
दीपक ठाकुर:NOI।
ये कोरोना वायरस गरीबो की ज़िंदगी मे एक ऐसा कोमा लेकर आया है जिसके खत्म होने का कोई नामोनिशान ही नज़र नही आ रहा है एक तरफ जहां देश मे मज़दूरों के पलायन सिर्फ इस लिए हो रहे हैं ताकि उन्हें सुकून की दो वक्त की रोटी मिल सके तो वही कुछ ऐसे गरीब लोग भी हैं जिनका ना कोई बाहर है ना इस शहर में उनको तो बस लोगो के सहारे ही जीना पड़ रहा है।

दरवाज़े के आगे बैठे इन दो लोगो की तस्वीर को ज़रा ध्यान से देखिए ये वही लोग हैं जो आपके शहर में रोज़ कमा कर खाया करते थे लेकिन लाकडाउन ने इनकी आंखों में एक अजीब सा सूनापन ला दिया है जो टकटकी लगाए हर दरवाज़े को निहारती है

कि शायद कही से उनको रोटी और पानी मिल जाये ताकि उनका आज का दिन ठीक से गुज़र जाए।बड़ी विडंबना है हमारे देश की जहां गरीबो की बात तो बहुत होती है पर गरीबो पर मेहरबानी बहुत कम होती नजर आती है तस्वीर में बैठे ये दोनों भी दिहाड़ी मजदूर है जिनको दो घरों का दरवाजा इसलिए खटखटाना पड़ा ताकि इनका पेट भर सके ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या गरीबों के लिए सरकार की तरफ से किये जा रहे काम सिर्फ कागज़ी हैं या सरकारी नुमाइंदों की लापरवाही इनको ऐसा करने पर विवश कर रही है।
