लंदन- ये कहानी है पाकिस्तान की सत्रह वर्ष की उस युवती की जिसे उसके ही भाई ने कुल्हाड़ी से काट कर मारने का प्रयास किया लेकिन वह बच गई। किशोरी का कसूर बस इतना था कि उसने अपने परिवार द्वारा की गई बलात शादी से छुटकारा पाने का प्रयास किया।
बारह वर्ष की उम्र में स्कूल भेजने की बजाय गुल मीना नाम की इस किशोरी का निकाह 60 साल के बुजुर्ग से कर दिया गया था। वह रोज उसे मारता-पीटता था। वह गिड़गिड़ाती रहती थी पर उसके बुजुर्ग मियां को उस पर तरस नहीं आता था। इतना ही नहीं इस बात की शिकायत करने पर परिवार वाले भी उसे ही मारते थे। उससे कहा जाता था कि अब पति का घर ही उसकी जिंदगी है।
गत वर्ष नवंबर माह में गुल ने अपना सामान बांधा और एक अफगानी युवक के साथ घर छोड़ कर भाग गई। गुल बताती है कि पहले उसने कई बार जहर खा कर जान देने की कोशिश की पर इसमें वह कामयाब नहीं हो पाई। उसके अनुसार मुझे अपने जिंदगी से नफरत हो गई थी और मैं इससे छुटकारा पानी चाहती थी। जब मैं घर से भागी तो मैं जानती थी कि यह खतरनाक हो सकता है। मुझे मालूम था कि मेरे पति व घर वाले मेरी तलाश करेंगे लेकिन मुझे यह नहीं मालूम था कि ऐसा कुछ हो जाएगा।
मैंने सोचा था कि ऐसा करने से मेरा भविष्य संवर जाएगा। निकाह के पांच वर्ष बाद वह भागकर अफगानिस्तान के जलालाबाद पहुंच गई थी। लेकिन इसके कुछ ही दिन बाद उसके भाई ने उसे ढूंढ निकाला। उसने उसके प्रेमी की कुल्हाड़ी से काट कर हत्या कर दी और उसके ऊपर भी कुल्हाड़ी से 15 बार वार किया। इसके बाद वह उसे मरा हुआ समझ कर घटनास्थल से भाग गया। वह अपने बिस्तर पर खून से लथपथ पड़ी थी। कुल्हाड़ी के हमले में खोपड़ी से उसका भेजा तक बाहर आ गया था।
लेकिन भारी मात्रा में खून बह जाने के बाद भी नांगरहर क्षेत्रीय चिकित्सा केंद्र के शल्य चिकित्सकों ने उसकी जान बचा ली। इतना सब होने के बाद भी गुल के परिवार वाले उसे स्वीकार करने को तैयार हुए और इन परिस्थितियों में पाकिस्तानी अधिकारी भी उसकी सहायता करने के लिए तैयार नहीं हुए। दो महीने तक अस्पताल के डॉक्टरों ने ही उसकी दवा और उपचार का खर्च उठाया। इसके बाद एक महिला ने उसे काबुल में महिलाओं के लिए संचालित धर्मार्थ निराश्रित गृह तक पहुंचाया।
इस धर्मार्थ संस्था की कार्यकारी संचालक मनिझा नादेरी ने बताया कि गुल जब यहां आई थी तो अपने हाथ से खाना तक नहीं खा सकती थी तथा उसे डाइपर पहनना पड़ता था। मनिझा का कहना है कि उन्हें इस बात का डर है कि अफगान में चल रहे ऐसे 14 निराश्रित गृहों में रह रही महिलाओं का अगले वर्ष क्या हाल होगा जब अंतरराष्ट्रीय शक्तियां इनके संचालन के लिए धन देना बंद कर देंगी।
उधर गुल का कहना है कि इस निराश्रित गृह में आने के बाद भी मैंने कई बार जान देने की कोशिश की लेकिन यहां के लोग मुझे ऐसा करने नहीं देते। जब मैं आईना देखती हूं तो एक हाथ से अपना चेहरा ढंक लेती हूं। लोग कहते हैं कि मैं ऐसा नहीं करूं लेकिन मैं आज भी बहुत शर्मिदा हूं।