समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने साफ कर दिया है कि वे अपने पिता के रास्ते पर ही चलेंगे और सपा की स्थापना के समय से मुलायम सिंह ने जिस तरह की राजनीति की है, उसी तरह की वे भी करेंगे। पिछले दिनों दिल्ली में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब के विमोचन में अखिलेश वे अपने पिता के पूर्व सहयोगियों के साथ बने रहेंगे। यानी कोई नया गठबंधन बनाने की बजाय पुराने गठबंधन का हिस्सा रहेंगे।
ध्यान रहे प्रणब मुखर्जी की किताब का विमोचन कार्यक्रम कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों की एकजुटता और ताकत दिखाने का मौका बन गया था। उसमें यूपीए के एकाध सहयोगियों को छोड़ कर बाकी सारी पार्टियों के नेता मौजूद थे। अखिलेश ने अपने छोटे से संबोधन में उन सबकी ओर इशारा करके कहा कि यहां वे सारे लोग मौजूद हैं, जिनके साथ उनके पिता ने काम किया है। अखिलेश ने आगे कहा कि वे भी उनके साथ काम करने को तैयार हैं।
अखिलेश ने उत्तर प्रदेश के पिछले चुनाव में वह काम किया, जो 25 साल के सपा के इतिहास में मुलायम ने नहीं किया था। अखिलेश ने कांग्रेस के साथ तालमेल कर लिया। इसके बावजूद सपा और कांग्रेस दोनों बुरी तरह से हारे। फिर भी अखिलेश कांग्रेस के साथ चलने को तैयार हैं। दूसरा संकेत अखिलेश ने यह भी दिया कि अब सपा पूरी तरह से उनकी कमान में है। वे दूसरी बार पार्टी के अध्यक्ष चुन लिए गए हैं और इस बार पांच साल के लिए चुने गए हैं। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। उन्होंने अपने चाचा शिवपाल यादव और उनके साथ मिल कर सपा में तोड़ फोड़ का प्रयास कर रहे कुछ और पुराने नेताओं की अनदेखी की है। उनके आत्मविश्वास का एक कारण यह भी है कि मुलायम ने उनको आशीर्वाद दे दिया है।