सीतापुर-अनूप पाण्डेय, राकेश पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर हरगाँव कार्तिक पूर्णिमा मेले में चल रही रामलीला रासलीला के अन्तर्गत आज दूसरे दिन नारद मोह का सफल मंचन किया गया। जब नारद जी को तपस्या के दौरान अहंकार की उत्पत्ति हो जाती है तब उनका अहंकार दूर करने के लिये क्षीरसागर वासी भगवान विष्णु जी ने माया का नगर बसाकर वहां के राजा शीलनिधि की पुत्री विश्वमोहनी के स्वयंबर की रचना लक्ष्मी जी की मदद से की। जहाँ बड़े दूर दूर के राजा व राजकुमार पधारे। लेकिन नारद अपने पिता बृम्हा जी की बात न मानकर भगवान विष्णुजी से निज स्वयंबर हेतु हरि रूप (बंदर) का रूप लेकर स्वयंबर में पहुँचे। वहां राजकुमारी विश्वमोहनी ने भगवान विष्णु का वरण कर नारद के अहंकार को दूर कर स॔सार का मार्ग प्रशस्त किया । साथ ही अपना बंदर का रूप जल में देखकर क्रोध आया और दोनों द्वारपाल जय -विजय को श्राप तीन जन्मों का देकर भगवान विष्णु को भी श्राप देकर विदा किया। नारद के विविध श्रापों को भगवान विष्णु अंगीकार करते हुऐ मंद मंद मुस्कुराते रहे। नारद के श्रापों को अंगीकार करने के बाद भगवान विष्णु ने माया को दूर किया तब नारद को अपनी भूल का अहसास हुआ और भगवान से अपनी भूल की माफी भी मांगी। तब उस समय भगवान विष्णु ने भगवान भोले नाथ की शरण में जाने को कहा ।