंकटैंक मान चुका है कि अगले चुनाव में नरेंद्र मोदी ही उनका चेहरा होंगे। जिस तरह से मोदी ने गुजरात के विकास मॉडल को आगे रख अपनी मार्केटिंग जनता खासतौर से शहरी आबादी के बीच शुरू की है, उससे एक तबका प्रभावित होता हुआ दिख रहा है। मोदी का कोई भाषण ऐसा नहीं हो रहा, जिसमें वह अटल बिहारी वाजपेयी के विकास मॉडल का जिक्र न करते हों।
कांग्रेस की चिंता यह बढ़ गई है कि हिंदीभाषी पंट्टी में हिंदुत्व की चाशनी में पका विकास का मोदीनुमा मॉडल कुछ काम करता भी दिख रहा है। सवर्णो के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और बिहार से कांग्रेस के पर्यवेक्षकों ने रिपोर्ट भेजी है कि गैर यादव पिछड़ा वर्ग तबके में भी मोदी की पैठ बढ़ी है। इधर, राहुल गांधी को जबसे कांग्रेस ने आगे किया है, तबसे मोदी ने राष्ट्रीय मंच पर लगातार ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि दोनों की तुलना शुरू हो गई है। मोदी बनाम राहुल और विकास पर बढ़ती बहस से कांग्रेस बच रही है। उसका मानना है कि केंद्र में 10 साल के शासन के बाद सत्ता विरोधी भावनाएं ज्यादातर उसके खिलाफ जा सकती हैं।
ऐसे में बहुसंख्यकों को नाराज करे बगैर मोदी को केंद्र में रखकर कांग्रेस ने सांप्रदायिकता की बहस तेज कर दी है। साइबर दुनिया यानी इंटरनेट और सोशल साइट्स पर मोदी की सेना की पैठ को भांपते हुए कांग्रेस ने तीन माह पहले ही जवाबी तैयारी कर ली थी। इसी का नतीजा था कि राहुल को अगर मोदी समर्थकों ने पप्पू के नाम से हंसी का पात्र बनाया तो जवाब में कांग्रेस समर्थकों ने मोदी को फेंकू [झूठे दावे करने वाला] करके साइबर दुनिया में स्थापित करने की कोशिश की।