दीपक ठाकुर:NOI।
बिहार के मुज़फ्फरपुर के बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया से जो खबर आई उसने सब को हिला कर रख दिया।बालगृह से चलाए जा रहे देह व्यापार के गंदे खेल की बात सामने आने के बाद से सत्ता और विपक्ष दोनो ने इस पर राजनीति भी शुरू कर दी एक ओर विपक्ष इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहा है तो वही सत्ता पक्ष इस मामले की सीबीआई जांच करा कर ये साबित करना चाहती है कि वो खुद दोषियों को बख्शने के मूड में नही है।
लेकिन इस पूरे मामले में जिस जिस तरह की बातें सामने आ रही हैं उन्हें देख कर तो यही लगता है कि इतना जिगरा किसी आम संचालक के पास नही होगा ये काम बिना सफेद पोश की शह के होना नामुमकिन है।जैसा कि बताया जा रहा है कि देवरिया बालगृह की अंदर की तस्वीर जेल से कम नही थी
वहां रखी गई लड़कियों को सिर्फ और सिर्फ रात के अंधेरे में निकाला जाता था वो भी बड़ी बड़ी गाड़ियां उन्हें लेने और छोड़ने आती थी तो ये बड़ी गाड़ी वाले बड़े लोग ही होंगे इसमें कोई संदेह नही और इन लोगों की ही पहुंच सत्ता तक होगी इस बात से भी इंकार नही किया जा सकता तो जब सब खुला खुला दिखाई ही दे रहा है तो उसके बाद जांच की रिपोर्ट का इंतज़ार क्यों।
बालगृह में ऊंचे पद पर बने रहने के लिए भी काफी जुगाड़ की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि ऐसी जगह को सरकारी अनुदान मिलता है अभी हाल ही में लखनऊ में एक मामला हुआ था जहां सरकारी दखल के बाद पुरानी संचालिका को हटा कर नई नियुक्ति की गई थी वो सरकारी तंत्र के किसी खास की खास भी बताई जा रही थी।तो मतलब कहने का यही है कि ऐसा नही है कि सरकारें इन मामलों से अनजान हो क्योंकि अनुदान तो सरकार की ही तरफ से जाता है पर वो कहाँ कहाँ और किस रुप मे दिया जा रहा है इसका संज्ञान सरकार तब लेती है जब कोई ऐसा ही मामला सामने आता है।
आप खुद सोचिये बालगृह या और कोई भी सरकार द्वारा दिये जा रही आर्थिक मदद से चलाई जाने वाली संस्था में संस्था चलाने वाले कि रंगत ऐसे बदली दिखाई देती है मानो उसकी कोई लाट्री लग गई हो वही दूसरी तरफ संस्था के नाम पर वो क्या परोसते हैं इस ओर सरकार ध्यान ही नही देती जो एक बड़ी वजह बन जाता है ऐसी घटनाओं के क्रियान्वयन होने का।उम्मीद की जानी चाहिए कि वर्तमान सरकार अब अनुदानित संस्थाओ पर अपनी पैनी नज़र रखेगी ताकि फिर कोई मामला सीबीआई को ना देना पड़े।