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Thursday, May 15, 2025

दवा नीति में भारी फेरबदल के संकेत

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देश की दवा नीति में सरकार भारी फेरबदल करने जा रही है. जिसके तहत ड्रग एक्ट के प्रावधानों को शिथिल करने के साथ ही मौजूदा लाइसेंसिंग प्रणाली को उदार बनाए जाने के संकेत है.

गौरतलब है कि नई दवा नीति में कुछ मामलों में स्वास्थ्य मंत्रालय का रवैया काफी सख्त है, जिसका दवा विक्रेता विरोध कर रहे हैं. कुल मिलाकर यदि रसायन मंत्रालय की चली तो आम जनता को सस्ती दवा उपलब्ध कराने का सपना कभी पूरा नहीं होगा. पिछले दिनों दवा विक्रेताओं की देशव्यापी हड़ताल के पीछे दवा कंपनियों का ही खेल है जो यह कतई नहीं चाहतीं कि सस्ती (जेनरिक) दवा बेची जाए जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय इसका विरोध कर रहा है और स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने डाक्टरों को जेनरिक दवा लिखने का फरमान देकर दवा कंपनियों को सचेत कर दिया है.

हालांकि दवा कंपनियों ने रसायन मंत्रालय से मिरा कर नई दवा नीति को लगभग अंतिम रूप तक पहुंचा दिया था मगर स्वास्थ्य मंत्रालय की नकेल से मामला बिगड़ गया है. अब दवा कंपनियों के दबाव में यदि नई दवा नीति लागू भी हो जाएगी तो स्वास्थ्य मंत्रालय की निगरानी के चलते ब्रांडेड दवाओं का बिकना असंभव हो जाएगा. क्योंकि जेनरिक दवा न लिखने वाले डाक्टरों के खिलाफ एमसीआई कार्रवाई करेगी.

प्रस्तावित दवा नीति में दवा कंपनियां चाहती हैं कि मौजूदा लाइसेंसिंग प्रणाली को सरल बनाया जाए और दवा विक्रेताओं के लाइसेंस देने में फार्मेसिस्ट होने की अनिवार्य शर्त हटाई जाए. स्वास्थ्य मंत्रालय का तर्क है कि यदि यह शर्त हट गई तो इस समय जो थोड़ा बहुत जेनरिक दवाओं का कारोबार चल भी रहा है वह पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा. क्योंकि जब गैर फार्मेसिस्ट को लाइसेंस मिलने लगेगा तो फिर सरकार यह निर्देश नहीं दे सकेगी कि जेनरिक दवा ही बेची जाए. लेकिन रसायन मंत्रालय ने नई दवा नीति में उनकी इस मांग को मानने का आासन दे दिया है.

ड्रग एक्ट 1995 में दवा नियंत्रक के पास कई ऐसे अधिकार है जिसके चलते दवा विक्रेताओं को आए दिन परेशानी का सामना करना पड़ता है. इन सभी प्रावधानों को भी शिथिल करने की खबर है. दवा विक्रेताओं के कमीशन की बात भी नई दवा नीति में शामिल है. यदि कमीशन बढ़ेगा तो दवाओं के मूल्य में वृद्धि होगी. दवा कंपनियों द्वारा विक्रेताओं के कमीशन का निर्धारण सरकार करती है मगर फिर इन कंपनियों के पास होगा.

इस समय खुदरा बिक्री मूल्य (एमआरपी) पर आन रिकार्ड कमीशन 30 फीसद से ज्यादा नहीं है जबकि आफ द रिकार्ड यह कमीशन 50 फीसद तक है. इसके बाद दवा कंपनियां उन डाक्टरों को भी तरह-तरह के पल्रोभन देती हैं जो मरीजों को किसी कंपनी की ही दवा खरीदने के लिए मजबूर करते हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय ऐसे पल्रोभनों पर भी रोक लगाने जा रहा है.

यदि कमीशन और महंगे प्रलोभन बंद कर जेनरिक दवाओं की बिक्री बढ़ा दी जाए तो मौजूदा दवाइयों के मूल्यों में भारी गिरावट आ जाएगी मगर दवा कंपनियों के भारी दबाव के चलते नई दवा नीति तैयार हो रही है जो पूरी तरह से मरीज विरोधी बताई जा रही है.

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