सीतापुर-अनूप पाण्डेय,अमरेंद्र पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर में आजादी के मतवाले चन्द्रशेखर आजाद की पुण्य तिथि पर विशेष श्रद्धांजलि
कल हमने भारत माता के सच्चे सपूत देश की आनबान शान अंग्रेजी सरकार की नींद हराम करने वाले 23 जुलाई 1906 में आदिवासी क्षेत्र के ग्राम भाबरा में जन्मे आजादी के इतिहास के महानायक चन्द्रशेखर आजाद को उनके जन्मदिन पर शत शत नमन वंदन अभिनंदन करते हैं। वैसे आजादी की लड़ाई में भारत माता के तमाम सपूत शामिल थे लेकिन उनमें चन्द्रशेखर का नाम सबसे आगे था क्योंकि उस आजादी के मतवाले राष्ट्र भक्त ने अपना इतिहास ही अमर कर दिया और दुश्मनों से लड़ते लड़ते आखिर में उनकी गोली से मरने से बेहतर अपनी पिस्तौल से गोली मारना समझा था।एक बार जब उन्हें गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया तो उन्होंने अदालत के सवालों का जो जबाब दिया उसे सुनकर अदालत ही नही बल्कि अंग्रेजी हूकूमत की नींद हराम हो गयी थी।आजाद की लखनऊ काकोरी ट्रेन का खजाना लूटने और साण्डर्स की हत्या में महत्वपूर्ण भूमिका थी।वह मूल रूप से उन्नाव जिले के बदर गाँव के रहने वाले पंडित सीताराम तिवारी के पुत्र थे तथा भीषण सूखा अकाल के चलता अपना मूल स्थान छोड़कर भाबरा चले गये थे।आजाद का बचपना आदिवासियों के बीच गुजरा और उन्हीं लोगों से धनुष बाण चलाना सीखा था।आजाद गाँधी जी के परमभक्त थे और अपनी माँ जगरानी से आज्ञा लेकर काशी संस्कृत पढ़ने आये थे और पढ़ाई के दौरान ही 1921 में गाँधीजी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर मात्र 14 साल की उम्र में आजादी की लड़ाई में शामिल हो गये थे और उन्हें गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया था।अदालत द्वारा पूंछे गये सवालों के दिये जबाब आज भी भारतीयों के जज्बे को बढ़ा रहे हैं। उन्होंने अदालत से अपना नाम आजाद अंतिम इच्छा आजादी घर जेलखाना बताकर अंग्रेजों की बोलती बंद कर दी थी। नाबालिग होने के नाते उन्हें जेल की सजा न देकर पन्द्रह कोड़े की सजा.सुनाई गयी थी और कोड़ा मारने पर वह वंदेमातरम् और महात्मा गांधी की जय का उद्घघोष करते रहे और तभी से उन्हें आजाद कहा जाने लगा था।1922 में जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया तो एक दिन आजाद की मुलाकात हिंदुस्तान रिपब्लिकन एशोसिएशन क्रांतिकारी दल के संस्थापक रामप्रसाद बिस्मिल से हुयी और वह उनसे प्रभावित होकर उनकी संस्था के सक्रिय सदस्य बन गये थे।आजाद अक्सर संस्था के लिए धन एकत्र करने के लिये सरकारी धन की लूट करते थे।1925 में संस्था के मुख्य क्रांतिकारियों अशफाकउल्ला, रामप्रसाद बिस्मिल आदि को फांसी दे दी गई तो आजाद ने संस्था को फिर पुनर्गठित करके भगवती चरण वोहरा भगत सिंह राजगुरु आदि के निकट पहुंच गये थे।आजाद कुछ समय तक झांसी के ओरछा जंगलों अपने साथियों के साथ रहकर निशानेबाजी का अभ्यास करने और साथियों को करवाने के साथ ही अपना नाम बदलकर पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी बनकर बच्चों को पढ़ाने का भी कार्य करते थे।झांसी में ही आजाद ने मोटर चलाना सीखा और 1931 में जब गणेश शंकर विद्यार्थी जेल में उनसे मिलने गये तब उन्होंने उनसे जवाहरलाल नेहरू से मिलने की सलाह दी थी।इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि जवाहरलाल नेहरू ने आजाद से मिलने से इंकार कर दिया जिसकी वजह वह नाराज होकर 27 फरवरी 1931 को सुखदेव से मिलने इलाहाबाद के एल्फ्रेड पार्क चले गये थे और वहीं पर उन्हें अंग्रेजी फौज ने घेर लिया था। आजाद ने सुखदेव को वहां से भगा दिया था लेकिन खुद उन्होंने मोर्चा संभाल लिया था।जब एक गोली बाकी बची तो गिरफ्तारी से बचने के लिए उन्होंने अपनी कनपटी पर दागकर शहीद हो गये थे।आजाद का नाम अंग्रेजों के लिए एक खौफ बन गया था इसीलिए उनके मरने के बाद उनके पास जाने की हिम्मत अंग्रेजों को नहीं पड़ रही थी और जब वह पूरी तरह आश्वस्त हो गये तभी उनके पास गये।उनकी मौत के बाद एल्फ्रेड पार्क का नाम बदलकर चन्द्रशेखर आजाद पार्क और मध्य प्रदेश के धिमारपुरा का नाम बदलकर आजादपुरा कर दिया गया है।