प्रियांशू
क्या पुलिस वाले टीवी नहीं देखते या उन्हें नहीं पता कि कल को कोई अदालत उन्हें किसी फेंक एनकाउंटर में उम्रकैद तक की सजा सुना सकती है?
या उन पर पॉलिटिकल दबाव इतना ज्यादा है कि ‘यस सर’, ‘हो जाएगा सर’ कहने के अलावा उनके पास कोई विकल्प बचा ही नहीं?
लखनऊ के स्थानीय पत्रकार कहते हैं कि यूपी पुलिस के सामने इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति बन गई है। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा।
कल मथुरा की जिला अदालत ने भरतपुर के मानसिंह फर्जी एनकाउंटर में सभी 11 पुलिस वालों को उम्रकैद की सजा सुनाई। 35 साल पहले जब यह घटना हुई थी, उस वक्त ये पुलिस वाले तब के मुख्यमंत्री के खासमखास थे। बहुत खासमखास, लेकिन अब न वो मुख्यमंत्री रहे, न नेताओं से 35 साल पहले मिला वह आश्वासन कि तुम लोगों को कुछ होने नहीं देंगे।
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने विकास दुबे के कथित एनकाउंटर की जांच के लिए रिटायर्ड जज बीएस चौहान के नेतृत्व में तीन सदस्यीय जांच आयोग के गठन को मंजूरी दे दी। यह आयोग कानपुर के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या और इनसे जुड़े तमाम पहलुओं की भी जांच करेगा।
पिछले तीन साल से यूपी में हर दिन पांच एनकाउंटर हो रहे हैं। मार्च 2017 से लेकर जुलाई 2020 के बीच यूपी पुलिस और अपराधियों के बीच 6,326 कथित एनकाउंटर हुए। इनमें पुलिस ने 123 ‘अपराधियों’ को मार गिराने का दावा किया। मरने वालों में कई संदिग्ध भी थे, जैसे विकास दुबे मामले में पुलिस के हाथों मारा गया प्रभात मिश्रा।
कभी सरकार बदली, इन्हीं में से कुछ केस दोबारा खुले, जुर्म पकड़ा गया, सजा किसे मिलेगी?
पत्रकार राणा अय्यूब की चर्चित किताब ‘गुजरात फाइल्स’ में उन अधिकारियों का भी जिक्र है, जो नेताओं के इशारों पर नाचना भी नहीं चाहते थे और संजीव भट्ट की तरह खुलकर सामने आने का जोखिम भी नहीं उठाना चाहते थे।
इन अधिकारियों ने अपनी गर्दन बचाने का रास्ता खोजा। इनके पास जब ऐसे किसी काम के लिए किसी बड़े नेता का इशारा आता तो वह उस नेता से उस काम के लिए लिखित में आदेश जारी करवाने की गुजारिश करने लगता। और लिखित में आदेश आने से रहा।
यूपी के अधिकारियों को समय निकालकर ‘गुजरात फाइल्स’ पढ़नी चाहिए। सिर्फ 265 रुपए की है।
अमरीका की नींव रखने वालों में से एक थॉमस पेन ने कहा था, ‘The duty of a true patriot is to save his country from the government. यानी एक सच्चे देशभक्त का कर्तव्य, अपने देश को सरकार से बचाना है।’
लेकिन इसके लिए पहले खुद की गर्दन बचानी होगी।
यह टिप्पणी हमने लेखक के फेसबुक वॉल से ली है। यह उनके निजी विचार हैं। लेखक दिल्ली में पत्रकारिकता करते हैं।