इटावा ,। देश के जाने माने कवि और गीतकार गोपालदास नीरज अब हमारे बीच नही रहे लेकिन उनकी स्मृतियो को ताजा रखने के लिए उनके गांव पुरावली के लोग गांव को साहित्य साधना का केंद्र बनाने की मांग सरकार से करने मे जुट गये है । गांव के लोग चाहते है कि उनका स्मारक तो बनाया ही जाये उनकी मूर्ति भी स्थापित ही जाये इसके साथ ही एक भी इंतजाम किया जाये देश भर से आये साहित्यप्रेमियो को उनके बारे मे पूर्णतया जानकारी यथोचित हो सके।
उत्तर प्रदेश मे इटावा जिले के पुरावली गांव के मूल निवासी नीरज के गांव और उनके रिहायशी इलाके इकदिल के लोगो मे शोक की लहर उनके निधन के बाद दौड पडी है । उनके गांव पुरावली के प्रधान सुभाष यादव पुरावली गांव मे शासन प्रशासन से नीरज जी का स्मारण बनवाने के साथ साथ द्वार बनवाने की गुहार लगाते है । प्रधान बताते है कि गांव मे उनकी जगह पडी हुई है जिसकी हम सभी देखरेख करते है कि अगर शासन प्रशासन चाहे तो उनकी जगह पर स्मारक बनवा कर मूर्ति स्थापित करवाने के साथ साथ द्वार बनवा सकता है । इस के लिए गांव वाले भी मदद करने के लिए आगे आने को तैयार है । गांव के महंत मदन मोहन बताते है कि उनके बारे मे यही जानते है कि उनका यह मकान था जिस जगह पर मै बैठा हुआ हूॅ यह सब जगह उनकी ही है । उनकी जगह पर ही मंदिर बना हुआ है जब कभी गोपाल यहॉ आये तो ठाकुर जी के दर्शन करके ही गये ।
गांव के साबिर अली बताते है कि एक दफा उनका गांव मे कार्यक्रम लगा हुआ था लेकिन अचानक गांव मे एक सख्श की मौत के बाद उसे रदद करना पडा तो फिर नीरज जी पूरे गांव मे घूमे और उन्होने अपने घर को सबको दिखाते हुए यादो को ताजा किया । गांव मेब ने कुएं को भी दिखाया जिससे वो पानी भरा करते थे ।
इटावा के वरिष्ठ साहित्यकार एचएमएस इस्लामिंया इंटर कालेज के हिंदी विभाग के प्रमुख डा.कुश चतुर्वेदी बताते है कि गोपाल दास नीरज एक नामभर नही है वो हिंदी गीतो के सुकोमल गीतकार भी थे जिसको हम सभी ने खो दिया है । यह हमारे लिए एक दुर्भाग्यशाली दिन है । हरिवंश बच्चने के बाद यदि किसी कवि को वो लोकप्रियता मिली हुई है वो सिर्फ गोपाल दास नीरज ही रहे है । उनकी शैली और चिंतन किसी भी कवि से अनुकरण नही है । नीरज अपने आप मे एक शैली थे । देश के दूसरे कवियो को नीरज से उस चिंतन धारा से जुडना चाहिए जिससे समाज को एक संदेश मिलता हुआ दिखाई देता रहा है ।
उनके परिवारिक भाई ज्वाला शरण सक्सैना नीरज की मौत को लेकर बेहद दुखी नजर आते हुए यादो ही यादो को समेटते हुए बताते है कि उनको बचपन मे पंतग उडाने का बहुत शौक था । उनके गांव पुरावली से चंद किलोमीटर की दूरी पर यमुना नदी है । बचपन मे ही पिता की मौत के बाद गोपाल अपने परिवार के अन्य सदस्यो के साथ इकदिल मे जाकर बस गये थे ।
महज छह साल की उम्र में पिता का साया सर से उठ जाने के बाद फूफा के यहां पले बढ़े ‘गोपालदास’ को उनकी यायावरी ने ‘नीरज’ बना दिया । जमींदार पिता से विरासत में मिली जमींदारी बेचकर महज खानपुर स्टेट में नौकरी करने वाले महाकवि गोपालदास नीरज की जिंदगी में देश के कई शहरों ने रंग भरे।
महाकवि गोपाल दास नीरज का इटावा से गहरा नाता रहा है। यहां के महेवा ब्लाक के पुरावली गांव में चार जनवरी 1925 को उनका जन्म हुआ था। छह साल की उम्र में उनके सिर से पिता बृजकिशोर का साया उठ गया था। उसके बाद परिवार इकदिल कस्बे के कायस्थान मोहल्ले में रहने लगा था । नीरज का पालन पोषण उनके फूफा हरदयाल प्रसाद वकील साहब ने एटा में किया था । उन्होंने एटा से ही 1942 में हाईस्कूल की शिक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और इटावा कचहरी में टाइपिस्ट की नौकरी शुरू की । टाइपिस्ट की नौकरी रास नहीं तो वर्ष 1946 में दिल्ली के आपूर्ति विभाग में 67 रुपये प्रतिमाह की नौकरी करने लगे। यहां भी पसंद नहीं आया, तो कानपुर चले गए और डीएवी कालेज में लिपिक के पद पर नियुक्त हो गए । कानपुर आए और प्रेमगीत का सफर शुरू रू कानपुर में नीरज की मुलाकात शायर फरहत कानपुरी से हुई और वह कविता की दुनिया में आ गए । उन्होंने कानपुर में बालकन ब्रदर्स के यहां पांच वर्ष तक स्टेनो की भी नौकरी की। कानपुर से ही 1949 में इंटरमीडिएट, 1951 में बीए व 1953 में एमए की डिग्री हासिल की । कुछ दिनों बाद राज्य सरकार ने उन्हें सूचना अधिकारी के पद पर तैनात कर दिया था । यहां पर वह एक साल नहीं रह पाए और मेरठ के एक सरकारी कालेज में प्राध्यापक हो गए । बाद में वे धर्म समाज कालेज अलीगढ़ में प्रोफेसर हो गए। साहित्यिक मंच पर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और बुलंदियों को निरंतर छूते रहे। उन्होंने फिल्मों के लिए अनेक गीत लिखे जो काफी लोकप्रिय हुए।
गोपालदास नीरज जी की मृत्यु एक युग का अंत है। आज राष्ट्र को एक बहुत बड़ी क्षति हुई है। यह बहुत बड़ा शून्य है। गीत में इस शून्य की क्षति कभी पूरी नहीं की जा सकती है।
इकदिल के अपने पैतृक मकान और जमीन को लगभग 8 वर्ष पूर्व बेच दिया था । वे चार भाई कृष्ण दास, गोपाल दास, नारायण दास, दामोदर दास थे । नारायण दास अभी जीवित हैं और अमेरिका में रहते हैं। गोपाल दास नीरज इटावा शहर में भी बराही टोला व लालपुरा मोहल्ले में भी रहे हैं। इसलिए उनका इटावा से हमेशा गहरा लगाव गोपालदास नीरज उत्तर प्रदेश के इटावा के बेटे थे । उनका जन्म 4 जनवरी 1925 को बकेवर इलाके के पुरावली गांव मे हुआ था बाद मे नीरज अपने परिवार के बाद इकदिल मे आकर बसे ।
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया । जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत