हमारा पूरा जीवन प्रकृति पर निर्धारित है। अगर प्रकृति हमसे रूठ जाए तो हमारे जीवन का अंत वहीं से शुरू हो जाता है। आज कोरोना जैसी महामारी से हमारा देश जूझ रहा है, वहीं इसका इलाज भी सिर्फ प्रकृति ही है। पशु-पक्षी जो अभिन्न अंग है, उन पर ध्यान नहीं दिया जाता वरन् विदेशी जीवों को लार-प्यार से रखा जाता है। वहीं पेड़ तो लगा दिए जाते हैं पर क्या उनको समय पर पानी दिया जा रहा है। इस दरमियां पीपल बाबा का क्या है फॉर्मूला। चलिए जानते हैं। अगर समय मिले तो 51,000 पेड़ो वाले जंगल को देखने के लिए सोरखा गांव जरूर जाएं।
नोएडा सेक्टर -115 के सोरखा गाँव, ग्रेटर नोएडा के नामचा और लखनऊ के रहीमाबाद जल संरक्षण की एक अनोखी विधि के तहत पीपल बाबा नें बड़े तालाब का विकास किया है। यहाँ पर प्राकृतिक तालाब निर्माण की विधि और अवस्थाओं को करीब से जाननें का अवसर मिलता है। कैसे जल संरक्षण किया जाता है? कैसे बढ़ते जंगलों में वॉटर टैंकर के न पहुँच पाने पर पौधों को पानी पिलाया जाता है? पीपल बाबा के द्वारा पेश किया गया यह अनोखा उदहारण देश में जलस्तर को बढ़ाने के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
पीपल बाबा कहते हैं कि जिस दिन से जंगल लगाने का कार्य शुरू होता है उसी दिन से इन जंगलों के सबसे ढलान वाली ऐसी जगह पर तालाब बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत हो जाती है जहाँ पर चारों तरफ से पानी आकर रुके और इस तालाब के एंट्री पॉइंट्स पर अम्ब्रेला पोम (अम्ब्रेला पोम पूरे विश्व में पाया जाता है लेकिन जापानी लोग इसका खूब उपयोग करते हैं) के पौधे लगाए जाते हैं इन पौधों की जड़ो से होकर गुजरने पर यह जल शुद्ध हो जाता है। 3-4 सालों में वर्षा जल प्राप्त करते हुए ये तालाब सालों साल पानी से भरे रहने लगते हैं इसका कारण हर साल हो रहे जलसंचयन की वजह से जमीन का जलस्तर काफ़ी ऊँचे उठ जाता है। और भूमिगत जल से ये तालाब हमेशा स्वतः चार्ज होते रहते हैं।
तालाब बनाने की प्रक्रिया और हैंडपम्प लगाने के साथ-साथ ही शुरू होती है। पूरे जगल में पानी के लिए मात्र एक तालाब सबसे ज्यादे ढलान वाली जगह पर जहाँ पर ग्रेडिएंट ज्यादा होते हैं। तालाब के 10% हिस्से पर जलकुम्भी लगाई जाती है इससे मिट्टी तालाब में आने से रुक जाता है (लेकिन जलकुम्भी के ज्यादा हो जाने पर तालाब में कार्बन डाई ऑक्साइड बढ़ जाता है इसलिए समय समय पर जलकुम्भी को साफ किया जाता है) तालाब के सभी किनारों पर घास और पेड़ भी लगाए जाते हैं ये मिट्टी को जकड़ कर रखते हैं और तालाब में मिट्टी को जाने से रोकते भी हैं यहाँ पर मुख्य बात यह है कि पीपल बाबा तालाब के एंट्री पॉइंट्स पर अम्ब्रेला पोम नामक घास लगाती यह यह घास वाटर फ़िल्टर का काम करती है।
अम्ब्रेला-पोम नामक घास पूरी दुनियां में पायी जाती है लेकिन जापान में इसका प्रयोग तालाब के जल के शुद्दिकरण के लिए खूब किया जाता है। शुरुवाती समय में हैंडपम्प और वाटर टैंकर से पौधों को पानी पिलाया जाता है लेकिन धीमे धीमे जैसे जैसे पेड़ बड़े होने लगते हैं वैसे वैसे वाटर टैंकर जंगलों के बीच नहीं आ पाते तब तक (2-3सालों में) तालाब तैयार हो जाते हैं।
देश के प्रख्यात पर्यावरण कर्मी पीपल बाबा ने गिरते जलस्तर और पानी के टैंकरो की अनुपलब्धता के बीच जंगलों के बीच पेड़ पौधों को पानी पिलाने के लिए जलसंरक्षण की अनूठी तकनीकी अपनायी हैं | पीपल बाबा ने जलसंरक्षण के लिए जंगलों के बीच हर ढलान वाली जगह के सबसे निचले विन्दु पर तालाब और जंगलों के बीच ढेर सारी जगहों पर छोटे-छोटे गड्ढे बनाया है | जिसमें आसानी से पानी जमा होता रहता है। 3-4 साल में जलस्तर काफ़ी ऊपर आ जाता है। गर्मियों में ये छोटे गड्ढे तो सूख जाते हैं लेकिन तालाबों में लबालब पानी भरा रहता है | जंगलों के बीच जगह-जगह पर छोटे गड्ढ़े इसलिए खोदे जाते हैं क्यूकि दूर तालाब और नल से पानी लाने में समय कम लगे।
