नई दिल्ली : बिहार में नीतीश कुमार-बीजेपी की सरकार ने रिजर्वेशन पर जो बड़ा दांव खेला है, आने वाले दिनों में देश की राजनीति पर भी उसका असर देखा जा सकता है। बुधवार को बिहार सरकार ने एक बड़े फैसले के तहत सरकार की ओर से प्राइवेट कंपनियों को दिए गए आउटसोर्सिंग वाले काम में भी रिजर्वेशन लागू करने का फैसला लिया। इससे लगभग राज्य की हजारों प्राइवेट नौकरियां रिजर्वेशन के दायरे में आ जाएंगी। बिहार सरकार का यह फैसला देश में पहला ऐसा मामला है जब प्राइवेट कंपनियों में प्रत्यक्ष तरीके से रिजर्वेशन की कवायद की गई है। नीतीश कुमार के इस फैसले को बीजेपी ने जिस मजबूती से सपोर्ट किया है उससे इसका राष्ट्रीय राजनीति में भी असर देखा जा सकता है।
लालू को घेरने का है दांव?
सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार के इस बड़े फैसले के पीछे लालू प्रसाद को घेरने का दांव है। लालू प्रसाद ने 2019 में बीजेपी-नीतीश कुमार को घेरने के लिए एक बार फिर अपना पिछड़ा कार्ड खेलने की रणनीति बनाई है। इसके अलावा दलित वोटरों को भी एक करने की तैयारी की जा रही है। जेडीयू के अंदर भी दलित नेताओं ने नीतीश के खिलाफ नाराजगी जताई थी। उदय नारायण चौधरी, श्याम रजक जैसे नेता नाराज चल रहे थे। उधर, लालू प्रसाद, जीतन मांझी, उपेंद्र कुशवाहा जैसे दलित, पिछड़ी जातियों के नेताओं पर डोरे डाल रहे थे। लालू की इस कोशिश को रिजर्वेशन के दांव से काटने की कोशिश मानी जा रही है।
लेकिन है जोखिम भी
हालांकि, नीतीश-बीजेपी ने इस कदम से बड़ा जोखिम भी लिया है। बिहार में सवर्ण बीजेपी के सबसे मजबूत कोर वोटर रहे हैं। इस कदम से इस वर्ग का विरोध सामने आ सकता है। नीतीश सरकार के फैसले के तुरंत बाद बीजेपी के सीनियर नेता और राज्यसभा सांसद सीपी ठाकुर ने इसका विरोध भी कर दिया। सूत्रों के अनुसार बीजेपी और जेडीयू के कुछ और सवर्ण नेताओं ने भी अपना असंतोष जताया लेकिन नीतीश कुमार इससे पीछे हटने को तैयार हैं। सरकार के फैसले को सपोर्ट करने वालों का तर्क है कि अगर कुछ लोगों में अंसतोष होता है तो उससे कहीं अधिक लोग फैसले से खुश होंगे। साथ ही इनका यह भी दावा है कि जब तक सामने लालू प्रसाद विपक्ष के रूप में ही सवर्ण नाराज होकर भी उनसे अलग नहीं होंगे।