बहराइच,अब्दलु अज़ीज़:NOI।बहराइच एक ऐसी जगह है जहां पर सजती हैं बिन दूल्हे की बारात.मजे की बात तो ये है कि इस बारात में दुल्हन का भी कही कोई अता पता नही होता लेकिन फिर भी होती है शादी की रस्म अदायगी,
एक ही जगह पर एक ही शख्स के लिये आती हैं हजारों बारातें और ये बारात दूल्हा पक्ष की ओर से आने के बजाए दुल्हन पक्ष की ओर से आती हैं ,जिसमें बाराती के तौर पर शिरकत करतें हैं लाखों अकीदतमंद,जी हाँ ये कोई मनगढ़ंत कहानी नही है बल्कि लोगों की आस्थाओं का प्रतीक और अक़ीदतमन्दी कि जीती जागती मिशाल है जिसको दुनिया भरके सभी धर्म और जाति के लोगों द्वारा बड़े ही ऐहतराम के साथ मनाया जाता है।
बहराइच नगर से लगभग 3 किलोलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित दरगाह हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रह0के आस्ताने के रूप में जाने जानेवाले इस आस्ताने पर सदियों से भारत तो क्या दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आने वाले लाखों लोग अपनी श्रद्धा और अक़ीदतमन्दी के साथ बिना किसी भेदभाव के पहुंच कर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुये अपनी मनचाही मुरादों से मालामाल होते हैं।वैसे तो आस्ताने गाजी पर साल में तीन मेले लगते हैं लेकिन जेठ माह के प्रथम रविवार को आयोजित होने वाला ये विशेष मेला जिसमें गाजी मियाँ की काल्पनिक शादी की रस्म अदायगी होती है
और इसमें शामिल होने के लिये जेठ महीने के पहले व्रहस्पति वार से ही श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है।उसी परम्परा के अनुरूप हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रह0 उर्फ गाजी मियाँ उर्फ बाले मियाँ के इस मेले के प्रथम चरण में जेठ माह के पहले रविवार को बाले मियाँ की काल्पनिक शादी की रस्म अदायगी हुई जिसमें देश विदेश से आने वाले लाखों अकीदतमंदों ने बतौर बराती शिरकत कर अपनी आस्था और श्रद्धा सुमन अर्पित किये।गाजी मियाँ की इन बारातों का जिला प्रशासन और दरगाह प्रशासन के लोगों द्वारा कदीमी नाल दरवाजे पर पारम्परिक तरीके से स्वागत किया गया और उनकी अगवानी करते हुए उन्हें सम्मानित कर मजार शरीफ तक ससम्मान पहुंचाया गया।इसके बाद लगातार चार रविवार को चौथी की रस्म के तहत मेले का क्रम पूरे एक महीने तक चलता है और आज पहली चौथी के तौर पर मेला क्षेत्र में जायरीनों की भीड़ जमा हो रही है। वैसे तो ये कार्यक्रम और कुछ नही……बस आस्थाओं का प्रतीक है जिसमें जन सामान्य के लिये ईशवर के दूत और किसी सन्त के तौर पर हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रह0 के रूप में जाना और पहचाना जाताहै।
इतिहासकारों के मुताबिक हजारों साल पहले इस दरगाह शरीफ के प्रति अपनी आस्था की बुनियाद पर बाराबंकी जनपद के रुदौली निवासी जमालुद्दीन की जन्मजात अंधी बेटी जोहरा बीबी अपनी आँखों मे रौशनी के आ जाने से जीवन भर इस दरगाह शरीफ की देखभाल और साफ सफाई करते रहने के प्रण के रूप में आई थी और श्रद्धा के वशीभूत जोहरा बीबी ने अपने जीवन के बाकी बचे समय को आस्ताने आलिया को समर्पित कर इस दुनिया ए फानी से कूच कर गयी थी।जिसके बारे में पाया जाता है कि जब जोहरा बीबी ने इस स्थान को अपना अंतिम पड़ाव बना लिया था तो उनके परिजनों और क्षेत्र वासियों का यहां हर साल आना जाना लगा रहता था और उनके उसी आने जाने की परंपरा को उनके अकीदतमंदों की नजर में आज गाजी मियाँ की शादी का रूप ले चुकी है।लोगों की ऐसी मान्यता और इतिहास साक्षी है कि इस दरगाह से अंधों को आँखे, कोढ़ी को काया और बाँझ को सन्तान सुख की प्राप्ति हुई है।उसी के क्रम में आज 14 मई 2017 को जेठ माह का पहला रविवार को जिसके मुताबिक गाजी मियाँ की इस काल्पनिक शादी में शिरकत करने के लिये लाखों की तादाद में जायरीनों का यहाँ जमावड़ा लगा हुआ है और बाराबंकी,रुदौली,फैज़ाबाद,देवरिया,आज़मगढ़,बलिया,गोरखपुर,संतकबीर नगर,इलाहाबाद,कानपुर ,लखनऊ व दिल्ली मुम्बई समेत देश और विदेश के विभिन्न भागों से जायरीनों का अभी भी आना जारी है।यहां की परम्परा के मुताबिक गाजी की इस मसनवी बारातों की अगवानी जिले के जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक और दरगाह प्रबन्ध समिति द्वारा रात को विधिवत तरीके से फूल माला और साफ बांध कर की जाती है।