नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल में कहा था कि जुडिशल और लीगल सर्विसेज का उद्देश्य समाज की सेवा करना है और अगर वादी को लंबे समय तक न्याय के लिए लाइन में लगे रहना पड़ता है तो यह उद्देश्य पूरा नहीं होता है। निचली न्यायपालिका में जजों और अधिकारियों की कमी इसका एक बड़ा कारण है। इन पोस्ट पर समय से नियुक्तियां होना आवश्यक है।
हाल में, दिल्ली स्थित विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने अपनी एक स्टडी में पाया है कि अधिकांश राज्य जजों की नियुक्तियों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को नहीं मान रहे हैं। स्टडी में बताया गया है कि राज्यों के न्यायालयों में लगभग 2.5 करोड़ मामले लंबित हैं और निचली न्यायपालिका में लगभग 23 पर्सेंट पद खाली हैं।
राज्यों में सिविल जज (जूनियर डिविजन) की तीन-स्तर की रिक्रूटमेंट की औसत अवधि 326.7 दिन है। यह औसत 18 राज्यों में पिछले 10 सालों की अवधि में निकाला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिए थे कि सिविल जज के रिक्रूटमेंट की औसत अवधि 273 दिन होनी चाहिए। जिन राज्यों में द्विस्तरीय रिक्रूटमेंट सिस्टम है वहां जज की नियुक्ति में औसतन 196.3 दिन का समय लगता है। द्विस्तरीय रिक्रूटमेंट सिस्टम में भी सुप्रीम कोर्ट ने 153 दिन की औसत समयसीमा तय की थी।
पिछले 10 सालों में सिविल जजों की नियुक्ति का डेटा
विधि सेंटर की यह स्टडी सुप्रीम कोर्ट में दायर एक पीआईएल के बाद की गई है। इसी साल कानून मंत्रालय से सुप्रीम कोर्ट के जनरल सेक्रटरी को भेजे गए एक पत्र पर स्वतः संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस पीआईएल पर सुनवाई शुरू की थी। इस पत्र में पूरे देश में निचले स्तर पर जजों की नियुक्ति के लिए केंद्रीय व्यवस्था का सुझाव दिया गया था।
स्टडी में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति के लिए समय पर परीक्षाएं आयोजित नहीं की जाती हैं। विधि सेंटर की यह स्टडी 2007 से 2017 के बीच राज्यों के हाई कोर्ट और पब्लिक सर्विस कमीशन के डेटा पर आधारित हैं। 20 राज्यों के इस डेटा में यह खुलासा हुआ है कि सिविज जज (जूनियर डिविजन- डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) के मामले में अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और पंजाब टॉप पर हैं जबकि जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और दिल्ली सबसे निचले पायदान पर हैं। वहीं, जिला जज (डायरेक्ट रिक्रूटमेंट) के 15 राज्यों के डेटा के मुताबिक तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सबसे आगे हैं जबकि असम और बिहार इसमें सबसे पीछे हैं।
पिछले 10 सालों में जिला जजों की नियुक्ति का डेटा
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ‘संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत त्वरित सुनवाई और न्याय जरूरी है। भले ही आधारभूत ढांचे में कमी हो लेकिन इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह जांच व्यवस्था, नए कोर्ट के गठन, नए कोर्ट हाउसों के निर्माण, कोर्ट को अधिक स्टाफ और साजोसामान उपलब्ध कराने और त्वरित सुनवाई के लिए अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को बढ़ावा दे।’