उत्तर प्रदेश में भाजपा विपक्षी एकता की संभावना से डर गई लगती है। तभी तो विधान मंडल के सदस्य बनने की कतार वाले मुख्यमंत्री, दो उपमुख्यमंत्रियों और दो मंत्रियों को सदन में भेजने का नया रास्ता तलाशा है।
मध्य प्रदेश विधानसभा का सत्र इस बार भी तय समय से पहले ही खत्म हो गया। जैसे वक्त से पहले सत्र समापन की तो परंपरा ही बन गई है। हालांकि इस बार सत्र दो दिन पहले खत्म कर देने का कांग्रेस को जरूर अफसोस हुआ होगा। 26 जुलाई को सरदार सरोवर के विस्थापितों के मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर खूब किया था कांग्रेस ने हंगामा। अध्यक्ष सीताशरण शर्मा ने शून्यकाल में अवसर देने की जिद पकड़ी तो कांग्रेसी नारेबाजी कर अपनी मांग दोहराते रहे। सो, अध्यक्ष ने सदन की बैठक ही स्थगित कर दी। इससे पहले सत्रह मिनट के भीतर छह विधेयक पारित करा लिए। बैठक अनिश्चितकाल के लिए टली तो कांग्रेस के विधायकों ने विरोध स्वरूप मुख्यमंत्री निवास तक पैदल मार्च शुरू कर दिया। पुलिस ने 35 विधायकों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। शाम को छूटे तो किसानों के सवालों पर चर्चा नहीं हो पाने के मलाल के साथ।
कांग्रेसी पैंतरे
उत्तर प्रदेश में भाजपा विपक्षी एकता की संभावना से डर गई लगती है। तभी तो विधान मंडल के सदस्य बनने की कतार वाले मुख्यमंत्री, दो उपमुख्यमंत्रियों और दो मंत्रियों को सदन में भेजने का नया रास्ता तलाशा है। सपा के दो और बसपा के एक एमएलसी से इस्तीफा करा भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अपने तरकश का एक और तीर चल दिया। पाठकों को बता दें कि योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य लोकसभा के सदस्य हैं। दो महीने के भीतर उन्हें विधानमंडल में आना ही होगा। अच्छा तो यही होता कि ये लोग अपने विधानसभा सदस्यों से इस्तीफे दिला कर उपचुनाव लड़ते। पर यह जोखिम कौन उठाए? अभी 2019 की चिंता है। ऐसे में यूपी ने बेरुखी दिखा दी तो लेने के देने पड़ जाएंगे। 1978 में हार से हताश इंदिरा गांधी को आजमगढ़ लोकसभा सीट के उपचुनाव ने ही संजीवनी दी थी। योगी सरकार में तो रिजवी, स्वतंत्र देव सिंह और दिनेश शर्मा किसी सदन के सदस्य हैं ही नहीं। सभी को अब विधान परिषद की राह पकड़ने में सुविधा दिख रही है। अगले कुछ दिनों में कुछ और विपक्षी एमएलसी पाला बदल सकते हैं।
भविष्य में अच्छे समायोजन का वादा और साथ में माल अलग, मौकापरस्ती की सियासत में कौन करेगा पाला बदलने से गुरेज। नीतियों और सिद्धांतों का दौर तो चला गया। जो खेल केंद्र की सत्ता में रहते विपक्षी राज्य सरकारों के साथ कांग्रेस खेलती थी, भाजपा को भी अब उसी को दोहराने में मजा आ रहा है। विपक्ष में थे तो आलोचना करना मजबूरी थी। बहरहाल चर्चा तो यह भी है कि अब केशव मौर्य को लखनऊ से दिल्ली बुला सकती है पार्टी। एक तो मुख्यमंत्री के साथ उनकी पटरी नहीं बैठ पा रही। ऊपर से उनके इस्तीफे की सूरत में फूलपुर लोकसभा सीट का उपचुनाव अगर विपक्षी एकता के दम पर मायावती जीत गईं तो धरी रह जाएगी अमित शाह की सारी रणनीति। रही अखिलेश यादव और मायावती के प्रलाप की बात तो उसकी परवाह क्यों करेंगे भाजपाई। खांटी समाजवादी राजेंद्र चौधरी ने अपने दो एमएलसी टूट जाने के बाद विलाप किया कि सत्ता के मद में सियासत की नैतिकता को ताक पर रख लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बन गई है भाजपा।