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Saturday, November 9, 2024

बिसवां में हिंदी साहित्य के विभिन्न सरोकारों को समर्पित संस्था साहित्य सृजन मंच का आयोजन।

सीतापुर-अनूप पाण्डेय/NOI-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर के बिसवां में हिंदी साहित्य के विभिन्न सरोकारों को समर्पित संस्था साहित्य सृजन मंच,बिसवां द्वारा सुकवि रामकुमार सुरतजी के शंकरगंज आवास पर सारस्वत काव्य संध्या का आयोजन किया गया। जिसकी अध्यक्षता वरेण्य शिक्षाविद दिनेश चंद्र पांडे जी ने की और मुख्य अतिथि के रुप में जनपद फतेहपुर के चर्चित साहित्यकार डॉ शैलेष गुप्त वीर उपस्थित रहे।
कविता वाचन और कविता विमर्श को समर्पित इस
कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार संदीप सरस ने किया।इस काव्य समागम में दिनेश चंद्र पांडे, रामकुमार सुरत, डॉ शैलेष गुप्त वीर, संदीप सरस, घनश्याम शर्मा, अरविंद सिंह मधुप, नैमिष सिंह नयन ने अपनी काव्यात्मक सहभागिता प्रदान की।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दिनेश चंद्र पांडे जी ने कहा रचना धर्म की विवेचना करते हुए कहा की कवि जितना भावुक और संवेदनशील होगा,आकुलता व्याकुलता के जितने निकट होगा और यथार्थ को जितना जिया होगा,अनुभूतियां उतनी ही प्रभावी ढंग से गीतों में अभिव्यक्ति बन ढल जाती हैं। यही रचनाधर्मिता की परंपरागत प्रक्रिया है और यही सृजन का मूल आधार है।

डॉ शैलेश गुप्त वीर ने अपने बेजोड़ दोहों के माध्यम से जन जीवन से जुड़े प्रासंगिक संदर्भ को रेखांकित करते हुए कथित प्रगतिशीलता पर कटाक्ष किया-

लिखता है साहित्य वह, रचता है इतिहास।
अर्थशास्त्र पल-पल करे, प्रतिभा का उपहास।।

घूम रहा था ‘बीच’ में, हुआ देखकर दर्द।
‘हिप्पीकट’ में लड़कियाँ, बाली पहने मर्द।।

साहित्यकार संदीप सरस के तेवर तो सदैव के भांति बेहद विद्रोही और स्वाभिमानी दिखे-

न हो बेबाक़ तेवर तो भला फिर बोलना कैसा।न सच्ची बात कह पाए लबों को खोलना कैसा।फरेबी का चरण चुंबन कहो स्वीकार लें कैसे,हमें अपनी फकीरी में रईसी घोलना कैसा।व्यावहारिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन के संतुलन पर केंद्रित रामकुमार सुरतजी के बेजोड़ दोहे बेहद प्रभावी रहे –

तन मन की भाँवर पड़ी चित चंचल बेचैन।
एक झलक देखे बिना धीरज धरे न नैन।।बूढ़ा तड़पे नीर बिन बैठा पूत करीब।
मुँह मे देता डाल जल हो जाता न गरीब।।सुकवि घनश्याम शर्मा की रचना से जुड़ी आध्यात्मिक संपुष्टता ने सभी श्रोताओं को प्रभावित किया-ऐ मेरे मनमीत कर ले प्रीत उस करतार से,
जो तुझे हर मोड़ पर आ मार्ग बतलाता रहा।
व्य

र्थ ही अब तक गंवाएं स्वांस के अनमोल मोती, वासना के गंदे जल से खुद को नहलाता रहा।युवाकवि अरविंद सिंह मधुप, अपने सम्मोहक मुक्तक के माध्यम से गागर में सागर भरने जैसी अभिव्यक्ति में सफल रहे-अंतर्मन की करुण वेदना, जिस दिन शोर मचाएगी।
चाहे जो कोशिश कर लो तुम,रोके रुक ना पाएगी।
सारे बंधन तोड़ के एक दिन,सरिता बहती आएगी।
अपना सब अस्तित्व मिटाकर, सागर में मिल जाएगी।

युवा रचनाकार नैमिष सिंह नयन ने अपनी देश भक्ति से संपृक्त ओजस्वी रचना से श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया-हे भारत के वीर पुत्र बलिदान में खाली जाएगा
जब याद तुम्हारी आएगी जग सारा अश्रु आएगा।
है वीर शहीदों सब्र करो वो दिन जल्दी ही आएगा,
संपूर्ण विश्व में शांति हेतु यह अमर तिरंगा छायेगा।।कविता वाचन और कविता विमर्श को समर्पित इस बेहतरीन काव्य समागम का सुस्वाद जलपान के साथ समापन हुआ।

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