कहते हैं कि भाजपा के प्रति उनका सॉफ्ट कॉर्नर था। उस खेमे ने उनके निधन के बाद भी यह कहना नहीं छोड़ा है कि भारत के हर मुसलमान को उनकी तरह ही होना चाहिए।
वह वीणा बजाए, भगवतगीता पढ़े, दाढ़ी न रखे, हिंदुओं जैसा दिखे ताकि परंपरावादी मुसलमानों को, जो इस मापदंड पर खरे नहीं उतरते उन पर सवाल उठाया जा सके।
लेकिन जो बात कम बताई जाती है वह यह है कि डॉक्टर कलाम धार्मिक मुसलमान थे। फज्र की नमाज कभी मिस नहीं करते थे। अक्सर उन्हें कुरान पढ़ते भी देखा गया।
साल 2002, वह राष्ट्रपति बन चुके थे। राष्ट्रपति भवन में इफ्तार भोज का आयोजन होता था। बीबीसी ने लिखा है कि कलाम ने अपने सचिव को बुलाकर कहा कि वैसे भी यहां आमंत्रित लोग खाते पीते लोग होते हैं। हम ये पैसा अनाथालय को क्यों नहीं दे सकते?
राष्ट्रपति भवन की ओर से इफ्तार के लिए निर्धारित ढाई लाख रुपए से आटे, दाल, कंबलों और स्वेटरों का इंतजाम कर उसे 28 अनाथालयों के बच्चों में बांटा दिया गया।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। कलाम ने अपने सचिव को फिर बुलाया और बोले कि ये सामान तो आपने सरकार के पैसे से खरिदवाया है। इसमें मेरा योगदान तो कुछ भी नहीं है।
कलाम ने उन्हें अपनी ओर से एक लाख रुपए का चेक देकर कहा कि इसका भी उसी तरह इस्तेमाल करिए जैसे आपने इफ्तार के लिए निर्धारित पैसे का किया है, लेकिन किसी को ये मत बताइएगा कि ये पैसे मैंने दिए हैं।
आप हिंदुस्तान की खुशनसीबी हैं
साल 2005, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ भारत आए थे। मुशर्रफ इस दौरान देश के मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाना चाहते थे। उन्होंने राष्ट्रपति कलाम से भी समय मांगा। मुलाकात तय हुई।
नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अगले दिन मुशर्रफ अपने काफिले के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचे। शुरुआती चर्चा के बाद ही डॉ. कलाम ने मुशर्रफ से कहा, ‘राष्ट्रपति महोदय, क्या आपको नहीं लगता कि भारत की तरह पाकिस्तान में भी जो गांव के इलाके हैं, उसके लिए हमें कुछ करना चाहिए।’
कलाम ने उसी कमरे में लगी एक टीवी स्क्रीन पर मुशर्रफ को ग्रामीण विकास से जुड़े तमाम योजनाएं समझाईं। मुलाकात के 30 मिनट का समय तय था 26 मिनट तक ध्यान से उनकी बातें सुनते रहे।
कश्मीर मुद्दा उठाने आए पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जाते-जाते इतना ही बोल सके कि आपके जैसी सोच वाले साइंटिस्ट को देश का राष्ट्रपति बना हुआ देखना हिंदुस्तान की खुशनसीबी है। आज उन्हीं डॉ. कलाम की पांचवीं पुण्यतिथि है।
यह टिप्पणी हमारे लिए प्रियांशू ने तैयार की है। वह दिल्ली में जर्नलिस्ट हैं।