एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार अपनी पुरानी पार्टी के नेता के तौर पर राहुल गांधी को स्वीकार करने के लिए तैयार हो गए हैं! भाजपा के सहयोगी उद्धव ठाकरे भी राहुल को नेता मानने लगे हैं! क्या नीतीश कुमार के महागठबंधन छोड़ने से राहुल विपक्ष के चेहरे के तौर पर स्थापित हो गए हैं? पिछले एक महीने की राजनीति से यह तथ्य उभरा है कि राहुल अब दिग्गज विपक्षी नेताओं को विपक्ष के चेहरे के तौर पर कबूल हैं और यह कांग्रेस के लिए बड़े संतोष की बात है।
ध्यान रहे विपक्षी खेमे में शरद पवार इकलौते नेता थे, जो राहुल को अपना नेता नहीं मानते थे और कभी भी राहुल गांधी के साथ अकेले राजनीतिक बातचीत नहीं की। उनको जब भी बात करनी होती थी तो वे सीधे सोनिया गांधी से बात करते थे। राहुल की बुलाई विपक्षी पार्टियों की बैठक में भी वे कभी शरीक नहीं हुए, जबकि बाकी दूसरे क्षत्रपों ने राहुल से संवाद शुरू कर दिया था।
कांग्रेस के कई शरद पवार के कंधे पर बंदूक रख कर चला रहे थे और उनके नाम से राहुल के अध्यक्ष बनने के रास्ते में बाधा डालते रहे थे। उन्होंने सोनिया गांधी को समझाया था कि राहुल के अध्यक्ष बनने पर विपक्ष के वरिष्ठ नेताओं के साथ संवाद मुश्किल होगा और इससे विपक्ष का तालमेल बिगड़ेगा। यह बात स्थापित की गई थी कि प्रादेशिक क्षत्रप सोनिया गांधी के साथ बातचीत करने में सहज हैं और राहुल के साथ बात करने में उनको हिचक है।
पर अब ऐसा लग रहा है कि पवार का रुख बदल गया है। उन्होंने राहुल गांधी की जम कर तारीफ की। उन्होंने कहा कि भाजपा और उसकी सरकार ने राहुल गांधी को बदनाम करने और उनके अगंभीर व फेल ठहराने के लिए बड़ी मेहनत की पर अब लोग राहुल को अच्छा रिस्पांस देने लगे हैं। यह महज संयोग नहीं है कि जिस दिन शरद पवार ने उनकी तारीफ की, उससे दो, तीन दिन पहले ही शिवसेना ने राहुल की तारीफ की थी। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि राहुल गांधी में देश का नेतृत्व करने की क्षमता है।
इस बयान के बाद शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात की। पवार ने खुद इस मुलाकात का खुलासा किया और उसके बाद राहुल की तारीफ की। सो, सवाल है कि क्या उद्धव और पवार के बीच राहुल गांधी को लेकर कोई चर्चा हुई थी? कांग्रेस के कई नेता ऐसा मान रहे हैं कि सिर्फ विपक्षी पार्टियों में ही नहीं, बल्कि सरकार की सहयोगी पार्टियों में भी राहुल गांधी के प्रति सद्भाव बन रहा है। कांग्रेस नेता इसका फायदा यह बता रहे हैं कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष राहुल को नेता मानने लगा है।
असल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी गठबंधन से निकलने का सबसे बड़ा फायदा राहुल गांधी को हुआ है। राहुल के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा नीतीश बन रहे थे। भाजपा और खास कर नरेंद्र मोदी के विरोध ने उनको राष्ट्रीय हीरो बनाया था। अगले लोकसभा चुनाव में वे स्वाभाविक रूप से वे नरेंद्र मोदी के मुकाबले विपक्ष का चेहरा बन रहे थे। कांग्रेस नेता भी उनको खतरा मानने लगे थे। सो, उनके भाजपा के साथ जाते ही कांग्रेस में राहुल गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाने की मुहिम तेज हो गई और बड़ी तेजी से भाजपा विरोधी पार्टियों में बतौर नेता उनको स्वीकार किया जाने लगा। तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी, राजद प्रमुख लालू प्रसाद, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, डीएमके के एमके स्टालिन आदि पहले ही उनको नेता मान चुके हैं। अब अगर उद्धव ठाकरे और शरद पवार भी उनको नेता मानने लगे हैं तो यह माना जाना चाहिए कि अगले लोकसभा चुनाव के लिए वे विपक्ष का चेहरा बन गए हैं।