शरद मिश्रा”शरद”
लखीमपुर खीरी:NOI- राष्ट्रीय स्तर पर हो रही वन्यजीव गणना खीरी जिले के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। क्योंकि यहां हर साल दुधवा नेशनल पार्क और किशनपुर सेंचुरी से निकलने वाले बाघों और इंसानों के बीच संघर्ष आम बात हो गई है। इस संघर्ष में जंगल के सीमाई गांव के दर्जनों लोगों की जान भी चली जाती है। कभी-कभार हालात इतने बेकाबू हो जाते हैं कि आखिर में जंगल के राजा को एक ट्रेंकुलाइज कर पिंजरे में कैद करना पड़ता है।
डब्लूडब्लूएफ और डब्लूटीआई के विशेषज्ञ कई वर्षों पुरानी संघर्ष से पूर्ण रूप से वाकिफ है। और वन्यजीव गणना से ही इसका हल निकलने की जुगत में है। भारतीय वन्यजीव संस्थान के निर्देश पर शुरू हुई। शाकाहारी और मांसाहारी वन्यजीवों की गणना शुरू हो गई है। जो कि प्रदेश में दुधवा पार्क और पीलीभीत में टाइगर रिजर्व है। इसलिए वन्यजीवों की गणना में अधिकारियों का पूरा ध्यान इन्हीं दोनों जिलों में ज्यादा रहता है।
इसके लिए जंगलों में कैमरे लगाने का काम पूरा हो चुका है। दुधवा नेशनल पार्क में 400 और किशनपुर में 200 कैमरे लगाए गए हैं। मैलानी व भीरा में 80 कैमरे लगाये गये है। इसके अलावा मोहम्मदी में भी 8 से 10 कैमरे लगाए गए हैं। अधिकारियों के मुताबिक घटना पर नजर रखने के लिए कैमरे जंगल के अंदर लगाए गए हैं। इसमें कुछ कैमरे जंगल के कोरजोंन की में तथा कुछ कैमरे जंगल के किनारे पर लगाए गए हैं। इन कैमरों में बाघों की तस्वीर कैद होगी।
डब्लू डब्लू एफ और डब्ल्यूटीआई के विशेषज्ञ टाटा मिलान के दौरान किनारों पर लगाए गए कैमरों की तस्वीरों में बाघों की धारियों को देखकर यह पहचान लेंगे कि कौन सा बाघ जंगल के बाहर निकल सकता है। इस टाइपिंग के जरिए भविष्य में होने वाली मानव और बाघ के बीच होने वाले संघर्ष के समय विशेषज्ञ आसानी से हमलावर बाघ की पहचान कर लेंगे और ऑपरेशन के दौरान उसे ट्रेंकुलाइज कॉलेज किया जा सकेगा। इससे यह आशंका नहीं रहेगी कि धोखे में किसी निर्दोष बाघ को पिंजरे में कैद कर लिया गया।
*पेयजल की दिक्कत से भी बाहर निकलते हैं बाघ*
गर्मी के दिनों में जंगलों के अंदर पानी की कमी हो जाती है। पेयजल के लिए अक्सर बाघ और अन्य हिंसक वन्यजीव जंगल के बाहर निकलते हैं। बाहरी इलाके में बाघों को आरामदायक भोजन मिलने के कारण यह आबादी क्षेत्र में ही हमलावर होते हैं। गर्मी में मोहम्मदी, मैलानी रेंज में अक्सर बाघ का मूवमेंट देखा जाता है। गौरतलब है कि जंगल में नदियों को छोड़कर कुछ जगहों पर ही प्राकृतिक रूप से जलाशय से बने हुए हैं। इसके अलावा पानी के अन्य संसाधन नहीं है।
वही इस मामले में डीएफओ समीर कुमार का कहना है कि कैमरा टाइपिंग से जुटाए गए डेटा से हमें मदद मिलेगी। बाघों का मूवमेंट देखकर यह पता लगा जा सकेगा। कि जंगल से बाहर निकल सकता है। डाटा से उन्हें पहचानना आसान होगा। इससे हिंसक प्रवृत्ति वाले बाघों पर नजर रखी जाएगी।