कानपुर. मेरी बेटी पढ़ाई में अव्वल है और यूपी बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रही थी। लेकिन मीडिया में परीक्षा के दौरान सख्ती की खबर पढ़कर वो खौफजदा हो गई और मंगलवार को गले में फांसी का फंदा डालकर झूल गई। इसी दौरान मेरी नजर पड़ी तो बेटी के पकड़ लिया और शोर मचा दिया। पड़ोसियों की मदद से उसे नीचे उतारा और अस्पताल में लेकर आए, जहां वह जिंदगी और मौत की जंग लड़ रही है। यह बात शिवाला की रहने वाली रेखा सिंह के हैं, जिनकी बेटी प्राची इंटरमीडिएड एग्जाम से पहले आत्महत्या की कोशिश की। प्राची को जिला अस्पताल में वेन्टीलेटर पर रखा गया और कृत्रिम श्वॉस देकर उसे बचाने की कोशिश की जा रही है।
खौफ के चलते फांसी पर झूली छात्रा
योगी सरकार ने इस बार यूपी बोर्ड की परीक्षा को नकल विहीन बनाने के लिये सख्त कदम उठाये हैं और सन् 1998 में बनाया गया उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधन निवारण) कानून झाड़ पोंछ कर बाहर निकाला गया है । नकल रोकने के लिये परीक्षा केन्द्रों पर मजिस्ट्रेट तैनात किये गये हैं। इस कानून में नकल साधनों का इस्तेमाल करने और कराने वाले को जेल भेजने तक का प्रावधान है। इसके अलावा स्वकेन्द्र परीक्षाओं की जगह दूसरे विद्यालयों को परीक्षा केन्द्र बनाया गया है। कानपुर के शिवाला में रहने वाली 12वी की छात्रा प्राची सिंह कैलाश नाथ इण्टर कॉलेज की छात्रा है जिसका एग्जाम सेंटर जुहारी देवी गर्ल्स इन्टर कॉलेज में पड़ा था। घरवालों के मुताबिक परीक्षा केन्द्र बदले जाने के कारण प्राची काफी मानसिक दवाब महसूस कर रही थी जिसके चलते आज उसने परीक्षा शुरू होने से पहले घर पर फाँसी लगा ली।
मनोवैज्ञानिक काउन्सिलिंग करानी चाहिये
यूपी बोर्ड परीक्षा से पहले शासन-प्रशासन ने सख्त कदम उठाए। परीक्षा केंद्रों में भारी ंसख्या में पुलिसबल के साथ अफसरों की फौज खडी कर दी। जिसके चलते परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थी खासे डरे हुए हैं। प्राची के कदम के बाद कई परीक्षार्थियों का कहना है कि नकल किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए, पर हर छात्र को आरोप की नजर से भी सरकार के अफसरों को नहीं देखना चाहिए। इसके कारण हम लोग ड्रिपरेशन में है। वहीं पूर्व रिटायर्ड टीचर अरूण सिंह ने कहा कि अगर शासन ने इस बार नकल विहीन परीक्षा कराने के इन्तजाम किये थे, स्वकेन्द्र परीक्षा न कराने का खाका खींचा था और परीक्षा केन्द्रों पर हाथों में हथियार लिये अधिक संख्या में खाकी वर्दीधारी पुलिस बल व मजिस्टेट तैनात किये थे तो उसे कुछ महीने पहले से बच्चों की मनोवैज्ञानिक काउन्सिलिंग भी करानी चाहिये थी। ताकि विद्यार्थियों में किसी प्रकार का खौफ पैदा न हों या वे किसी तरह के मानसिक दबाव में न आयें।