हिसाम सिद्दीकी
- “दूसरे खलीफा हजरत उमर ने सिर्फ एक मामले में एक साथ तीन तलाक को मंजूरी दी थी तो तलाक देने वाले को पचास कोड़े मारने की सजा भी सुनाई थी। मतलब यह कि इसे उन्होंने काबिले सजा जुर्म तस्लीम किया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी (अवैध) तो करार दे दिया लेकिन इस तरह तलाक-ए-बिदअत देने वाले के लिए कोई सजा तय नहीं की फिर इसे गैर कानूनी बताने का क्या मतलब?”
- “जिन ख्वातीन को उनके शौहर इस फैसले से पहले एक साथ तीन तलाक देकर बेघर और बेसहारा छोड़ चुके हैं उनको इस फैसले से कोई फायदा नहीं मिलेगा। अदालत को वाजेह (स्पष्ट) करना चाहिए था कि यह फैसला कब से नाफिज समझा जाएगा। हां इससे इतना फायदा जरूर हुआ है कि पैसे खाकर हलाला के नाम पर हरामकारी करने वाले कुछ मोलवियों की दुकानें बंद होगीं और औरतो की इज्जत लुटने का सिलसिला बंद होगा।”
- “जमीअत उलेमा हिन्द (भतीजा ग्रुप) के महमूद मदनी समेत खुद को मोलवी बताने वाले जो लोग अब भी एक साथ तीन तलाक की बात पर अडे हुए हैं वह जाहिल हैं उन्हें कुरआन के एहकामात का कोई इल्म नहीं है। मुस्लिम मआशरे में एक साथ तीन तलाक के खिलाफ जो माहौल बन चुका है उसे देखकर साफ लगता है कि अब मुसलमान तलाक-ए-मुगल्लिजा को मानने वाले नहीं हैं जाहिल किस्म के मोलवी कुछ भी कहते रहें मुस्लिम मर्द और औरतें इस बुराई को अब तस्लीम नहीं करने वाले हैं।”
नई दिल्ली! एक साथ तीन तलाक के खिलाफ 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने तारीखी फैसला दिया तो वजीर-ए-आजम नरेन्द मोदी, वजीर कानून रविशंकर प्रसाद और बीजेपी सदर अमित शाह समेत कई तरह के लोगों ने खुशी जाहिर करते हुए अपनी-अपनी सहूलत के मुताबिक रद्देअमल जाहिर किया। ख्वातीन तंजीमों और उन ख्वातीन ने भी खुशी जाहिर की जिन्होने यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुचाया था। आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड समेत सभी ने अपने अपने तरीके से इस फैसले का खैरमकदम किया। एक साथ तीन तलाक के खिलाफ खुद मुस्लिम मआशरे (समाज)में जबरदस्त माहौल था, आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड भी मुस्लिम समाज के दबाव में था। इसी पसमंजर में सुप्रीम कोर्ट से आए फैसले को अगर एक पूरी तरह कनफ्यूजन वाला फैसला कहा जाए तो गलत न होगा। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड इस लिए खुश है कि पांच में से तीन जजों यानी चीफ जस्टिस रहे जस्टिस जे एस खेहर, जस्टिस अब्दुल नजीर और जस्टिस कुरियन जोसेफ ने अपने-अपने फैसलों में तस्लीम कर लिया है कि पर्सनल लाज मुसलमानों के बुनियादी अख्तियारात या हक में शामिल है। दूसरी तरफ कई लोगों ने इसे जेण्डर जस्टिस के लिए अहम फैसला करार दिया है। जबकि पांचों जजों ने अपने फैसले की शुरूआत में ही कह दिया कि इस फैसले में जेण्डर जस्टिस के मसले को टच नहीं कर रहे हैं। दूसरे यह कि फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को ‘गैर कानूनी’ (अवैध) करार दिया है। गैर आईनी (असंवैधानिक) नहीं कहा, दोनों में बडा फर्क है। बडी तादाद में मुसलमानों को उम्मीद थी कि अदालत तीन तलाक को गैर कानूनी और गैर आईनी (असंवैधानिक और अवैध) दोनों कहेेगी। मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से जो कुछ मांगा था अदालत ने सरकार की एक भी बात नहीं मानी। सरकार ने चाहा था कि तलाक के तीनों तरीकों यानी तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिदअत या तलाक-ए-मुगल्लिजा (एक साथ तीन तलाक) तीनों पर