नई दिल्ली- एजेंसी। देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले उत्तर प्रदेश की राजनीति पर आजादी के बाद से ही दिल्ली की नजर रही है और यूपी के राजनेताओं की नजर हमेशा दिल्ली पर। एक बार फिर यूपी में राजनीतिक हलचल है। चुनाव आयोग ने भले ही अभी कोई घोषणा नहीं की है लेकिन ये तय है कि आने वाले दो से तीन माह में यूपी में विधानसभा चुनाव हो चुके होंगे। इस समय समाजवादी पार्टी सत्ता में है और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री। ये कहने वाले कम नहीं कि अब मुलायम सिंह बीते जमाने की बात हो चुके हैं और वक्त अखिलेश का है लेकिन हाल की कुछ घटनाओं पर निगाह दौड़ाएं तो लगता है कि अखिलेश हार चुके हैं। उन्होंने अपने परिवार के आगे घुटने टेक दिए हैं।
पिछले एक-डेढ़ साल से अखिलेश यादव ने विज्ञापन में पानी की तरह पैसा बहाया है। उन्होंने लगातार टीवी और इंटरव्यू को दिए हैं। उन्होंने हमेशा यही कहा है कि समाजवादी लोगों की सरकार बन रही है वो भी बहुमत से, लेकिन क्या सच में बन रही समाजवादियों की सरकार? दरअसल अखिलेश का 2012 के यूपी चुनाव में हीरो की तरह उभर कर आना, मुख्यमंत्री बनना और फिर अपनी एक अलग पहचान बना लेना उनकी परिवक्वता को दिखाता है। पिछले पांच साल में उन्होंने बड़ी खूबसूरती से खुद को समाजवादी पार्टी का चेहरा बनाया है। तकरीबन पांच साल की सरकार के बाद भी आप उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार के खिलाफ कोई एंटीइंकम्बैंसी लहर नहीं पाएंगे लेकिन कहीं अखिलेश हारे हुए नजर आ रहे हैं तो परिवार से हारे हुए नजर आ रहे हैं।