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Saturday, November 9, 2024

क्या सपा बचा पाएगी आजमगढ़!

लखनऊ। नेताजी के प्रचार से गायब रहने का थोड़ा तो असर होना ही है। इस बार मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव और बहू अपर्णा के अलावा किसी के लिए चुनाव प्रचार नहीं किया। यहां तक कि उन्होंने अपने क्षेत्र आजमगढ़ में भी चुनाव प्रचार नहीं किया है। हालांकि, इस क्षेत्र में अखिलेश यादव सक्रिय हैं लेकिन नेताजी की गैर हाजिरी के कारण परेशानी तो बढ़ी ही है। एक तरफ सपा नेता अपनी रैलियों में बार-बार यह कह रहे हैं कि यह चुनाव नहीं हमारे लिए एक चुनौती है, तो दूसरी ओर सपा के कुछ समर्थकों का कहना है कि मुलायम को यह चुनौती तो उनके बेटे ने ही दी है।

मुलायम ने इस बार यहां नहीं किया है चुनाव प्रचार
बात आजमगढ़ की करें, तो यह पूर्वी उत्तर प्रदेश की एकमात्र लोकसभा सीट है, जहां से सपा की जीत हुई थी और मुलायम आसानी से जीत गए थे लेकिन इस क्षेत्र में चुनाव प्रचार करने उनके सांसद मुलायम सिंह यादव नहीं आए हैं। मुलायम सिंह की अनुपस्थिति और पारिवारिक विवाद के कारण कई लोगों का टिकट काट दिया गया जिस कारण सपा अपना पिछला प्रदर्शन दोहराती नहीं दिखाई पड़ रही है। बता दें कि साल 2012 के विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ जिले की दस सीटों में से नौ सीटों पर सपा की जीत हुई थी। हालांकि, मुलायम की अनुपस्थिति में अखिलेश यादव ने यहां सात घंटे में सात जनसभाएं कीं और स्कूल, अस्पताल, पुल आदि का वादा करने के साथ मुस्लिमों के दिमाग में यह बात डालने की कोशिश की है कि चुनाव के बाद बसपा का भाजपा के साथ गठबंधन हो सकता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि लोगों के बीच इस बात की चर्चा हो रही है कि मुलायम सिंह को इस क्षेत्र में प्रचार के लिए आना चाहिए था। कांग्रेस नेता कहते हैं ‘‘मुलायम सिंह को यहां आना चाहिए था लेकिन कोई बात नहीं हम पूरी तरह से अखिलेश यादव के साथ खड़े हैं।’’ वैसे तो इस जिले की किसी भी सीट पर कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं है। यहां की एक सीट, जहां से बसपा की जीत हुई थी, कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार के लिए मांगी थी लेकिन सपा ने इंकार कर दिया था।

पिछली बार जिले की 10 में से 9 सीटें जीती थी सपा
आजमगढ़ की दस विधानसभा सीटों में से पांच विधानसभा सीटें मुलायम सिंह यादव के लोकसभा क्षेत्र में पड़ती हैं, जबकि पांच सीटें लालगंज लोकसभा क्षेत्र में पड़ती हैं। ऐसा माना जाता है कि आजमगढ़ की पांच सीटों पर जहां सपा की स्थिति मजबूत है, वहीं लालगंज की पांच सीटों पर भाजपा की स्थिति मजबूत है। सपा के एक वरिष्ठ नेता भी कहते हैं कि पांच सीटों पर सपा का भाजपा और बसपा के साथ कड़ा मुकाबला है, जबकि पांच सीटों पर सपा की स्थिति काफी मजबूत है। उल्लेखनीय है कि दीदारगंज, निजामाबाद, गोपालपुर, सगरी एवं मुबारकपुर की सीटों पर मुस्लिम और यादव अधिक हैं, जो सपा के मुख्य वोट बैंक माने जाते हैं। लेकिन गोपालपुर और सगरी के सपा विधायकों को सपा ने टिकट नहीं दिया क्योंकि वे शिवपाल गुट के माने जाते हैं जिसके कारण इन दोनों सीटों पर सपा को परेशानी हो सकती है। दूसरी ओर सपा के पारिवारिक विवाद और मुलायम की अनुपस्थिति के कारण वहां के मुसलमानों में भी थोड़ा संशय है। यहां तक कि राष्ट्रीय उलेमा काऊंसिल, जिसका मुख्यालय आजमगढ़ में है, ने भी बसपा को समर्थन देने की अपील की है।

इस वजह से यादव वोट में सेंध लगने की उम्मीद
इसके अलावा फूलपुर-पवई सीट जहां से पिछली बार सपा केवल 500 वोटों से जीती थी, बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा किया है। लोकसभा चुनाव के समय यहां से भाजपा ने बढ़त बनाई थी और इस बार उसने यहां से पूर्व सांसद रमाकांत यादव के बेटे अरुण को टिकट दिया है, जिसके कारण यादव वोट में भी सेंध लगने की उम्मीद है। यहां से सपा प्रत्याशी भी यादव है। इसी तरह लालगंज विधानसभा क्षेत्र से सपा और भाजपा ने पासवान जाति जबकि बसपा ने जाटव जाति का प्रत्याशी बनाया है। मेहनगर में भाजपा के साझीदार एस.बी.एस.पी. तथा सपा ने एक ही जाति के प्रत्याशी खड़े किए हैं। सगरी में बसपा ने वंदना सिंह को खड़ा किया है, जिनके पति सर्वेश सिंह की कुछ साल पहले हत्या कर दी गई थी। आजमगढ़ शहर से सपा ने दुर्गा प्रसाद यादव को टिकट दिया है, जो यहां से सात बार विधायक रह चुके हैं और इस सीट पर इनकी जीत की उम्मीद अधिक है।

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