लखनऊ । प्रदेश में सत्ता से बाहर होने के बाद संगठन को मजबूती देने में जुटे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की अब निकाय चुनावों में परीक्षा होगी। सपा इस बार अपने सिंबल के साथ निकाय चुनाव लडऩे की तैयारी में है और हाल ही में हुए जिला सम्मेलनों कार्यकर्ताओं को पूरी तैयारी से इसमें जुटने को कहा गया है। आगरा में पांच अक्टूबर को राष्ट्रीय सम्मेलन होने के बाद पार्टी पूरी तरह इन चुनावों पर फोकस करेगी।
विधानसभा चुनाव के बाद यह पहला अवसर है जबकि सपा को अपनी जमीनी हकीकत से दो-चार होने का अवसर मिलेगा। इस बार स्थितियां भी विधानसभा चुनाव से अलग हैैं। कुनबे की कलह के बाद अखिलेश पार्टी में पूरी तरह स्थापित हैैं। संविधान में संशोधन करके उन्होंने अपना अध्यक्षीय कार्यकाल भी पांच साल का किया है। उनकी ओर मुलायम के हालिया झुकाव ने भी उन्हेें मजबूत बनाया है।
फिर भी वार्ड स्तर पर टिकटों के बंटवारे में उन्हें काफी जूझना होगा। टिकट से वंचित कार्यकर्ता बागी के रूप में उनके लिए मुश्किल बन सकते हैैं। चुनाव का स्वरूप छोटा होने से एक-एक क्षेत्र में कई-कई उम्मीदवारों ने अभी से ही अपनी होर्डिंग लगानी शुरू कर दी है, जिनमें संतुलन बनाना आसान नहीं।
निकाय चुनावों में हमेशा दमदार प्रदर्शन करने वाली भाजपा से तो सपा को चुनौती मिलेगी ही, अन्य दलों के बीच वोटों का बंटवारा रोकने की चुनौती भी सामने होगी। विधानसभा चुनाव में सपा ने कांग्रेस से गठबंधन किया था लेकिन, निकाय चुनाव वह अकेले लडऩे जा रही है। ऐसे में मुस्लिम क्षेत्रों में मतों में बंटवारा होना संभावित है। कांग्रेस और बसपा मुस्लिम उम्मीदवारों के सहारे ऐसे क्षेत्रों में सेंधमारी करेंगी तो पश्चिम के कई जिलों में रालोद भी एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी के रूप में सामने होगा।
विधानसभा चुनाव हारने के बाद समाजवादी पार्टी ने सदस्यता अभियान चलाकर संगठन को मजबूती दी है। हाल ही में हुए जिला सम्मेलनों में संगठन में पदों की दावेदारी करने वालों के बॉयोडाटा भी लिए गए हैैं। निकाय चुनाव में अखिलेश को संगठन के पदाधिकारियों की कार्यक्षमता परखने का अवसर भी हासिल होगा।