दीपक ठाकुर:NOI।
काश्मीर की सियासत ने आज अचानक ही ऐसा रूप दिखाया जिससे लोग सन्न रह गए पीडीपी और भाजपा ने अब ये साफ कर दिया है उनके रास्ते अलग अलग हैं।लेकिन यहां भाजपा की मंशा पर सवाल ये खड़ा होता है कि तीन साल तक जिस राज्य में आपने गठबंधन की सरकार चलाई उस राज्य को लेकर किया गया वादा आप क्यों नही पूरा कर पाए जबकि तमाम आलोचनाओं के बाद भी आप यही कहते रहे कि आपकी सरकार वहां सही ढंग से चल रही है और आपका मिशन सफल हो रहा है।
अगर ऐसा था तो अचानक पीडीपी से समर्थन वापस लेने का फैसला क्यों करना पड़ा क्यों कार्यकाल पूरा ना होने देने का कारण भाजपा बनी इसका मतलब तो साफ है कि आप कश्मीर में सत्ता में तो थे पर वहां आप पीडीपी से कमज़ोर स्थिति में थे जिस कारण आप ना ही 370 के मुद्दे पर कुछ कर पाए ना आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब दे पाए।
पीडीपी की मुखिया और जम्मू काश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने खुद ये बात मानी है कि उन्होंने जिस मक़सद के लिए भाजपा से गठबंधन किया था उसमें वो सफल रही अब उन्हें कोई फर्क नही पड़ता कि वो सरकार में रहे या ना रहे मतलब साफ था 370 टीडीपी की वजह से जस का तस रहा और पत्थरबाजों से केस वापस लिए गए और तो और एकतरफा सीज़फायर भी हमारे लिए ही नुकसानदेह रहा तो बात किसकी चली पीडीपी की और भाजपा मैं कौन खामखा की पोजीशन में सरकार में शामिल रही।
खैर भाजपा का ये रुख अब भाजपा के लिए शुभ संकेत भी ला सकता है अगर राज्यपाल शासन के दौरान वहां कुछ ऐसा हो जिससे आतंकी थर थर कांपे और लोग अमन चैन से जी सकें तो इसका श्रेय भी भाजपा को ही जायेगा और यही श्रेय भाजपा को आगामी चुनाव में बड़ी जीत की ओर ले जाएगा तो कहा जा सकता है कि राज्य छोड़ कर देश पे दोबारा शासन करने का ये एक सुगम रास्ता बन सकता है अगर बात असल मे सुशासन चाहने की हो।