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Tuesday, September 17, 2024

दंगों पर सियासत आख़िर कब तक???

लखनऊ, दीपक ठाकुर। अक्सर ये देखा गया है कि सियासत में जनता के ज़ख्मो पर मरहम लगाने की राजनीती होती है हर पार्टी वोट बैंक के चक्कर मे ऐसी ही जगह का चयन करती है जहां हालात सामान्य नही होते ताज़ा उदाहरण आप उत्तर प्रदेश के सहारनपुर का ही ले लीजिए।उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार भारी बहुमत से सत्ता में आई जिससे विपक्ष खासा मायूस हो गया सबको लगने लगा कि जनता का विश्वास उस पार्टी से उठ गया अब ऐसा क्यों हुआ ये जानने के बजाए वही पार्टी उस मौके की तलाश में जुट जाती है जिसमे सत्ता पक्ष की फजीहत हो और उनकी सियासत गर्म हो।

ठीक ऐसा ही सहारनपुर को लेकर किया जा रहा है एक तो वहां पहले से ना जाने किस साजिश के तहत अमन चैन खतरे में है ऊपर से ये विपक्षी दल वहां जाने को लालायित हैं।उनका वहां जाने का मकसद साफ है वो ये के पहले तो वो सरकार के इनकार के बाद ये कह के सुर्खी में आएंगे कि उन्हें जाने नही दिया जा रहा फिर भी वो जा रहे हैं और दूसरा ये जानते हुए के सीमा के अंदर जाने नही दिया जाएगा फिर भी लाव लश्कर के साथ निकल पड़ते हैं साहब लोग मतलब साफ है कि उनको पीड़ितों से कोई लेना देना नही होता उनको तो बस अपनी राजनीतिक चमक बढ़ानी होती है जिसके लिए वो ये सब करते हैं।

इसके लिए कोई भी दल दूध का धुला हो ऐसा कहना गलत होगा क्योंकि जो भी विपक्ष में होता है वो ऐसे ही हतकंडे अपना कर अपनी साख बचाने का प्रयास करता है पर उनको समझना होगा कि उनकी इन्ही हरकतों की वजह से पीड़ितों और आम जनता को काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है तो ज़रा इसके बारे में भी सोचिए जनाब आग में घी डालने के बजाए उसको बुझाने का प्रयास मिल के करियेगा तो जनता आपको जरूर अपना दुलार देगी।

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