इस मौसम में होने वाले झमाझम बारिश पेड़ पौधों से लेकर जीव जंतुओं सबके लिए अनुकूल होता है। इस मौसम में पृथ्वी के सभी जंतुओं और वनस्पतियों का खूब विकास होता है। इस मौसम में अगर हम थोड़ी सक्रियता बरतें तो इसका फायदा सालों साल उठाया जा सकता है। जी हाँ बरसात के मौसम में अगर हम जल संरक्षण का काम करें तो भूमिगत जल को ऊपर उठाया जा सकता है साथ ही साथ सालों साल जल की कमी को दूर किया जा सकता है। लेकिन हर साल गिर रहे जलस्तर के बीच इंसान मोटर, समर्सिबल पंप, और इंजन लगाकर जमीन से पानी खींचकर अपना काम चला रहे हैं। जलसंचयन के लिए कार्य न होने की वजह से वर्षा का जल नालियों के रास्ते नदियों में होते हुए समुद्र में विलीन हो जाता है। वर्षा जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन की तमाम तकनीकियां पूरी दुनियां में उयलब्ध हैं लेकिन इन तकनीकियों का प्रयोग करने वालों की संख्या काफ़ी कम है। ऐसे प्रयोगों को बड़े स्तर पर बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है।
देश में जल संसाधन मंत्रालय जल के विकास के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। इन सरकारी विभागों के अलावा देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो जल संरक्षण के लिए अनोखे विधियों से जल संरक्षण के कार्य में लगे हैं। इन सबमें भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जंगलों के बीच तालाबों का निर्माण करके पौधों को पानी पिलानें का कार्य किया जाता है। इस सन्दर्भ में देश के नामी पर्यावरणकर्मी पीपल बाबा नें तालाब निर्माण के एक अनोखे विधि का विकास किया है जो घटते जलस्तर के बीच जलस्तर को बढ़ाने के लिए काफी प्रासंगिक है।
जंगलों के विकास के लिए तालाब बनाने क्यूँ हैं जरूरी, कोरोना काल में कैसे इन तालाबों से जंगलों को मिली मदद जैसे-जैसे पेड़ बढ़ते हैं इन पेड़ों के बीच वॉटर टैंकरों के आने की संभावना घटती जाती है। इसीलिए तालाब और हैंडपम्प की जरूरत होती है। पीपल बाबा की टीम के अहम सदस्य जसवीर मलिक बताते हैं कि कोरोना काल में जब लॉकडाउन लगा तो पानी के टैंकर बाहर से आने बंद हो गए और प्रचंड गर्मियों में जंगलों के बीच के तालाबों से ही पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की गई।
गौरतलब है कि पीपल बाबा देश के हर नागरिक को पर्यावरण संवर्धन कार्य से जोड़ने हेतु हरियाली क्रांति का आधार तैयार कर रहे हैं, पीपल बाबा के इस अभियान से देश के हर हिस्सों से लोग जुड़ रहे हैं।
जल संरक्षण के सन्दर्भ में यह बात दीगर है कि पीपल बाबा ने उत्तर प्रदेश में जंगलों के विकास के लिए 30 तालाब बनाएं हैं। पिछले दशक में पीपल बाबा ने उत्तर प्रदेश में नोएडा के सोरखा गाँव, ग्रेटर नोएडा के मेंचा और लखनऊ के रहीमाबाद में 15-15 एकड़ के 3 विशाल जंगलों के विकास का कार्य कर रहे हैं | अबतक पूरे देश में पीपल बाबा के नेतृत्व में 2.1 करोड़ से ज्यादे पेड़ लगाए जा चुके हैं इनमें से सबसे ज्यादे पीपल के 1 करोड़ 27 लाख उसके बाद नीम, शीशम आदि के पेड़ हैं।
पीपल बाबा के पेड़ लगाओ अभियान से अब तक 14500 स्वयंसेवक जुड़ चुके हैं और इनका कारवां देश के 18 राज्यों के 202 जिलों तक पहुँच चुका है। पीपल बाबा आने वाले समय देश के हर व्यक्ति को हरियाली क्रांति से जोड़कर देश पूरे देश को हरा भरा बनाना चाहते हैं इसके लिए पीपल बाबा की टीम देश में अनेक अभियान चलाने जा रही है। इसी कड़ी में आगामी सितंबर महीने की 1 तारीख से 30 तारीख तक हरिद्वार के ऋषिकेश में पीपल बाबा नीम अभियान चलाने जा रहे हैं।