रोक लग जाए। अदालत ने इसे नहीं माना। सरकार ने कहा था कि पर्सनल लाज के बजाए सिर्फ देश का संविधान माना जाए। अदालत ने उसे भी नहीं तस्लीम किया। सरकार ने कहा था कि पर्सनल लाज को इण्टरनेशनल कनवेनशन्स के मुताबिक देखा जाए। अदालत ने इसे भी नहीं माना। अदालत के पांच में तीन जजों की अक्सरियती राय के मुताबिक एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी (अवैध) करार दिया गया और कहा गया कि अगले छः महीनों तक इसपर पांबदी रहेगी। इस दरम्यान सरकार इस सिलसिले में एक कानून बनाए। सरकार की जानिब से वजीर कानून रविशंकर प्रसाद और बीजेपी सदर अमित शाह ने फौरन कह दिया कि सरकार कोई नया कानून नहीं बनाएगी बल्कि घरेलू तशद्दुद (हिंसा) के मौजूदा कवानीन के जरिए ही इस मसले को भी निपटा जाएगा। सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ तीन तलाक को गैर कानूनी करार दे दिया तो फिर ऐसा करने वालों के लिए किसी किस्म की सजा की बात क्यों नहीं कही। दूसरे खलीफा हजरत उमर फारूक (रजि0) ने एक मामले में एक साथ तीन तलाक को तस्लीम किया था तो तलाक देेने वाले को कोडे लगाने की सजा भी दी थी। जहां तक गैरकानूनी करार देने का सवाल है तो मुल्क मे कत्ल, जिना (बलात्कार) से नशे में गाडी चलाना तक गैर कानूनी हरकते हैं तो क्या यह जुर्म हो नहीं रहे है। फैसले पर अगर गहराई से नजर डाली जाए तो इससे मुस्लिम ख्वातीन को कुछ मिला नहीं है। वह तो फिर भी बेचारी की बेचारी ही रह गईं। हां उन्हें यह एहसास जरूर हुआ है कि उनकी पहल पर सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने नोटिस लिया। सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की कास्टीट्यूशन बेंच बना दी और इस मामले को तरजीह (प्राथमिकता) दी गई यानी सिर्फ ‘फील गुड’।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उन ख्वातीन को तो कोई फायदा नहीं मिलने वाला जिनकी तलाके पहले हो चुकी है या जिनके शौहरों ने एक साथ तीन तलाक तलाक तलाक कह कर उन्हें जहन्नुम की जिंदगी गुजारने के लिए छोड दिया और उन औरतों ने यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की हिम्मत दिखाई। आने वाले वक्त में इस फैसले का सिर्फ एक और बहुत ही अहम फायदा मुस्लिम ख्वातीन को मिलेगा। वह यह कि जिन मोलवियों ने अपनी शैतानी हवस मिटाने और जेबें भरने के लिए ‘हलाला’ के नाम पर औरतों को जिना (व्याभिचार) करने पर मजबूर कर रखा था वह इस बुराई से बच सकेगी। अब एक साथ कही गई तीन तलाके भी एक ही मानी जाएगी। दूसरी और तीसरी तलाक कहने के लिए एक एक महीने का वक्त मिलेगा। बेश्तर मामलात मे तो आपस में दोनों मिया बीवी के दरम्यान सुलह सफाई ही हो जाएगी अगर कुछ मामलात मंे सुलह सफाई न हो सकी मामला तलाक-ए-हसन और अहसन के जुमरे तक पहुच जाएगा फिर भले ही दोनों खूबसूरती और इज्जत के साथ एक दूसरे से अलग हो जाएंगे लेकिन हलाला जैसी हरामकारी की नौबत नहीं आएगी।
अभी भी कुछ अय्याश किस्म के इस्लाम से नावाकिफ मोलवी इसी जिद पर अडे हैं कि यह मामला पूरी तरह से शरिया और इस्लाम का है इसमें दखल देने का अख्तियार अदालत को नहीं है। यह वही लोग हैं जिन्होेेने आलिम और मोलवी की फर्जी डिग्रियां तो ले ली हैं लेकिन उन्हें शरिया और इस्लाम दोनों का ही इल्म नहीं है। एक मजलिस में तीन तलाक का शरिया, कुरआन, हदीस और इस्लाम से कोई ताल्लुक नहीं है। ऐसा कहने वाले बेश्तर मोलवी वहीं हैं जो पचास हजार से डेढ-दो लाख रूपए तक लेकर मजबूर ख्वातीन के साथ हलाला के नाम पर हरामकारी करने का गुनाह-ए- कबीरा कर रहे है।