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Monday, January 20, 2025

किसान बिल जब किसान के हित का नही फिर ज़बरदस्ती क्यों???

इरफान शाहिद

आज हम जय जवान जय किसान का नारा तो बड़े जोश के साथ लगाते हैं लेकिन जब यही किसान कृषि कानून को लेकर सर्द रातो में सड़कों पर हैं तो इसे क्या माना जाए क्या इसे ये माना जाए कि किसानों का सम्मान सिर्फ नारे तक ही सीमित है या किसान को लेकर हमारी सरकार वाकई में संवेदनशील है।

यहां सवाल ये उठता है कि लगभग 1 महीना होने को है और कृषि कानून को रद्द करने की मांग लेकर किसान आंदोलनरत है फिर क्या वजह है जो सरकार किसानों के लिए कुछ भी कर पाने में असहज महसूस कर रही है।एक तरफ जहां सरकार कहती है कि कृषि कानून बिल पूरी तरह किसानों की हित के लिए बना है लेकिन वही दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि उन्हें ये बिल कतई मंज़ूर नही अब हो सकता है किसानों के मन मे ये भय हो कि कानून से उनके अधिकार धीरे धीरे करके छीन लिए जाएंगे या किसान ये सोच रहा है कि इसमें प्राइवेट सेक्टर उन पर हावी होकर मन माफिक काम करेगा।

ऐसे ही कई सवाल किसानों के मन मे हैं जिसका उत्तर देने के लिए सरकार कई बार वार्ता कर चुकी है लेकिन किसान मान नही रहे वो कहते हैं कानून वायस लीजिये हमें नही चाहिए आपका नया कानून तो फिर सरकार किस बात को लेकर ज़िद पे अड़ी है ये भी हमारी समझ से परे है।सरकार किसान आंदोलन को तवज्जो ना देकर ये बता रही है कि कुछ किसान ही इसके विरोध में हैं बाकी सब खुश हैं तो वही अब जनता पर भी किसान आंदोलन से फर्क पड़ता दिखाई देने लगा है।माना की किसान नाराज़ हैं तो सरकार का क्या फ़र्ज़ है यही ना कि उनकी नाराज़गी दूर की जाए तो आखिर वजह क्या है जो सरकार अपने फैसले से पीछे हटने को ही तैयार नही सरकार के इसी रुख से अब किसान अधीर होने लगा है उसने सरकार को चेतावनी दे डाली की वो आग से ना खेले यानी किसान आंदोलन को हल्के में ना ले लेकिन सरकार के लिए सब नार्मल है ऐसा क्यों ये बता पाना बड़ा मुश्किल है अब तो आने वाले समय मे ही पता चखेगा के आखिर ये सरकार किसान हितैषी है या विरोधी अगर हितैषी है तो किसानों को मनाएगी अगर नही तो लड़ाई दूर तक लेकर जाएगी।

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