शरद मिश्रा”शरद”
पलिया कला खीरी:NOI- प्रदेश के एकलौते दुधवा नेशनल पार्क में 31 साल पूर्व सरकारी सेवा में आयी हथिनी पुष्पा कली की मौत लंम्बी बीमारी के दौरान समुचित इलाज न मिलने के कारण विगत दिनों हो गयी हालाँकि पार्क प्रशासन अपनी नाकामी को छिपाने के लिए पुष्पा कली की मौत को आयुपूर्ण स्वाभाविक बता रहा है।
दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के लगभग 10 साल बाद वन व वन्य जीवों की सुरक्षा तथा पर्यटकों को जंगल भ्रमण कराने का लिये पुष्पा कली को 1986 मे बाराबंकी से रामचंद्र नामक हाथी व्यापारी से खरीद कर लाया गया था इसके साथ गंगा, जमुना नामक हथिनीयो को भी लाया गया था इनमें से जमुना की मौत करीब डेढ़ दशक पूर्व होगयी थी जब्कि गंगाकली अभी भी सरकारी सेवा मे लगी है।इसके अतिरिक्त पुष्प कली ने एक नर हाथी को जन्म दिया जो वर्तमान में बटालिक के नाम से मशहूर हो कर सरकारी मे रहकर पर्यटकों को जंगल भ्रमण कराने का जिम्मा संभाले हुये है।
दुधवा की पुष्पा कली बहुत ही निडर एवं हिम्मती मानी जाती थी, यहाँ तक कि सामने से वनराज बाघ के आने पर भी वह विचलित नहीं होती थी और निर्भर होकर तटस्थ खड़ी रहती थी।उसकी हिम्मत व निडरता का अंदाजा इसी बात से लगाता जा सक्ता है कि जिले अथवा प्रदेश में कही भी जंगल से बाहर आकर बाघ अपना आतंक फैलाता था तो उनको काबू करने वाले अभियान में पुष्पा कली को लगाया जाता था।इसमें 2012 मे पीलीभीत के जंगल से निकला बाघ प्रदेश की राजधानी लखनऊ के किनारे से होकर बाराबंकी के जंगल तक पहुँच गया था इस दौरान बाघ ने लगभग एक दर्जन मानो सहित तमाम पशुओं को अपना शिकार बनाया था जिस पर उसे मुख्य वन संरक्षक(वन्य जीव) ने आदमखोर घोषित कर मौत की सजा दी थी तब दुधवा के तत्कालीन डिप्टी डायरेक्टर पी पी सिंह पुष्पा कली को लेकर बाराबंकी गये थे कई दिनों तक चले सर्च आप्रेशन के दौरान पुष्पा कली ने रहमान खेडा के वन क्षेत्र में खूखार आतंकी बाघ को लोकेट किया और हिम्मत के साथ उसके सामने डटी रही तब उस पर सवार डी0 डी0 पी पी सिंह के संग लखनऊ जू के डाक्टर उत्कर्ष शुक्ला व उनकी टीम ने आतंकी बाघ को ट्रंकुलाइज कर दिया, आखिर मे बेहोश हुये बाघ को लखनऊ जू ले जाया गया।इससे पूर्व सन 2010 मे बिजनौर तथा 2016 मे मैलानी क्षेत्र के महेशपुर इलाके में आतंक मिटाने वाले बाघो को काबू करने के लिये सर्च आप्रेशन मैं भी पुष्पा कली की अहम् भूमिका रही थी। बाघो को काबू करने वाली जाँबाज निडर पुष्पाकली अपनी बीमारी से हार गयी बीमारी के शुरुआती दौर में पुष्पा कली को दुधवा मे रखकर इलाज कराया गया।वन्य जीव प्रेमियों का मनाना है कि बीमारी की हालत मे लगातार कमजोर हो रही पुष्पा कली को पर्यटक अथवा पत्रकार देखते और उसकी गिरती हालत के बारे मे पार्क प्रशासन से पूछ-ताज भी करते इससे बचने के लिये पार्क प्रशासन ने पुष्पा कली को चार-पांच किलोमीटर दूर निर्जन सलूकापुर बेस-कैम्प में रखकर इलाज कराया जहाँ पर आम आदमी का पहुँचना मुश्किल है वरन मीडिया कर्मी भी आसानी से नही पहुँच पाते है केवल दूरदराज क्षेत्रों से आते पर्यटक ही हाथी से जंगल भ्रमण के लिए सफारी जिप्सी से ही सलूकापुर पहुँच पाते है जिनका कौन हाथी बीमार हैं या कमजोर है ,से कोई सरोकार नही होता वोह जंगल घूमे और दुधवा आकर चले खरे शायद इस स्थिति को जानकर ही पार्क प्रशासन ने पुष्पा कली को सलूकापुर सिफ्ट किया था।वन्य जीव प्रेमी यह भी कहते है कि पुष्पा कली का दुधवा में ही रखकर इलाज कराया जाता तो वह बहुत जल्दी स
लेकिन बीमारी जब गंभीर रूप लेने लगी तब उसका विशेषज्ञ चिकित्सक से इलाज न कराकर बल्कि उसे दुधवा से हटाकर सलूका पुरानी सिफ्ट करा दिया गया जहाँ पर बीमारी और गंभीर होती गयी जिसके कारण अंतिम के कुछ दिन पूर्व पुष्पा कली ने चारा खाना भी छोड़ दिया इसके कारण वह बेहद कमजोर होगयी और अपनी सरकारी सेवाएँ भी देती रही,नाम न छापने की बात पर कई महावतो ने बताया कि समय रहते यदि दुधवा में रख कर अगर समुचित उपचार विशेषज्ञ डाक्टर द्वारा कराया जाता तो शायद पुष्पा कली की जान बच सकतीं थी।
यह विडंबना ही कही जायेगी कि दुधवा नेशनल पार्क की स्थापना के 40 साल के बाद भी शासन-प्रशासन द्वारा पशु चिकित्सक की नियुक्त नहीं की गयी है, और न ही पशु चिकित्सक का पद ही श्रजित किया गया है जबकि दुधवा के गैडा परिवार में चौतिस सदस्य है जिनमें अक्सर वर्चस्व की लड़ाई में कोई न कोई सदस्य घायल य चुटयैल होता रहता है जिसका समय से उपचार नही हो पाता है इसके अतिरिक्त रोड एक्शीडेन्ट में अन्य प्रजातियो के वन्य जीव घायल हो कर असमय काल-कवलित हो जाते है।दुधवा के सरकारी हाथी परिवार में भी दो दर्जन से ऊपर नर व मादा सदस्य है इनकी देख-रेख भी नियमित पशु चिकित्सक न होने के कारण नही हो पाती है ऐसी स्थिति में दुधवा पार्क मे विशेषज्ञ पशु चिकित्सक की नियुक्ति की जाने की महती आवश्यकता है।