सुंदरनगर – पत्नी की डांट खाकर हर कोई तुलसीदास तो नहीं बनता, लेकिन कभी-कभी इसका बड़ा रचनात्मक असर होता है। हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के छात्तर गांव में परमाराम चौधरी के साथ भी ऐसा ही हुआ। धर्मपत्नी की डांट ने ऐसा असर दिखाया कि उन्होंने तीस से अधिक कृषि कार्य उपयोगी हथियारों का आविष्कार कर डाला। इसकी शुरुआत तब हुई, जब परमाराम कुल्हाड़ी टूट जाने पर जंगल से लकड़ी लिए बिना खाली हाथ घर लौट आए थे।
बहुत पुरानी बात नहीं है, जब चौधरी को उनकी पत्नी धर्मी देवी ने जंगल से लकड़ियां लाने को कहा। परमाराम लकड़ियां नहीं काट सके, क्योंकि कुल्हाड़ी का हत्था टूट गया था। वे खाली हाथ लौट आए। इस पर पत्नी ने ऐसा डांटा कि सारा जायका खराब हो गया। परमाराम बताते हैं, ‘उस दिन घर में घर में खाना नहीं बना। मैंने सोच लिया कि अब कुल्हाड़ी का ऐसा हत्था बनाऊंगा, जो कभी न टूटे।’
अगले दिन कुल्हाड़ी पर सॉकेट लगाई। उस पर लोहे की छोटी पाइप काट कर फिट कर दी। प्रयोग सफल रहा, जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक दशक में 30 से अधिक कृषि औजार बनाकर कृषि वैज्ञानिकों के लिए मिसाल बने पूर्व सैनिक परमाराम राष्ट्रीय स्तर पर कृषि वैज्ञानिक के पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं। हालांकि, उनके किसी आविष्कार का कोई पेटेंट नहीं है।
सेवानिवृत कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर राजेंद्र राजू का कहना है कि ‘परमाराम के बनाए कृषि आधारित उपकरणों का पेटेंट करवाने और उन्हें विकसित कर व्यावसायिक उत्पादन की जिम्मेवारी सरकार की बनती है, लेकिन ऐसी नायाब प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। ऐसे आविष्कारों का पेटेंट होना चाहिए।’
सेवानिवृत्त प्रोफेसर एवं कृषि वैज्ञानिक डॉ. एसडी सांख्यान ने कहा, ‘परमाराम जीनियस हैं, ऐसी प्रतिभा को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को सकारात्मक कदम उठाने चाहिए।’
लैंब्रेटा स्कूटर से बनाया हल:-
खेत जोतने के लिए जब ट्रैक्टर सीढ़ीदार खेतों तक नहीं पहुंचा तो परमाराम ने कबाड़ी से लैंब्रेटा स्कूटर का इंजन खरीदा। करीब तीन माह की मेहनत के बाद परमाराम ने ऐसा हल तैयार किया, जिसे देख कृषि वैज्ञानिक भी हैरान रह गए। पांच हजार रुपये की लागत से बना यह हल एक लीटर केरोसिन से तीन से चार बीघा भूमि जोत रहा है।
हत्था एक, औजार अनेक:
कृषि कार्य के लिए किसानों को कई औजारों की जरूरत पड़ती है। सबको खेतों तक ले जाना ज्यादा मेहनत का काम है। परमाराम ने हर प्रकार के औजार पर एल्बो या सॉकेट फिट कर एक ही हत्थे से उनका इस्तेमाल करने का तोड़ निकाला और किसानों की परेशानियां काफी हद तक कम कर दीं।
कबाड़ की साइकिल से बनाया हल:
पुरानी साइकिल के अगले टायर व हैंडल को जोड़कर खेत जोतने वाला हल तैयार किया। इसकी प्रामाणिकता पर कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के वैज्ञानिकों ने भी मुहर लगाई।
देश में प्रथम रही मक्के का दाना निकालने की मशीन:
मक्के की बाली से दाने पारंपरिक तरीके से निकाले जाते थे। हाथ से दाने निकालने में काफी ज्यादा समय लगता था। डंडे से पीट कर गुल्ली खराब हो जाती थी। ऐसी ही समस्या इलेक्ट्रिक मशीन से भी आती थी। परमाराम ने महज 300 रुपये में हस्तचालित मशीन बनाई, जिससे न दाने खराब होते हैं, न गुल्ली। इस पर कृषि वैज्ञानिकों की मुहर लगी तो दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय शिविर में इस मशीन ने देश भर में पहला अवार्ड मिला। डेढ़ लाख रुपये के नगद इनाम के साथ कृषि मंत्री शरद पवार ने परमाराम चौधरी को किसान वैज्ञानिक पुरस्कार से सम्मानित किया।
धावक भी किसी से कम नहीं:
सेना में 1971 से 1983 तक सेवाएं देने वाले परमाराम गजब के धावक हैं। साठ की उम्र में भी उन्होंने नौणी में गत दिनों आयोजित एथलेक्टिस स्पर्धा में 100 व 200 मीटर दौड़ प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक जीते हैं। उनका घर किसी प्रयोगशाला से कम नहीं। घर के हर कमरे व छत पर मशरूम व अन्य सब्जियां जैविक तरीके से तैयार कर परमाराम मिसाल बन गए हैं। परमा राम की दो बेटियां व एक बेटा है। एक बेटी शास्त्री तथा दूसरी एमएड कर रही है। बेटा मर्चेट नेवी में है।