लखनऊ। परंपरा पर राष्ट्रधर्म फिर भारी पड़ा। ऐसा दूसरी बार हो रहा है जब गोरक्षपीठाधीश्वर के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शारदीय नवरात्र में मठ की परंपरा का पूरी तरह पालन नहीं कर पाएंगे। यह परंपरा रही है कि पीठाधीश्वर नवरात्र के पहले मुख्य मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद भीम सरोवर से कलश भर कर पहली मंजिल स्थित मठ पर जाने के बाद नवरात्र तक नीचे नहीं उतरते लेकिन, इस बार मुख्यमंत्री शुक्रवार को काशी में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल होंगे।
गोरक्षपीठ में शारदीय नवरात्र में अनुष्ठान की लंबी प्रक्रिया है। मठ से सटे बड़े से आंगन में एक बेदी पर शेड डालकर जौ बोया जाता है। वहीं बने दुर्गा मंदिर में सुबह-शाम अनुष्ठान और पूजा होती है। इसमें पीठाधीश्वर के साथ मंदिर के पुजारी, गुरु गोरक्षनाथ संस्कृत महाविद्यालय के आचार्य, छात्र और चुनिंदा लोग भाग लेते हैं।
महानिशा को देर रात तक अनुष्ठान और पूजा होती है। अंतिम दिन वह मठ से नीचे उतरते हैं और कन्या पूजन करते हैं। वह खुद कन्याओं के पांव पखारते हैं। उनको भोजन कराते हैं और दक्षिणा देकर विदा करते हैं।
इस बार मुख्यमंत्री के रूप में अन्य व्यस्तताओं के कारण वह ऐसा नहीं कर पाएंगे। बीच-बीच में उनका गोरखपुर आना-जाना लगा रहेगा। उम्मीद है कि योगी आदित्यनाथ महानिशा पूजन और तिलक समारोह में भाग लेंगे।
पहले भी टूट चुकी है परंपरा
पीठ की यह परंपरा एक बार पहले भी टूट चुकी है। कुछ साल पूर्व गोरखपुर के नंदानगर रेलवे क्रासिंग पर हुए रेल हादसे की सूचना पाकर योगी लोगों की मदद के लिए शारदीय नवरात्र के दौरान मठ से नीचे उतरे थे।
वैदिक मंत्रोच्चार के बीच गोरखनाथ मंदिर में कलश स्थापना शारदीय नवरात्र के पहले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में गुरुवार को गोरखनाथ मंदिर में मां भगवती की विशिष्ट पूजा के साथ नौ दिन तक चलने वाले धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत हुई।
प्रतिपदा के दिन मंदिर परिसर के पीठाधीश्र्वर आवास में मौजूद मां दुर्गा मंदिर में विधि-विधान से कलश स्थापना हुई और मां के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की आराधना की गई।