एक माह तक चलने वाले इस श्रद्धालु मेले को सम्पन्न कराने के लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी करने का दरगाह प्रशासन ने भले ही बड़े बड़े दावे किये हों लेकिन उनके लगभग सभी दावे खोखले साबित हुए है और इस मेले में शिरकत करने आये तमाम श्रद्धालुओं को व्यापक अव्यवस्थाओं का सामना कर परेशान होना पड़ा है।इस मेले में बाहर से आने वाले तमाम दुकानदारों ,खेल तमाशा वालों को दरगाह प्रशासन द्वारा परेशान कर बड़े पैमाने पर उनका आर्थिक शोषण भी किये जाने की खबर मिली है।इतिहास के मुताबिक ईशवर की अलौमिक शक्ति के धनी हजरत सैय्यद सालार मसऊद गाजी रह0गजनी प्रदेश के राजघराने से सम्बंधित थे जिनका जन्म 15 फरवरी सन 1015 ई0 को भारतीय क्षेत्र अजमेर में हुआ था।आपके बारे में कहा जाता है कि आप जन्म से ही ईश्वर और ईश्वर द्वारा बनाई गई समस्त श्रष्टि से प्रेम करते हुए सूफियाना जींवन बिताने के लिये काम करते थे जबकि उनके मामा महमूद गजनवी उन्हें एक योग्य शासक बनाना चाहते थे लेकिन उनका रुझान ईश्वर के प्रति होने की वजह से वह शांति की तलाश में बहराइच आये थे और यहां के एक ऐसा शासक जिसका अपनी प्रजा के प्रति अमानवीय व्यवहार की चर्चा दूर दूर तक फैल चुकी थी और उसी क्रम में मानव जाति की सुरक्षा व उनके सम्मान के लिये हुई एक अनचाही जंग में 10 जून 1034 ई0 को वह वीर गति को प्राप्त हो गये थे।इतिहासकार ये भी लिखते हैं कि इन्हें जब सामने वाला पक्ष जंग में नही हरा सका था तो एक दिन जंग का समय सीमा समाप्त हो जाने के बाद नमाज की तैयारी के दौरान वजू करते समय पीछे से तीर चला कर उन्हें शहीद कर दिया गया था।गाजी मियाँ जिन्हें लोग प्यार से बाले मियाँ के नाम से भी पुकारते हैं, के बारे में लोगों को लम्बे समय तक को जानकारी नही हुई लेकिन उनके माध्यम से प्राप्त होने वाली मुरादों की लंबी चौड़ी फेहरिस्त बन चुकी थी जिसकी वजह से इनकी ख्याति चारों ओर फैलने लगी और आज उसका ये आलम है कि पूरे विश्व मे इनके मानने और चाहने वालों की कोई कमी नही है।इनके चाहने वालों और लाभान्वित होने वालों में मुस्लिम समाज की अपेक्षा हिन्दू समाज के लोगों की गिनती सबसे ज्यादा पाई जाती।इस दरगाह की देखभाल की जिम्मेवारी प्रदेश सरकार की संस्था सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के अधीन है जिसने एक प्रबन्ध समिति का गठन कर उसका पूरा इंतेज़ाम देखने की जिम्मेवारी सौंप रखी है।गाजी मियाँ की इस दरगाह का बकायदे तरीके से विस्तार शहनशाह फिरोज शाह तुगलक द्वारा एक किला रूपी इमारत का निर्माण करा कर किया गया था जबकि गाजी मियाँ की कब्र मुबारक की तामीर क्षेत्र निवासिनी एक बाँझ औरत ग्वालिन को पुत्र रत्न की प्राप्ति के बाद अपने हाथों से दूध और राख से बना कर की गई थी।बाले मियाँ की चौखट पर हाजरी और श्रद्धा सुमन अर्पित करने से आज भी लाखों अकीदतमंदों की दुआयें और मुरादें पूरी होती हैं और यही वजह है कि गाजी के दीवाने धर्म और जाति से ऊपर उठ कर अपनी मुरादें पूरी करवाने के लिये यहाँ लाखों की तादाद में नन्गे पाँव दौड़े चले आते हैं और चारों ओर ” गाजी मियाँ की मदद ” व ” बाले मियाँ की मदद ” की सदाओं से पूरा दरगाह शरीफ क्षेत्र गुंजाये मान हो रहा है।गंगा जमुनी तहजीब और हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक इस दरगाह पर आखिरकार देश की उन तमाम साम्प्रदायिक संगठनों की नजर भी लग चुकी है जो हमेशा से देश मे नफरत का बीज बो कर उसके फसल के सहारे अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकते रहे हैं,उनके द्वारा ही अब इस आस्ताने गाजी को विवादों में पहुंचाते हुये यहां किसी सूर्य मन्दिर होने की मनगढ़ंत कहानी पेश कर उसे तोड़ कर दरगाह की तामीर करने का दावा करते हुए ये कह रहे हैं कि अब समय आ गया है जब देश और प्रदेश में हमारी सरकार है और हम अपने उक्त आदि काल के मन्दिर के स्थान पर बनी दरगाह की जगह सूर्य मन्दिर का पुनर्निर्माण करायेंगे जिसका मुख्य मंत्री आदित्य नाथ ने भी समर्थन किया है,जबकि इतिहास के पन्नो में उक्त स्थान हजारों साल पूर्व भी एक बिया बान जंगल था और उसी जंगल मे सैकड़ों साल पहले शाहिद हुये बाले मियाँ की मजार-ए-मुबारक की तामीर किसी और ने नही बल्कि क्षेत्र की ही एक ग्वालन ने अपनी मुराद पूरी होने के बाद कि थी,इसके बाद धीरे धीरे हुये विस्तार के रूप में आज की ये पारम्परिक दरगाह लोगों की आस्थाओं का केन्द्र बन गई है जहां आज भी देश विदेश से आने वाले लाखों अकीदतमन्द श्रद्धालु श्रद्धा सुमन अर्पित करने आते हैं।